होली के बाद बांके बिहारी ने खाई जलेबी
चांदी का सिंहासन और सफेद धवल वस्त्र, सोलह श्रृंगार करके जब ठा. बांकेबिहारीजी ने जब चांदी की पिचकारी से भक्तों के संग होली खेलना शुरू किया, तो हर ओर उमंग और अल्हड़पन का माहौल बना नजर आया। मंदिर में चारों ओर उड़ता अबीर-गुलाल और होली के रसिया की स्वर लहरियों
मथुरा (वृंदावन)। चांदी का सिंहासन और सफेद धवल वस्त्र, सोलह श्रृंगार करके जब ठा. बांकेबिहारीजी ने जब चांदी की पिचकारी से भक्तों के संग होली खेलना शुरू किया, तो हर ओर उमंग और अल्हड़पन का माहौल बना नजर आया। मंदिर में चारों ओर उड़ता अबीर-गुलाल और होली के रसिया की स्वर लहरियों के बीच हर कोई नाचने को मजबूर हो गया।
रंगभरनी एकादशी पर बांकेबिहारी मंदिर में रविवार सुबह से ही भक्तों का भारी हुजूम उमड़ पड़ा। शाम को मंदिर में होली शुरू होने के इंतजार में भक्तों ने डेरा डाल लिया। जैसे ही साढ़े चार बजे मंदिर के पट खुले, भक्तों का हुजूम मंदिर में उमड़ पड़ा। ठाकुरजी का मनमोहक रूप भक्तों को खुद ही आकर्षित कर रहा था, उसके ऊपर से रंगों की बौछार ने सभी को भक्ति और आस्था में तर-बतर कर दिया। रंगीली होली देर शाम शयनभोग आरती के बाद ही समाप्त हुई।
होली खेलने के बाद ठा. बांकेबिहारीजी को शयनभोग में गरम जलेबी परोसी गई। मंदिर सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी के अनुसार प्राचीन परंपरा है कि होली खेलने के बाद भोग में प्रभु को गरम जलेबी परोसी जाती है। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि रंगों की होली खेलने के बाद गले में रंग का जो भी असर होता है, गरम जलेबी के रस के साथ वह निकल जाता है।