दुर्लभ संयोग: नागपंचमी पर शिव योग में 12 नागों का पूजन
सावन शुक्ल पंचमी की मान्यता नागपंचमी के रूप में है। भगवान शिव के कंठहार बने नाग देव के दर्शन और उनकी पूजा का यह पर्व पर शुक्रवार को है।
लखनऊ (जेएनएन)। सावन शुक्ल पंचमी की मान्यता नागपंचमी के रूप में है। भगवान शिव के कंठहार बने नाग देव के दर्शन और उनकी पूजा का यह पर्व शुक्रवार को है। इस दिन नाग देव को दूध अर्पित कर श्रद्धालु रक्षा की कामना करेंगे। मंदिरों में सर्प दोष निवारण के लिए विशेष पूजन किया जाता है। इस पर्व को गुडिय़ा नाम से भी जाना जाता है। जगह जगह इस मौके पर दंगल और मेला लगता है। सावन मास में शिव के गणों की भी पूजा की जाती है। उल्लेखनीय है कि सावन शुक्ल पंचमी व षष्ठी यदि एक ही दिन मिल रही हों तो नाग प्रसन्न होते हैं, इस बार ऐसा ही हो रहा है। इस बार नागपंचमी 28 जुलाई को मनाई जाएगी। शास्त्रों में द्वादश नाग का वर्णन है। इनका 12 मास की शुक्ल पंचमी पर अलग-अलग पूजन विधान है लेकिन मात्र सावन शुक्ल पंचमी पर पूजन से सभी पंचमी के बराबर फल मिलता है।
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इसलिए मनाते नागपंचमी
काशी में ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार पंचमी तिथि 27 जुलाई को प्रात: 9.40 बजे लग रही है जो 28 को 9.15 बजे तक रहेगी। इस बार नागपंचमी पर शिव योग का दुर्लभ संयोग होगा। नागपंचमी व्रत-पूजन, महात्म्य श्रवण या पाठ करने वाला समस्त पातकों से छूट जाता है। पंचमी पूजा 12 वर्ष करनी चाहिए। पांच फन वाले नाग का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन, द्वादश नाग नाम मंत्र जप करना चाहिए। दूध व लावा-मिश्री का भोग लगाएं। द्वार के दोनों तरफ नागदेव की मूर्ति-चित्र स्थापना करनी चाहिए।
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द्वादश नाग पूजन
- अनंत
- वासुकी
- शेष
- पद्म
- कंबल
- करकोटक
- अश्वतर
- धृतराष्ट्र
- शंखपाल
- कालिय
- तक्षक
- पिंगल
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इसलिए मनाते गुडिय़ा
पं.राधेश्याम शास्त्री ने लखनऊ में बताया कि मान्यता है कि सदियों पहले एक औरत ने नाग देवता को गरुड़ से छिपा लिया था, लेकिन भूल से वह इसकी जानकारी किसी और को भी दे देती है कि नागदेव को कहां छिपा रखा है। नागदेवता इस बात को सुन लेते हैं और श्राप देते हैं कि साल में एक दिन तुम सब पीटी जाओगी। सदियों पुरानी यह किवदंती वर्तमान समय में भी दोहराई जाती है। औरत के प्रतीक कपड़े से बनीं गुडिय़ा को युवतियां पानी के पास या चौराहों पर फेंकती हैं और लड़के उनकी पिटाई करते हैं।
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ज्योतिष में विशेष मान
कुंडली में अनिष्टकारी राहु-केतु की दशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा, गोचर में अनिष्टकारी राहु की फल प्राप्ति या मार्केस हो, उन्हें इस दिन इसकी शांति करानी चाहिए। ज्योतिष ग्रंथों में सर्प दोष वर्णित है जो आधुनिक समय में कालसर्प दोष नाम से जाना जाता है। यह 12 प्रकार के होते हैं पर सभी हानि कारक नहीं होते हैं। काशी में नाग पंचमी पर नागकूप यात्रा दर्शन का महत्व है। श्रावणी उपाकर्म भी इस बार नागपंचमी पर 28 जुलाई को ही होगा। धर्म सिंधु के अनुसार श्रावण पूर्णिमा पर मध्यरात्रि के पूर्व तथा गत रात्रि की अद्र्धरात्रि के बाद उक्त आठ प्रहर में विद्यमान ग्रहण या संक्रांति योग पूर्णिमा तथा श्रवण नक्षत्रों का स्पर्श न होने पर भी नक्षत्र व तिथि को दूषित करता है। इस वर्ष श्रावण पूर्णिमा सात अगस्त सोमवार को चंद्रग्रहण है। अत: उपाकर्म से संबंधित कृत्य श्रावण शुक्ल पंचमी को ही किए जाएंगे।
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चौरसिया समाज का खास पर्व
नागपंचमी के दिन चौरसिया समाज के लोग नागदेव की विशेष पूजा करते हैं। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत का नारी स्वरूप में भगवान विष्णु ने वितरण किया था। देवताओं की लाइन में असुर भी था। इस बीच एक नाग कन्या की मृत्यु हो गई। भगवान विष्णु ने उसकी समाधि बनाई और उस पर पान की बेल लगा दी। इसके बाद से भीट पर पान की खेती होती है। राष्ट्रीय पान किसान यूनियन महासचिव छोटेलाल चौरसिया ने बताया कि ऋषि कश्यप के पुत्रों को चौऋषि कहा जाता था। अब उन्हें चौरसिया के नाम से जानते हैं। पान किसान बारिश में सांप से जानमाल की रक्षा के लिए पूजा करते हैं। पान की बेलों के बीच छिपे रहने वाले सांप पान किसानों को नुकसान न पहुंचाएं, इसलिए पूजा करने की परंपरा है। समाज के लोग पान के भीट और घरों में सांप का पूजन करेंगे।