दिल्ली-6 और नेहरू का ससुराल
कभी गुलजार रहने वाला गांधी-नेहरू परिवार से जुड़ा यह घर अब जर्जर हो चुका है। बंद पड़ा है। इधर स्वाधीनता आंदोलन के दौर में स्वाधीनता सेनानियों की बैठके निरंतर होती थीं।
गांधी-नेहरू परिवार से जुड़ा दिल्ली-6 का घर गुमनामी में रहा। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू इधर ही कमला जी से शादी करने बैंड, बाजा, बरात के साथ 8 फरवरी 1916 को आए थे। ये घर सीताराम बाजार में है। पंडित नेहरू इधर शादी के बाद कभी नहीं आए। लेकिन इंदिरा जी तो अपनी मां के घर से अपने को भावनात्मक स्तर पर जुड़ा हुआ महसूस करती थीं।
जाहिर है कि दिल्ली-6 का यह घर उनकी मां कमला नेहरू का था। इधर ही उनकी मां पली-बढ़ीं और फिर पंडित नेहरू की बहू बनकर इलाहाबाद के भव्य-विशाल आनंद भवन में गईं। यदि इंदिरा गांधी को छोड़ दिया जाए तो माना जा सकता है कि परिवार के अन्य सदस्यों का इसको लेकर रवैया बेरुखी भरा ही रहा। शायद ही इसमें कभी इधर राजीव गांधी या संजय गांधी आए हों। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और वरुण गांधी की तो बात ही मत कीजिए।
कभी गुलजार रहने वाला गांधी-नेहरू परिवार से जुड़ा यह घर अब जर्जर हो चुका है। बंद पड़ा है। इधर स्वाधीनता आंदोलन के दौर में स्वाधीनता सेनानियों की बैठके निरंतर होती थीं। कमला जी का परिवार दिल्ली की कश्मीरी पंडित बिरादरी में नामचीन था। घर में कवि सम्मेलन और मुशायरे लगातार आयोजित होते थे।राजधानी में 19 वीं सदी के मध्य में कश्मीर से काफी तादाद में कश्मीरी पंडितों के परिवार आकर बस गए थे। तब उत्तर प्रदेश के दो शहरों क्रमश इलाहाबाद और आगरा में भी बहुत से कश्मीरी पंडितों के परिवार आ गए थे। इनके कुल नाम हक्सर, कुंजरू, कौल, टिक्कू वगैरह थे। कमला जी का भी परिवार उसी दौर में इधर आकर बसा था। कश्मीरी जुबान तक कहीं पीछे छूट गई और उसकी जगह ले ली हिन्दुस्तानी ने। कमला जी ने जामा मस्जिद के करीब स्थित इंद्रप्रस्थ स्कूल से शिक्षा ग्रहण की थी। ये स्कूल अब भी चल रहा है। इसे आप दिल्ली में लड़कियों का पहला स्कूल मान सकते हैं। इसी स्कूल का मैनेजमेंट इंद्रप्रस्थ कालेज भी चलाता है। इंदिरा जी के ननिहाल वालों ने अपने घर को 60 के दशक में बेच दिया। बस, तब ही से इसके बुरे दिन शुरू हो गए। फिर इसे देखने वाला कोई नहीं रहा। अब तो नेहरू जी के ससुराल का रास्ता बताने वाला भी आपको दिल्ली-6 में मुश्किल से ही कोई मिलेगा। हां, कुछ बड़े-बुजुर्गों की ख्वाहिश है कि गांधी-नेहरू परिवार से जुड़े इस घर को स्मारक का दर्जा मिल जाए। इधर एक पुस्तकालय बन जाए जहां आकर लोग पढ़ सकें। इंदिरा जी चुनाव प्रचार के दौरान इस घर
के पास आकर अवश्य ही ठहर जाती थीं या कहें कि ठिठक जाया करती थीं। वे दिल्ली-6 में होने वाली चुनावी सभाओं में वे यह भी बताना नहीं भूलती थीं कि उनकी ननिहाल सीताराम बाजार में ही थी। वे साल 1980 में फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी मां के घर आईं थीं। उनके साथ उनके सचिव आरके धवन और दिल्ली के उस दौर के शिखर नेता हरिकिशन लाल भगत भी थे। जाहिर तौर पर उनके अपने घर आने के खबर से वहां पर भारी भीड़ एकत्र हो गई थीं। 30-40 मिनट वो मां के घर ठहरी थीं। घर के एक-एक हिस्से को उन्होंने करीब से देखा।
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