कुरैशी के कदम से काग्रेस को नया मौका
राज्य ब्यूरो, देहरादून
उत्तराखंड के राज्यपाल डा अजीज कुरैशी के केंद्र द्वारा पद से हटाए जाने के दबाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने से काग्रेस को केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ राज्यपालों को पद से हटाने के प्रकरण में नए सिरे से मोर्चा खोलने का मौका मिल गया है। काग्रेसनीत यूपीए सरकार के समय नियुक्त काग्रेस पृष्ठभूमि के डा कुरैशी के मामले में काग्रेस, भाजपा को अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोडे़गी। यही नहीं, इस मामले में काग्रेस के तीर का दूसरा निशाना समाजवादी पार्टी भी बन सकती है। वह इस लिहाज से कि उत्तराखंड के राज्यपाल डा कुरैशी को पद से हटाने के लिए केंद्र जिस बात को मुख्य मुद्दा बना रहा है, वह उत्तर प्रदेश में बतौर कार्यवाहक राज्यपाल डा कुरैशी द्वारा जौहर विश्वविद्यालय संबंधी विधेयक पर मुहर लगाने से ही जुड़ा हुआ है।
केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद राज्यपालों को हटाए जाने के मामले में बुधवार को उस वक्त नया मोड़ आ गया, जब उत्तराखंड के राज्यपाल डा अजीज कुरैशी ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर दी। दरअसल, डा कुरैशी भी उन कुछ राज्यपालों में शुमार हैं, जिन्हें पिछली यूपीए सरकार ने नियुक्त किया था। पिछले दिनों डा कुरैशी ने स्वयं मीडिया के समक्ष स्वीकार किया कि केंद्र ने उनसे पद से हट जाने को कहा है। इसके बाद डा कुरैशी दो दिन दिल्ली प्रवास पर भी रहे और देहरादून वापस लौटने के बाद उन्होंने पद छोड़ने से साफ इन्कार कर दिया। इससे इस बात की प्रबल संभावना बनती नजर आई कि केंद्र सरकार कुछ अन्य राज्यपालों की तरह उन्हें भी पदमुक्त कर सकती है। सत्ता के गलियारों में इन दिनों इस तरह की चर्चा खासी सरगर्म है।
डा कुरैशी के ताजा कदम से काग्रेस को केंद्र की भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की घेराबंदी के लिए एक बड़ा मुद्दा मिल गया। माना जा रहा है कि काग्रेस थिंक टैंक ने सोची समझी रणनीति के तहत ही डा कुरैशी के मामले को आगे कर केंद्र सरकार को घेरने की तैयारी की। इससे काग्रेस, भाजपा को सीधे तौर पर अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने का सियासी हथियार इस्तेमाल कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक डा कुरैशी को पद से हटाए जाने के लिए जो आधार केंद्र सरकार ले सकती है, वह उत्तराखंड नहीं उत्तर प्रदेश से जुड़ा है। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पद से बीएल जोशी के इस्तीफे के बाद डा कुरैशी को उत्तर प्रदेश का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था। इसी दौरान उन्होंने लंबे समय से राजभवन में लंबित जौहर विश्वविद्यालय संबंधी विधेयक को मंजूरी दे दी।
काग्रेस इस मामले में समाजवादी पार्टी को भी सियासी पैंतरा दिखा सकती है। दरअसल, सपा सरकार अल्पसंख्यक वोट बैंक को रिझाने की खातिर ही जौहर विवि की स्थापना संबंधी विधेयक लाई। अब अगर इस मुद्दे पर डा अजीज कुरैशी को उत्तराखंड के राज्यपाल पद से हटाया जाता है तो काग्रेस इसका रणनीतिक लाभ यह संदेश देकर लेगी कि अल्पसंख्यकों की असल हितैषी तो काग्रेस है, क्योंकि काग्रेसी पृष्ठभूमि के राज्यपाल को महज इसी वजह से अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। यानी, काग्रेस के दोनों हाथों में लड्डू।