समाज वादी पार्टी में कौमी एकता दल के विलय के अासार, आज हो सकती है घोषणा
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव अब उन समझौतों को करने के लिए बाध्य हैं, जिसके लिए पहले वे ना कर चुके हैं। गाजीपुर के अंसारी बंधुओं की पार्टी कौमी एकता दल से एक बार फिर विलय
लखनऊ। आगामी विधान सभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल जोड़, तोड़ गठजोड़ में जुट गए हैं। क्योंकि इस चुनाव में 15 मुस्लिम पार्टियां एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए मुस्लिम फ्रंट बना चुकी हैं। फ्रंट में मौजूद पार्टियों का पूर्वांचल से लेकर पश्चिमांचल तक मुस्लिम तबके में असर है। मुजफ्फरनगर, दादरी और कैराना के बाद सपा के हाथों से मुस्लिम वोट फिसलने लगा है।
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यही वजह है कि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव अब उन समझौतों को करने के लिए बाध्य हैं, जिसके लिए पहले वे ना कर चुके हैं। गाजीपुर के अंसारी बंधुओं की पार्टी कौमी एकता दल से एक बार फिर विलय और समझौते की कवायद इसी की एक कड़ी है। सूबे के चुनाव में मुस्लिम वोट सपा के लिए सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। लिहाजा मुस्लिम फ्रंट ने नेताजी को पेरशान कर दिया है। 15 छोटी-छोटी पार्टियों ने मिलकर ये नया फ्रंट बनाने की घोषणा की हैं और ये दावा भी किया है कि इस बार मुस्लिम वोट बंटकर तितर-बितर नहीं होगा। फ्रंट का संयोजक मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद सुलेमान को बनाया गया है। बूथ स्तर पर कार्यकर्ता सम्मेलन करेगी समाजवादी पार्टी
इत्तेहाद फ्रंट में जो पार्टियां शामिल हैं, उनमे पीस पार्टी, इंडियन नेशनल लीग, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल, सोशल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया, मुस्लिम मजलिस, मुस्लिम लीग, परचम पार्टी और इत्तेहाद ए मिल्लत। फ्रंट के नेताओं ने दावा किया है कि असद्उद्दीन औवेसी की पार्टी समेत मुसलमानों की राजनीति करने वाली कुछ और पार्टियां भी इस फ्रंट में शामिल हो सकती है।
समाजवादी पार्टी मुख्य रूप से मुस्लिम और यादव वोटों पर अपनी राजनीति करती है। अगर यूपी के 19 फीसदी वोट सपा से अलग हो गए तो हर हाल में सपा को नुकसान होगा। ऐसे में अब सपा सुप्रीमो इन पार्टियों को अपने साथ लाने की कोशिश करेंगे। वे अब कौमी एकता दल को साथ लाना चाहते हैं। पार्टी मुख्यालय पर इस इस बात को लेकर सरगर्मी बढ़ गर्इ है कि जल्द ही मुख्तार अंसारी और अफजल अंसारी जल्द ही सपा में आ सकते हैं। मुलायम किसी भी कीमत पर अब मुस्लिम नेताओं को अपने साथ लाना चाहते हैं, उनकी रणनीति ये है कि या तो ये उनके साथ आएं या अलग-अलग रहें, क्योंकि वो जानते हैं कि अलग अलग ये उतना नुकसान नहीं पंहुचा सकते, जितना फ्रंट बनाकर।
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सूत्रों के मुताबिक अंसारी बंधुओं को समाजवादी पार्टी में शामिल कराने का फैसला खुद सपा सुप्रीमो का है। इससे पहले कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय होना लगभग पक्का हो गया था। लेकिन अखिलेश यादव के दखल के बाद पार्टी ने अपना फैसला बदल लिया था। यूपी में 2017 में विधान सभा चुनाव है। सपा के पास पूर्वांचल में कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो उसे कई सीटें दिला सके। ऐसे में सपा मुख्तार और अफजाल अंसारी को अपने साथ लाकर पूर्वांचल में अपना दबदबा कायम रखना चाहते हैं।