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एक तिहाई अदालतें रिक्त, कैसे मिले शीघ्र न्याय

बस्ती: जनपद न्यायलय में ग्यारह अदालतें रिक्त हैं जिसमें से आठ दीवानी मामलों की सुनवाई करने वाली अदाल

By Edited By: Published: Sat, 09 Jul 2016 10:24 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jul 2016 10:24 PM (IST)

बस्ती: जनपद न्यायलय में ग्यारह अदालतें रिक्त हैं जिसमें से आठ दीवानी मामलों की सुनवाई करने वाली अदालत हैं। खाली अदालतों में एक सत्र न्यायाधीश की भी अदालत है। अदालतों के रिक्त होने का सबसे ज्यादा नुकसान ऐसे वादकारियों का है, जिनकी जमीन जायदाद, हक आदि का मुकदमा विचाराधीन है। दीवानी प्रकृति के मुकदमों की पैरवी करने वाले अधिवक्ताओं के लिए अदालतों का रिक्त होना ¨चता का विषय हो गया है। न्यायिक अधिकारियों के जितने पद सृजित है, उन पर अधिकारियों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है। तो सरकार के पांच सौ न्यायाधीशों के पद सृजित करने से क्या होने वाला है। स्थानीय जनपद में 33 अदालतें सृजित है, जिसमें से ग्यारह रिक्त हैं। मई के महीने में पांच न्यायाधीशों को स्थानांतरित किया गया। इसके सापेक्ष पांच की तैनाती कर दी गई। जून जुलाई के महीने में दो जूनियर डिविजन व एक अपर जिला जज कोर्ट के अधिकारी का तबादला कर दिया गया। इसकी भरपाई नही की गई। वर्तमान समय में सिविल जज जूनियर डिविजन के आठ कोर्ट खाली है। जिसकी वजह से दीवानी मुकदमों का काम, काज ठप हो गया है। फौजदारी का काम देखने वाले न्यायिक दंडाधिकारी भी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं। जनपद में महिला थाना को लेकर कुल सत्रह थाने हैं। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी श्रीमती शैला पांच महीने से अवकाश पर हैं, ऐसे में इन सत्रह थानों की जिम्मेदारी तीनों मजिस्ट्रेटों के हवाले है। सरकार ने पांच सौ नए न्यायाधीशों का पद सृजित किया है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अधिवक्ता रामबुझारत पांडेय कहते हैं, कि पहले खाली अदालतों का भरा जाना जरूरी है। जितनी अदालतें अस्तित्व में है, उनमें पीठासीन अधिकारी नियुक्त कर दिये जाएं तो वादकारियों के शीध्र न्याय पाने का सपना पूरा हो सकेगा। अधिवक्ता रामकृष्ण पाठक भी कहते है कि इस अनुपात में फौजदारी मुकदमों का निस्तारण होता है। उसी अनुपात में दीवानी मुकदमें निस्तारित नही हो पा रहे हैं। सरकार को दिखावा नही करना चाहिए। पहले पांच सौ न्यायिक अधिकारियों की भर्ती कर खाली अदालतों में लगाया जाए फिर प्रदेश सरकार को नई सृजन अदालतों की बात करनी चाहिए। इस संबध में अली अहमद मानते हैं अगर अदालतों का कार्यक्षेत्र बार-बार न बदला जाए तो मुकदमों के निस्तारण में गति आ सकती है।


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