इंसेफेलाइटिस का प्रकोप जारी
महराजगंज: बीते वर्ष की भांति इस वर्ष भी समय आते ही इंसेफेलाइटिस ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है।
महराजगंज: बीते वर्ष की भांति इस वर्ष भी समय आते ही इंसेफेलाइटिस ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। इस वर्ष अब तक इसके चपेट में आकर 106 बच्चे प्रभावित हो चुके हैं। जिसमें चौदह बच्चों की इलाज के दौरान मौत हो चुकी। जबकि 11 मरीजों में जेई पाजिटिव पाए गए हैं। अभी इंसेफ्लाइटिस के चपेट में आकर मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने का सिलसिला जारी है। इंसेफ्लाइटिस पर काबू पाने के लिए प्रत्येक वर्ष शासन स्तर से तरह तरह की योजनाएं बनाई जाती हैं। योजनाएं लागू भी होती हैं उसके बावजूद भी इंसेफेलाइटिस काबू में होता नहीं दिख रहा है। तुरंत इलाज व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए गांव स्तर पर फीवर ट्रेकिंग सिस्टम के तहत आशा कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगाई गई है। यदि किसी बच्चे में बुखार आने की शिकायत आती है तो उसे तुरंत अपने नजदीक के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराए, लेकिन फीवर ट्रे¨कग सिस्टम के तहत गांव में न तो मरीजों की जांच होती है न ही बुखार आने पर आशा द्वारा मरीज को नजदीक के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया जाता। ग्रामीण क्षेत्र अशिक्षा के चलते बुखार आने की स्थिति में आज भी लोग गांव के चौराहा पर बिना प्रशिक्षित चिकित्सक के वहां अपने बच्चे का इलाज कराते है। दो चार दिन तक इलाज कराने के बाद हालत गंभीर होने पर ही बच्चा जिला अस्पताल या मेडिकल कालेज पहुंचता है, तब तक बच्चे की हालत गंभीर हो चुकी होती। इंसेफेलाइटिस से बचाव के लिए जेई का टीका पंद्रह वर्ष तक के बच्चे को लगाया जाता है जबकि इस समय सबसे घातक एईएस जल जनित बीमारी घातक बन रही है। अब तक एईएस से बचाव के लिए बच्चों में एईएस का टीका नहीं लगाया जाता। इससे बचाव के लिए साफ सफाई व शुद्ध पेय जल का प्रयोग ही उपाय है। शुद्ध पेय जल के लिए इंसेफ्लाइटिस प्रभावित गांव में लगाया गया टीटीएसपी टैंक में से अधिकांश खराब पड़े है। इंडिया मार्क हैंड पंपों की भी हालत सही नहीं है।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि बीते वर्ष की तुलना में इस वर्ष जेई से प्रभावित मरीजों की संख्या कम है। एईएस के चपेट में आकर बच्चे गंभीर हो रहे हैं। एईएस से बचाव के लिए शुद्ध पेय जल व साफ सफाई जरूरी है। लोगों को स्वास्थ्य शिक्षा की जानकारी देकर एईएस के प्रति जागरूक किया जा रहा है।