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जोशीमठ का गुलाब बिखेर रहा है आस्ट्रेलिया में खुशबू

चमोली जिले के पांच गांवों में ग्रामीण हर्बल गुलाब की खुशबू बिखेर रहे हैं। इस गुलाब से तैयार गुलाब जल व तेल आस्ट्रेलिया के लिए निर्यात किया जा रहा है।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 27 Jun 2017 08:56 AM (IST)Updated: Tue, 27 Jun 2017 08:34 PM (IST)
जोशीमठ का गुलाब बिखेर रहा है आस्ट्रेलिया में खुशबू
जोशीमठ का गुलाब बिखेर रहा है आस्ट्रेलिया में खुशबू

जोशीमठ, चमोली [रणजीत रावत]: सीमांत क्षेत्र में जहां गांवों की आबादी घटने से सरकार चिंतित है, वहीं चमोली जिले के पांच गांवों में ग्रामीण हर्बल गुलाब की खुशबू बिखेर रहे हैं। इन ग्रामीणों ने सामूहिक खेती कर इस साल तीन हजार लीटर से अधिक गुलाब जल तैयार किया है, जिसे लोग हाथोंहाथ ले रहे हैं। खास बात यह कि गुलाब की खेती व जल बनाने की प्रोसेसिंग यूनिट आसवन संयंत्र भी गांवों में ही लगाए गए हैं।

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चमोली जिले की सीमांत जोशीमठ ब्लॉक के पांच गांवों सुनील, बड़गांव, मेरग, परसारी व पगनों में 150 काश्तकारों ने नौ हेक्टेयर क्षेत्र में गुलाब की खेती शुरू की है। खेतों में तो परंपरागत फसल उगाई जाती हैं, जबकि उनके चारों ओर गुलाब के पेड लगाए गए हैं। 

चार साल पहले जब सगंध पादप केंद्र की ओर से गुलाब लगाने का प्रस्ताव आया तो सभी किसान इसके लिए तैयार नहीं हुए। हालांकि, बाद में केंद्र के प्रयासों के बाद पांच गांवों के 150 किसानों ने अपने उन खेतों में गुलाब लगाना शुरू कर दिया, जहां जंगली जानवर फसलों को बर्बाद कर देते थे। तीन साल में ही गुलाब की फसल लहलहाने लगी और खेत फूलों से महकने लगे।

पादप केंद्र की मदद से गांवों में प्रोसेङ्क्षसग यूनिट आसवन संयंत्र लगाए गए और विशेषज्ञों की मदद से गुलाब जल तैयार किया गया। इसे बाटलिंग कर बाजार में बेचा गया। इस वर्ष पांच गांवों में 20 क्विंटल गुलाब की पैदावार हुई, जिससे तीन हजार लीटर से अधिक गुलाब जल तैयार हुआ। एक लीटर गुलाब जल की कीमत 200 रुपये है, जबकि गुलाब के तेल की कीमत छह से आठ लाख रुपये प्रति लीटर के बीच है। इस वर्ष ग्रामीणों ने करीब 50 किलोग्राम तेल तैयार किया है। उनका प्रयास है कि अगले वर्ष तेल की मात्रा बढ़ाई जाए। 

हर्बल के साथ बेहतर खुशबू भी

यहां उगाई गई गुलाब की प्रजाति बल्गेरियन रोज है। पिंक कलर का यह गुलाब घरों के आंगन में लगने वाले आम गुलाब से अलग है। इससे गुलाब जल के अलावा सुगंधित तेल भी बनाया जाता है। इसे पर्वतीय क्षेत्रों में ढलान वाली जगह व खेतों के किनारे लगाया जा सकता है। 

एक बार गुलाब की पौध लगाने के बाद 15 साल तक यह फूल देती है। यहां पैदा होने वाले गुलाब के फूल हर्बल भी हैं, क्योंकि इनमें किसी प्रकार के केमिकल का प्रयोग नहीं होता। काश्तकार आत्माराम घिल्डियाल बताते हैं कि पहले गुलाब की खेती उन्हें घाटे का सौदा लगती थी, लेकिन जब गुलाब जल व तेल का उत्पादन होने लगा तो इसका महत्व समझ में आया। इसकी फसल को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते।

आस्ट्रेलिया के लिए हो रहा निर्यात

जोशीमठ के गांवों में उगाए जाने वाले गुलाब का जल व तेल आस्ट्रेलिया के लिए निर्यात किया जा रहा है। इसके अलावा विदेशी पर्यटक भी इन गांवों में आकर गुलाब जल व तेल खरीद रहे हैं। खासकर बदरीनाथ धाम की यात्रा पर आने वाले यात्री इस गुलाब जल को ले रहे हैं।

बोनस है गुलाब का उत्पादन

जोशीमठ विकासखंड के गांवों में गुलाब की खेती काश्तकारों को बोनस के रूप में मिली है। असल में इन गांवों के लोग राजमा, चौलाई समेत अन्य नकदी फसलों का उत्पादन परंपरागत रूप से करते रहे हैं। अब गुलाब उनके लिए अतिरिक्त सौगात बन गया है।

गुणवत्ता वाला है गुलाब का तेल 

सगंध पौधा उत्पादन केंद्र सेलाकुई (देहरादून) के वैज्ञानिक डॉ. सुनील शाह के मुताबिक ठंडा क्षेत्र होने के कारण जोशीमठ के आसपास बनाए जा रहे गुलाब का तेल बेहतर गुणवत्ता वाला है। उम्मीद है कि भविष्य में और लोग गुलाब की खेती अपनाएंगे। मनरेगा के तहत भी वह गुलाब की खेती कर सकते हैं।

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