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Shani Pujan: नाराज शनि को करना है प्रसन्न, तो इन नियमों के साथ करें पूजा

शनिवार के दिन भगवान शनि की पूजा होती है। इस पवित्र दिन जो भक्त भगवान शनि की पूजा करते हैं और उनके लिए उपवास रखते हैं उन्हें कर्मफल दाता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके साथ ही कुंडली से शनि दोष का बुरा प्रभाव भी कम होता है। इसके अलावा शनिवार की शाम शनि कवच का पाठ (Shani Kavach) भी बहुत अच्छा माना गया है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Published: Sat, 11 May 2024 01:10 PM (IST)Updated: Sat, 11 May 2024 01:10 PM (IST)
Shani Kavach Ka Path: भगवान शनि की पूजा

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Kavach Ka Path: भगवान शनि की पूजा बेहद शुभ मानी गई है। उन्हें न्याय और कर्म का स्वामी ग्रह भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि वे लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल प्रदान करते हैं। शनिवार के दिन भगवान शनि की पूजा होती है। इस पवित्र दिन जो भक्त भगवान शनि की पूजा करते हैं और उनके लिए उपवास रखते हैं उन्हें कर्मफल दाता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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इसके साथ ही कुंडली से शनि दोष का बुरा प्रभाव भी कम होता है। इसके अलावा शनिवार की शाम 'शनि कवच' का पाठ (Shani Kavach) भी बहुत अच्छा माना गया है, जो इस प्रकार है -

शनिदेव पूजन विधि

  • जातक सबसे पहले पवित्र स्नान करें।
  • इसके बाद शनि मंदिर जाएं।
  • शनि देव के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
  • इसके बाद पीपल के पेड़ के सामने दीया जलाएं।
  • 7 बार पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करें।
  • फिर शनि कवच का पाठ करें।
  • अंत में आरती से पूजा समाप्त करें।

''शनि कवच''

अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,

शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः

नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।

चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।

श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।

कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।

शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।

ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।

नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।

नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।

स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।

वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।

नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।

ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।

पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।

अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।

न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।

व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।

कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।

कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।

इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।

जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।

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अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।


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