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दैनिक जागरण के साथ एक नजर में जानें मथुरा के 'महाभारत' की पूरी कहानी

मथुरा के जवाहरबाग में हुए खूनी संघर्ष में अब तक 27 लोगों की मौत होने की सूचना है। हालांकि पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने 24 के मरने की पुष्टि की है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Sat, 04 Jun 2016 01:09 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jun 2016 12:13 PM (IST)

लखनऊ (जेएनएन)। मथुरा के जवाहरबाग में हुए खूनी संघर्ष में अब तक 27 लोगों की मौत होने की सूचना है। हालांकि पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने 24 के मरने की पुष्टि की है। तीन लोगों ने आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान दम तोड़ा है। मृतकों में दो महिलाएं हैं। तीन पुलिसकर्मी लापता हैं, जिनकी तलाश हो रही है। 116 महिलाओं सहित 320 लोग गिरफ्तार हुए हैं। दैनिक जागरण आपको बता रहा है मथुरा कांड की पूरी कहानी। कि कैसे यहां सत्याग्रही पहुंचे और कैसे उन्होंने जवाहर बाग में कब्जा जमाया तथा इस कब्जे को खाली कराने में कैसे एसपी और एसओ शहीद हुए।

कहां से आए इतने उपद्रवी

दो साल पहले ये लोग सागर से चलकर आए थे और दिल्ली जाकर धरना देने वाले थे। इसका नाम इन लोगों ने सत्याग्रही रखा था। दिल्ली में जगह नहीं मिलने की वजह से इन्होंने मथुरा के जवाहर बाग में ही अपना डेरा जमा लिया। यहां प्रशासन से एक दिन धरने की इजाजत ली थी। ये एक दिन का धरना कब्जे में तब्दील हो गया। कथित सत्याग्रहियों ने जवाहर बाग में आम, आंवला और बेर के बाग उजाड़ दिए। सरकारी बाग में 18 लाख रुपए का नुकसान पहुंचाया। उन्होंने सरकारी स्टोर पर कब्जा कर लिया। तीन लाख रुपए की बिजली का इस्तेमाल कर लिया और कई बोरिंग पर कब्जा जमा लिया। नालियां और वॉकिंग ट्रैक उखाड़कर वहां टॉयलेट बना लिए थे और रहने का इंतजाम भी कर लिया था। यह लोग यहां पर 18 अप्रैल 2014 को आए थे। एक दिन दिन प्रदर्शन की इजाजत लेकर जवाहर बाग पर कब्जा कर लिया। तब से यहीं रह रहे थे। शुरुआत में करीब 3-4 सौ लोग यहां आए थे। धीरे-धीरे इनकी संख्या हजारों में पहुंच गई।

इनका नेता कौन था

गाजीपुर निवासी साठ साल का रामवृक्ष यादव इनका नेता था। वह कई साल पहले बाबा जय गुरुदेव के संपर्क में आया और गलत आदतों के कारण वहां से निकाल दिया गया। इसके बाद उसने अपना सम्राज्य बना लिया। लेागों को अपनी बातों में फंसाकर वह धीरे-धीरे करीब हजारों लोगों का नेता बन बैठा। रामवृक्ष जय गुरुदेव की दूरदर्शी पार्टी से लोकसभा और विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुका है। तथा उसको उत्तर प्रदेश आपात काल के समय जेल जाने की वजह से पेंशन भी देती है।

एक याचिका पर हाईकोर्ट ने दिया कब्जा हटाने का आदेश

हाईकोर्ट ने एक याचिका पर मथुरा जिला प्रशासन को जवाहर बाग पर हुआ अवैध कब्जा हटाने का आदेश दिया था। इसके बाद पुलिस ने कब्जा करने वालों को कई बार नोटिस भेजा, लेकिन ये लोग वहां से नहीं हटे। सरकारी जमीन से अवैध कब्जा हटाने से पहले रेकी करने गई पुलिस टीम पर भीड़ ने हमला किया।

घटना वाले दिन क्या हुआ

घटना वाले दिन 150 रंगरूट, चार थानेदार और 40 सिपाही लेकर एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और सिटी मजिस्ट्रेट जवाहरबाग पहुंचे। बैठक में पहले कार्रवाई की पूरी रूपरेखा बनी थी। यह तय हुआ था कि आंसू गैस के गोले, रबड़ बुलट का प्रयोग किया जाएगा। यह कार्रवाई ऑपरेशन के दौरान की जानी थी। एसपी सिटी को जवाहरबाग के पीछे की दीवार तोड़कर यह देखने भेजा गया था कि कब्जाधारी क्या करते हैं। पुलिस की माने तो दीवार तोड़ते ही एसपी सिटी आगे बढ़े। कब्जाधारियों से बातचीत करते, इससे पहले उन्होंने पथराव शुरू कर दिया। भगदड़ मच गई। रंगरूट भाग खड़े हुए। पत्थर लगने पर एसपी सिटी गिर पड़े। आधा दर्जन उपद्रवियों ने उन्हें घेर लिया। लोहे की रॉड से उनके सिर पर ताबड़तोड़ वार शुरू कर दिए। यह देख एसओ फरह संतोष कुमार यादव उन्हें बचाने पहुंचे। उपद्रवियों ने एसओ को गोली मार दी। वह मौके पर ही गिर पड़े। अफरा-तफरी मच गई। इस बीच पुलिस वालों ने एसपी सिटी की ऐसी हालत देखी तो वे आपा खो बैठे। दोनो और से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। दोनों तरफ से गोलियां चलने लगीं। इसी दौरान अपने आपको फंसता देख रामवृक्ष ने आग लगा दी और भाग खड़ा हुआ।

अभी तक नहीं हुई मृतकों की शिनाख्त

लेकिन अभी तक सवाल बना हुआ है कि एसपी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष यादव के अलावा मरने वाले कौन थे। कहां से आए थे। इनकी अभी तक कोई पहचान नहीं हो सकी है। पुलिस भी इनकी पहचान नहीं कर सकी है। आखिर इसमें मरने वालों में असली दोषी शामिल हैं अथवा निर्दोषों की भी मौत हुई है।

उपद्रवियों को था पॉलिटिकल सपोर्ट ?

-सीएम अखिलेश यादव के चाचा और उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव जय गुरुदेव के करीबी रहे हैं। रामवृक्ष यादव उन्हीं जय गुरुदेव का चेला था। ऐसी भी खबर है कि रामवृक्ष और उसके समर्थकों का वोटर आईडी भी बना हुआ था। इन लोगों को कब्जे वाली जगह से नहीं हटाने का प्रशासन पर पॉलिटिकल प्रेशर भी था।

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