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उत्‍तरकाशी में दो गांवों को जोड़ने वाले पुल का कार्य चार साल से अटका

उत्‍तरकाशी जनपद के सुपीन नदी पर सटूड़ी व सावड़ी गांव को जोड़ने वाले गार्डर पुल को चार साल में भी नहीं बना पाई। पुल बनेगा भी या नहीं, यह मसला भी तेरी फाइलों में उलझा हुआ है।

By Gaurav KalaEdited By: Published: Mon, 16 Jan 2017 02:10 PM (IST)Updated: Tue, 17 Jan 2017 07:00 AM (IST)
उत्‍तरकाशी में दो गांवों को जोड़ने वाले पुल का कार्य चार साल से अटका
उत्‍तरकाशी में दो गांवों को जोड़ने वाले पुल का कार्य चार साल से अटका

पुरोला, [राधेकृष्ण उनियाल]: वाह रे! सरकार। उत्तरकाशी जनपद के सुपीन नदी पर सटूड़ी व सावड़ी गांव को जोड़ने वाले गार्डर पुल को चार साल में भी नहीं बना पाई। पुल बनेगा भी या नहीं, यह मसला भी तेरी फाइलों में उलझा हुआ है। ग्रामीण नेताओं से लेकर अफसरों तक के चक्कर पर चक्कर काटे जा रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। इससे बड़ी हैरत की बात क्या होगी कि पूछने पर अधिकारी कह रहे, अभी नए पुल बनाने को वन विभाग की स्वीकृति नहीं मिली है। इस पर नेताजी कुछ कहेंगे क्या।

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सीमांत उत्तरकाशी जिले में सुदूरवर्ती मोरी ब्लाक के 150 परिवारों वाले सटूड़ी व स्वाड़ी गांव तक जाने के लिए पहले सड़क मार्ग से जखोल पहुंचना पड़ता है। जखोल से सात किमी की दूरी पर हैं ये दोनों गांव, लेकिन यहां पहुंचने को पहले सुपीन नदी पार करनी पड़ती है। नदी पर पहले एक स्टील का गार्डर पुल था, जो 2012 में आई आपदा की भेंट चढ़ गया। ग्रामीणों ने काम चलाने के लिए जैसे-तैसे नदी के ऊपर लकड़ी की बल्लियां लगाई और अब भी ऐसे ही गुजर हो रही है।

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वर्ष 2013 में सरकार ने पुल निर्माण की घोषणा भी की, लेकिन अब तक पुल बनना तो दूर, निर्माण के लिए निविदा तक नहीं लगी है। ऐसे में ग्रामीण व छात्र-छात्राओं को जान जोखिम में डालकर नदी पार करने के लिए मजबूर हैं। लोनिवि अधिकारी पुल निर्माण के लिए वन विभाग की स्वीकृत न होने की बात कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं।

लेकिन, ग्रामीणों की पीड़ा को महसूस करने वाला कोई नहीं। सटूड़ी के प्रधान ज्ञान सिंह के अनुसार सबसे अधिक परेशानी तब होती है, जब बरसात के दौरान नदी उफान पर होती है। नदी बल्लियों को भी अपने साथ बहा ले जाती है।

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पुरोला के लोक निर्माण विभाग के एई आरएस पंवार का कहना है कि सावड़ी के निकट सुपीन नदी पर खोदी के पास बना गार्डर पुल बह गया था। इसके स्थान पर झूलापुल बनाने की स्वीकृति मिली है। लेकिन, अब तक वन भूमि का हस्तांतरण नहीं हो पाया है।

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