नौ साल में नहीं लग सकी एक भी सेवा लोक अदालत
इन मुकदमों को न्यायपालिका से इतर सेवा लोक अदालतें लगाकर शीघ्रता से निपटाने की व्यवस्था तो बनाई गई, पर अमल की नौबत अब तक नहीं आई।
लखनऊ (राज्य ब्यूरो)। जो काम सपा और बसपा की सरकारें बीते नौ साल में नहीं कर पाईं, राज्य कर्मचारियों ने उसके लिए अब भाजपा की मौजूदा सरकार से उम्मीदें जोड़ ली हैं। मामला उन हजारों मुकदमों का है, जो सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों और राज्य सरकार के बीच अदालतों में लंबित हैं।
इन मुकदमों को न्यायपालिका से इतर सेवा लोक अदालतें लगाकर शीघ्रता से निपटाने की व्यवस्था तो बनाई गई, पर अमल की नौबत अब तक नहीं आई। कर्मचारियों ने अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस मामले में मध्यस्थता की मांग की है।
लोक निर्माण विभाग के एसी ऑपरेटरों ने वेतन विसंगति को लेकर 2006 में हाईकोर्ट में मामला दायर किया था। 11 साल बाद भी इस पर कोई फैसला नहीं हो सका है। मुकदमा लड़ रहे कर्मचारियों के रिटायर होने पर नए साथी मुकदमे की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं लेकिन, मुकदमा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। इसी तरह हजारों अन्य मुकदमे भी ऐसे हैं, जो सरकारी विभाग की एक बैठक में सुलझ सकते हैं लेकिन, समाधान न निकलने की वजह से हाईकोर्ट में अटक गए हैं।
ऐसे ही मामले जब बड़ी संख्या में अदालत पहुंचने लगे तो हाईकोर्ट को भी सरकार से इन्हें अपने स्तर पर सुलझाने के लिए कहना पड़ा। हाईकोर्ट की मंशा पर राज्य सरकार ने 30 मई, 2008 को विभागीय विवाद फोरम बनाया। इसके तहत हर तीन महीने में सेवा लोक अदालतें लगाकर मुकदमे निपटाए जाने थे पर एक भी अदालत नहीं लगी।
फाइलों में खूब चली अदालत: सेवा लोक अदालत वास्तव में भले न लग पाई हो लेकिन, फाइलों में इसका नाम खूब दौड़ता रहा। अदालत के आयोजन के लिए वर्ष 2014 में एक जुलाई को, 2015 में 19 जून को और 2016 में 27 मई को आदेश हुए लेकिन, ये अदालतें फाइलों से बाहर ही नहीं आ पाईं।
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रिटायर हो गए सदस्य: राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी बताते हैं कि सेवा लोक अदालत के आयोजन के लिए 27 मई, 2016 का आदेश जारी करते समय यह भी नहीं देखा गया कि फोरम के अधिकतर सदस्य सेवानिवृत्त हो चुके हैं। सपा सरकार में तत्कालीन मुख्य सचिव दीपक सिंघल ने भी परिषद के आग्रह पर प्रमुख सचिव न्याय को व्यवस्था लागू करने का निर्देश दिया था, लेकिन इस पर भी अमल नहीं हुआ।