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यूपी के इस शिव मंदिर में सावन में जलाभिषेक से मिलती है मनचाही दुल्हन

लखीमपुर खीरी जिले में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां पर मान्यता है कि सावन में जलाभिषेक करने से कुंवारों को मनपसंद दुल्हन मिल जाती है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 25 Jul 2016 04:24 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jul 2016 05:25 PM (IST)
यूपी के इस शिव मंदिर में सावन में जलाभिषेक से मिलती है मनचाही दुल्हन

लखनऊ (वेब डेस्क)। मनपसंद दुल्हन की चाहत रखने वालों के लिए सावन का महीना बेहद मुफीद है। बस थोड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। मनपंसद दुल्हन पाने को आपको उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के एक शिव मंदिर में सावन में जलाभिषेक करना होगा।

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लखीमपुर खीरी जिले में एक ऐसा शिव मंदिर है जहां पर मान्यता है कि सावन में जलाभिषेक करने से कुंवारों को मनपसंद दुल्हन मिल जाती है। यही नहीं मंदिर के किनारे बह रही गोमती नदी में डुबकी लगाने से कुष्ठ रोगियों के चर्म रोग भी ठीक हो जाते हैं।

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मान्यता है इस मंदिर में विराजमान भगवान पारसनाथ के दर्शनों से भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। इसी कारण से सावन के पहले सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं।

लखीमपुर खीरी जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर-24 पर पडऩे वाले मैगलगंज कस्बे से छह किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में मढिया घाट के शिव मंदिर की ख्याति आसपास के जिलों में भी है। रमणीक स्थान पर बसे इस मंदिर की नैसर्गिक सुंदरता भी देखते बनती है। खजूर के पेड़ और खुले मैदान के बीचोबीच इस मंदिर की दिव्यता सावन महीने में बारिश की बूंदों से और बढ़ जाती है।

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मैगलगंज के निवासियों का मानना है कि यहां पर शिव मंदिर में जलाभिषेक करने वाले हजारों से अधिक कुंवारों को मनचाही दुल्हन मिली है। इसके साथ ही कई हजार निसंतान की गोद हरी हो गई। यहां पर आज भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग पहुंचे जिनकी मुराद पूरी हो गई है। बरेली से देवांश आज अपनी पत्नी से साथ पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि बाबा का आशीर्वाद मिला तभी शादी हुई। अब हर सावन के सोमवार पति-पत्नी बाबा के चरणों में आना नहीं भूलते। शाहजहांपुर के अजय मिश्रा ने बताया कि मेरी शादी नहीं हो रही थी, 35 का हो गया था। किसी से बाबा के मंदिर के बारे में पता चला। मैं सावन में आया मन्नत मांगी अगले ही साल शादी हो गई। अब दो बच्चे भी हो चुके हैं।

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माना जाता है कि व्यास के पिता पारसनाथ ने शिवलिंग का अधिष्ठान कराया। किवदंती ये भी है कि आज भी यह शिवलिंग सुबह अपने आप पूजा मिलता है। कहा जाता है कि अश्वस्थामा मंदिर की पूजा भोर में ही कर जाते है।

सावन में लाखों की संख्या में शिव भक्त बरेली, शाहजहांपुर, सीतापुर, बाराबंकी, हरदोई, लखीमपुर खीरी तथा लखनऊ से मढिया घाट के बाबा पारसनाथ के दर्शनों को आते हैं। मढिय़ा घाट मंदिर की एक और ख्याति है। यहां गोमती नदी उत्तरायणी बहती है। इस नदी में चरम रोगों से ग्रसित कोई भी व्यक्ति डुबकी लगाकर भगवन शिव को जल चढ़ाकर मनौती मांगता है तो उसके चर्म रोग दूर हो जाता है।

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मैगलगंज के देवेंद्र ने बताया कि उत्तर वाहिनी गोमती आपको कहीं बहती नहीं मिलेगी। गोमती नदी में स्नान के बाद जलाभिषेक भक्तों के लिए कल्याणकारी होता है। माना जाता है कि भगवान भोले के चरण छूने को ही गोमती उत्तर में बहने लगी। यह मंदिर काफी ऊंचाई पर टीले पर स्थित है। त्रेता युग में व्यास जी ने यहां तपस्या की और खड़ लिंग की स्थापना की। जिसे पारसनाथ शिवलिंग के नाम से जाना जाता है।

संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य शिवसागर लाल दीक्षित कहते हैं कि मढिया घाट का शिव मंदिर इन्हीं खास वजहों से भक्तों की आस्था का केंद्र है। सच्चे मन से जो आया उसकी झोली कभी खाली नहीं गई।


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