सूबे में जाटों को आरक्षण का रास्ता साफ
राज्य ब्यूरो, देहरादून: उत्तराखंड में जाट जाति के अभ्यर्थियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का प्रमाण प
राज्य ब्यूरो, देहरादून: उत्तराखंड में जाट जाति के अभ्यर्थियों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का प्रमाण पत्र मिलने का रास्ता साफ हो गया है। शासन ने जाट जाति के ओबीसी की केंद्र व राज्य सूची में शामिल होने का हवाला देते हुए इस वर्ग को ओबीसी का प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में शासनादेश जारी किया है। शासन ने सभी जिलाधिकारियों को जाट जाति के लिए नियमानुसार ओबीसी प्रमाण पत्र निर्गत करने के निर्देश भी दिए। उधर, सरकार के इस कदम का आंदोलनकारी संगठनों ने विरोध किया है।
अपर मुख्य सचिव समाज कल्याण एस राजू की ओर से जारी शासनादेश में बताया गया कि 22 मार्च 2010 को उत्तराखंड में ओबीसी की सूची पुनरीक्षित की गई थी। जाट जाति सूची के क्रमांक-78 में अंकित है। मार्च 2014 में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने ओबीसी की सूची को संशोधित कर उत्तराखंड में जाट जाति को क्रमांक-79 में अंकित करते हुए केंद्रीय सूची में सम्मिलित किया है, मगर राज्य में जाट जाति के अभ्यर्थियों को ओबीसी के प्रमाण पत्र निर्गत नहीं किए जा रहे।
सभी जिलों के जिलाधिकारियों को भेजे पत्र में उन्होंने कहा कि चूंकि उत्तराखंड में जाट जाति ओबीसी की केंद्र व राज्य सूची में सम्मिलित हैं, लिहाजा जाट जाति के लिए नियमानुसार अन्य पिछड़ा वर्ग प्रमाण पत्र निर्गत किए जाएं। उधर, राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान ने इसे उत्तराखंड के बेहतरीन सामाजिक तानेबाने पर कुठाराघात बताया। उन्होंने कहा कि किसी जाति को उसकी आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक पृष्ठभूमि का आंकलन किए बगैर आरक्षण का लाभ देकर सरकार समाज में वैमनस्य पैदा करना चाहती है।
राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया यह कदम लोगों में भारी असंतोष पैदा करेगा और राज्य के हालात खराब होंगे। राज्य में जाट समुदाय काफी समृद्ध है। सरकार के इस कदम को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। राज्य आंदोलनकारी मंच के जिला अध्यक्ष प्रदीप कुकरेती ने कहा कि इससे साफ हो गया है कि उत्तराखंड राज्य के लिए शहादत देने व संघर्ष करने वालों के प्रति सरकार कितनी संवेदनहीन है। राज्य आंदोलनकारियों के दस फीसद आरक्षण की सुविधा को सरकार ने छीन लिया। नौ पिछड़े जिलों की बजाय समृद्ध जाति को ओबीसी में शामिल करने का पुरजोर विरोध किया जाएगा।