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पांच साल से मूल मंदिर तक नहीं पहुंच सके भगवान नृसिंह

श्री बदरी-केदार मंदिर समिति पांच साल बाद भी भगवान नृसिंह को जोशीमठ स्थित उनके मूल मंदिर में विराजित नहीं कर पाई है।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 19 Aug 2017 12:27 PM (IST)Updated: Sat, 19 Aug 2017 10:53 PM (IST)
पांच साल से मूल मंदिर तक नहीं पहुंच सके भगवान नृसिंह
पांच साल से मूल मंदिर तक नहीं पहुंच सके भगवान नृसिंह

जोशीमठ, चमोली [रणजीत सिंह रावत]: श्री बदरी-केदार मंदिर समिति पांच साल बाद भी भगवान नृसिंह को जोशीमठ स्थित उनके मूल मंदिर में विराजित नहीं कर पाई है। मंदिर समिति ने पौराणिक नृसिंह मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान भगवान नृसिंह की मूर्ति को शंकराचार्य मठ में शिफ्ट कर दिया था। लेकिन, जीर्णोद्धार कार्य में विलंब के चलते अब तक वह अपने मूल स्थान नहीं पहुंच पाई। जबकि, इस साल बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से पूर्व मूर्ति को मंदिर में पुनर्स्थापित हो जाना था।

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श्री बदरी-केदार मंदिर समिति ने पौराणिक नृसिंह मंदिर के पुनर्निर्माण को 7.03 करोड़ की कार्ययोजना बनाई थी। कत्यूरी शैली में इस मंदिर का निर्माण होना था। कार्ययोजना पर अमल करते हुए वर्ष 2012 में मंदिर समिति की ओर से बुलटेक इंडिया कंपनी को मंदिर के जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी सौंपी गई। 

कंपनी ने 2.25 करोड़ का कार्य किया भी गया, लेकिन कार्य की कछुवा गति को देखते हुए वर्ष 2016 में मंदिर समिति ने निर्माण का जिम्मा अपने हाथ लिया। हैरत देखिए कि इसके बाद भी अब तक कार्य पूरा नहीं हो पाया है। अभी महिला चेंजिंग रूम व वाशरूम बनना शेष हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं को भगवान नृसिंह के दर्शनों को शंकराचार्य मठ की दौड़ लगानी पड़ रही है। 

श्री बदरी-केदार मंदिर समिति के अधिशासी अभियंता अनिल ध्यानी बताया कि जीर्णोद्धार का 99 फीसद कार्य पूर्ण हो चुका है। जल्द ही चेंजिंग रूम व वाशरूम भी बनकर तैयार हो जाएंगे।

तीसरे नंबर का सबसे ऊंचा मंदिर

जोशीमठ का नृसिंह मंदिर उत्तराखंड के सबसे ऊंचे मंदिरों में तीसरे स्थान पर है। केदारनाथ मंदिर 84 फीट की ऊंचाई के साथ पहले स्थान पर है, जबकि गोपेश्वर का गोपीनाथ मंदिर 78 फीट की ऊंचाई के साथ दूसरे और नृसिंह मंदिर 72 फीट की ऊंचाई के साथ तीसरे स्थान पर है।

यहीं से बढ़ते हैं बदरीनाथ की ओर कदम

जोशीमठ का प्रसिद्ध नृसिंह मंदिर अपने धार्मिक महत्व एवं पौराणिकता के कारण विश्वभर पहचान रखता है। बदरीनाथ धाम जाने वाले यात्री सबसे पहले नृसिंह मंदिर में ही पूजा करते हैं। स्कंद पुराण के केदारखंड में भी नृसिंह मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद बदरीनाथ की ओर बढ़ने की सलाह दी गई है। 

मान्यता है कि इस मंदिर में विराजमान भगवान नृसिंह की मूर्ति के बाएं हाथ की कलाई धीरे-धीरे घिस रही है। कहते हैं कि जब यह कलाई पूरी तरह से घिसकर टूट जाएगी, तब बदरीनाथ यात्रा मार्ग पर जय-विजय पर्वत आपस में जुड़ जाएंगे। इसके बाद बदरीनाथ धाम तक जाने वाला मार्ग भी बंद हो जाएगा। ऐसे में यात्री भगवान बदरी नारायण के दर्शन भविष्य बदरी में कर पाएंगे।

विवाद बना विलंब की वजह

मंदिर समिति ने पहले बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने पर नृसिंह मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए खोलने का निर्णय लिया था। बताया जा रहा कि मंदिर समिति व सरकार के बीच चल रही तनातनी के चलते मंदिर में नियत समय पर देव मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाई। हालांकि, मंदिर समिति का कहना है कि तनाव जैसी कोई बात नहीं है और जल्द मंदिर में मूर्ति स्थापित कर दी जाएगी।

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