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उत्‍तराखंड: डेढ़ दशक से खत्म नहीं हुआ छत का इंतजार

चमोली जिले के आपदा प्रभावितों का इंतजार आज तक खत्म नहीं हुआ। डेढ़ दशक बाद भी वे छत की आस लगाए हुए हैं।

By Gaurav KalaEdited By: Published: Mon, 16 Jan 2017 02:32 PM (IST)Updated: Wed, 18 Jan 2017 07:00 AM (IST)
उत्‍तराखंड: डेढ़ दशक से खत्म नहीं हुआ छत का इंतजार
उत्‍तराखंड: डेढ़ दशक से खत्म नहीं हुआ छत का इंतजार

गोपेश्वर, [देवेंद्र रावत]: उत्तराखंड में चौथा विधानसभा चुनाव आ गया, लेकिन चमोली जिले के आपदा प्रभावितों का इंतजार आज तक खत्म नहीं हुआ। डेढ़ दशक बाद भी वे छत की आस लगाए हुए हैं। हर चुनाव में नेताजी ने आपदा प्रभावितों को छत मुहैया कराने के लिए विस्थापन के बड़े-बड़े वादे किए।

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लेकिन, हकीकत यह है कि इन वादों का अंशभर भी नेताजी पूरा नहीं कर पाए। नतीजा, आपदा प्रभावितों की नफरी बढ़ती ही चली गई। आंकड़े बता रहे कि वर्ष 2002 से 2013 तक आपदा प्रभावित 78 गांवों के 2653 परिवारों को विस्थापन का इंतजार है। इन परिवारों की आबादी वर्तमान में 17300 है।

केदारनाथ समेत चारधाम में आई 2013 की आपदा के बाद सरकार का फोकस प्रभावितों का समुचित पुनर्वास था। बावजूद इसके चमोली जिले आपदा प्रभावित डेढ़ दशक बाद भी एक अदद छत के लिए सरकार का मुंह ताक रहे हैं।

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हालांकि, विस्थापन के लिए भूमि चयन को लेकर फाइलें दौड़ाई गई। लेकिन, प्रशासन ने कहीं भूमि विवाद तो कहीं भूगर्भीय सर्वेक्षण में जमीन के उपयुक्त न पाए जाने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। यही नहीं, जिन प्रतिनिधियों पर आपदा प्रभावितों का भरोसा था, उन्होंने भी संकट के वक्त अकेला छोड़ दिया। फिर चाहे वह बदरीनाथ विस क्षेत्र के प्रतिनिधि रहे हों या थराली और कर्णप्रयाग विस क्षेत्र के।

प्रशासन के स्तर से हुई कार्रवाई की बात करें तो वह अब तक आपदा प्रभावित 78 गांवों की कैटेगरी तय करने से आगे नहीं बढ़ पाया। इनमें 17 गांवों को अत्याधिक संवेदनशील, 20 को अति संवेदनशील और 41 को संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है।

हालांकि, फरकंडे (गैरसैंण) गांव के लोग सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें गांव के पास ही विस्थापित कर दिया गया। आपदा प्रबंधन महकमा अब अत्याधिक संवेदनशील गांवों का दोबारा सर्वे कर रहा है। ऐसे में साफ है कि आपदा प्रभावितों का विस्थापन अबके भी चुनावी मुद्दे तक ही सीमित रहेगा।

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ये है स्थिति

बदरीनाथ विस क्षेत्र

चमोली तहसील में पिलंग, सैकोट का नगाड़ी तोक, टेंटुणा, रोपा, बछेर का गांधीग्राम, लासी, मंजू लग्गा बेमरू, छिनका चमेली, लांखी, पोखरी में बंगथल के दो परिवार, गुड़म, गोदली ग्वाड़ का दगण्याणा तोक, सलना का बूंगा तोक, नोठा थालाबैंड, कोडला, ऐरास का सेनवाला तोक, जोशीमठ तहसील में गणाई दामड़मी, भ्यूंडार पुलना, पांडुकेश्वर का गोविंदघाट तोक, अरुड़ी-पटूड़ी का लामबगड़ तोक, द्वींग, करछों पल्ला, जखोला, किमाणा, मोल्टा, भेंटा का पिलखी तोक, टंगणी मल्ली, टंगणी तल्ली, पैंया चोरमी, सलूडु डुंग्रा का छेकुड़ी तोक, उर्गम तल्ला का बडङ्क्षगडा तोक, हनुमानचट्टी का घृतगांव तोक, पाखी, ल्यारी थेंणा, चांई, रेगड़ी, बडग़ांव का कखरोड़ी तोक, परसारी का पुनागैर तोक, कलगोठ का उच्छोंग्वाड़ तोक, चमतोली, तपोवन, लाता, तपोंण, देवग्राम, भर्की और डुमक।

कर्णप्रयाग विस क्षेत्र

तहसील गैरसैंण में देवपुरी, सनेड़ लग्गा जिनगोड़, कुसरानी बिचली, खाल लग्गा कुनखोली, कर्णप्रयाग तहसील में डिम्मर का रियालगांव तोक, गैरोली तल्ला, मैखुरा, नौसारी और दियारकोट।

थराली विस क्षेत्र

तहसील थराली में भ्याड़ी छपाली, त्यूंला, नौंणा, केवर तल्ला, सोना का कुल्याड़ी तोक, बूंगा का सेरा तोक, बेडगांव, अठडू, सेरा विजयपुर, राडीबगड़, घाट उप तहसील में नारंगी, कनोल, सरपाणी, सिन्ना तोक, पेरी पल्टिगधार, चमोली तहसील में नैथोली, लस्यारी, पलेठी का भरसैंजी तोक और सरतोली।

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