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भक्तों ने इतना घी चढ़ाया कि नौ कुएं भर गए

बूंद-बूंद से घड़ा भरना तो सभी ने सुना होगा, यहां तो कुएंनुमा गड्ढे भर गए। पानी से नहीं, शुद्ध घी से। एक-दो नहीं, पूरे नौ। मध्य प्रदेश के दतिया से 17 किलोमीटर दूर उनाव के बालाजी सूर्य मंदिर परिसर में यह देखा जा सकता है। यहां अखंड ज्योति के लिए

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Tue, 03 Mar 2015 03:47 AM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2015 08:26 AM (IST)
भक्तों ने इतना घी चढ़ाया कि नौ कुएं भर गए

दतिया, [सुरेंद्र झा]। बूंद-बूंद से घड़ा भरना तो सभी ने सुना होगा, यहां तो कुएंनुमा गड्ढे भर गए। पानी से नहीं, शुद्ध घी से। एक-दो नहीं, पूरे नौ। मध्य प्रदेश के दतिया से 17 किलोमीटर दूर उनाव के बालाजी सूर्य मंदिर परिसर में यह देखा जा सकता है। यहां अखंड ज्योति के लिए भक्तों ने 50 साल में इतना घी चढ़ा दिया कि कुएं बनवाने पड़े। एक दिन में आठ किलो घी उपयोग होता है, जबकि एक दिन में 17 किलो से अधिक घी चढ़ावे में आता है। एक सप्ताह में यह घी सवा क्विंटल हो जाता है। अलग-अलग पर्वों पर आने वाले अतिरिक्त चढ़ावे को मिलाकर हर साल आठ टन का भंडार हो जाता है। घी को इकट्ठा करने के लिए पहले एक कुआंनुमा गड्ढा बनाया गया, जब भर गया तो दूसरा। इस तरह पूरे नौ हो गए।

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चार मौकों पर चार टन का चढ़ावा

मान्यता है कि यहां शुद्ध घी चढ़ाने की परपंरा लगभग 400 साल पहले मंदिर की स्थापना के समय से शुरू हुई थी। मनोकामनाएं पूरी करने, कुष्ठ-चर्म रोग से मुक्ति पाने, संतान एवं यश प्राप्ति के लिए लोग यहां शुद्ध घी चढ़ाते हैं। बालाजी सूर्य मंदिर में मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, रंग पंचमी और डोल ग्यारस पर ही पूरे साल के बराबर शुद्ध घी चढ़ावे में आ जाता है। हर मौके पर भक्त 10 क्विंटल से ज्यादा घी चढ़ाकर जाते हैं। प्रत्येक रविवार और बुधवार को ही भक्त एक क्विंटल से ज्यादा शुद्ध घी चढ़ा देते हैं। पुजारी रामाधार पांडे के मुताबिक घी रखने के लिए पहले जमीन में लोहे के टैंकर की तरह सात गड्ढे बनाए गए।

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