केदारनाथ त्रासदी को याद कर दिल आज भी रोता है ...
यादों के धूंधले दर्पण में क्या खोया है क्या पाया है, क्यों मन कहने को प्यारा है, जब इसमें दर्द भरा ही है... केदारनाथ त्रासदी को याद कर शायद दिल यही कुछ कहता है।
यादों के धूंधले दर्पण में क्या खोया है क्या पाया है,
क्यों मन कहने को प्यारा है, जब इसमें दर्द भरा ही है.....
केदारनाथ की त्रासदी को याद कर शायद दिल यही कुछ कहता है। केदारनाथ मंदिर के पास शांत बह रही मंदाकिनी के नवनिर्मित किनारे पर खडे होकर तीन साल पहले आज के ही दिन 16 जून की रात्रि में नदी के उस रौद्र रूप के बारे में सोच पाना भी मुश्किल है जब उसके पानी में आये प्रल्यकारी उफान में हिमालयी धाम के डूबने के साथ ही देश भर से आये श्रद्धालु, पुजारी, व्यापारी और स्थानीय लोगों सहित करीब हजारों जिंदगियां बह गयी थीं। पूरे देश को हिलाकर रख देने वाली इस आपदा के निशान दूर होने और पुनर्निर्माण कार्य के एक बड़े हिस्से के पूरा होने के साथ ही आज केदारनगरी फिर से लोगों के आने जाने और सभी प्रकार की गतिविधियों के शुरू होने से गुलज़ार नज़र आने लगी है। नदी के सामने से शुरू होकर केदारनाथ मंदिर तक जाने वाली 50 फुट चौड़ी सड़क, हेलीकाप्टरों के लिये एक बडा हेलीपैड और श्रद्धालुओं के ठहरने के लिये सुंदर कॉटेज सहित कई प्रकार की आधारभूत सुविधाओं के विकास के कारण केदारनाथ क्षेत्र काफी शानदार नजर आ रहा है।
इस सबके कारण मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है और पिछले महीने ही शुरू हुई चारधाम यात्रा के दौरान अब तक केदारनाथ में दो लाख से ज्यादा तीर्थयात्री आ चुके हैं। केदारनाथ मंदिर को खुले एक महीने से कुछ ही ज्यादा समय हुआ है लेकिन अभी तक दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु मंदिर दर्शन के लिए आ चुके हैं। अगर यही क्रम जारी रहा तो उम्मीद है कि छह माह बाद यात्रा सीजन की समाप्ति तक केदारनाथ में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या रिकॉर्ड सात लाख तक पहुंचेगी।
उत्तरकाशी स्थित नेहरू इंस्टीटयूट ऑफ माउंटेनियरिंग (निम) के अनुसार केदारनाथ में 80 फीसदी पुनर्निर्माण कार्य हो चुका है जबकि बचा हुआ 20 फीसदी काम भी अगले दो माह में पूरा हो जाएगा। क्षेत्र में बहुत सारे निर्माण कार्य का श्रेय निम को जाता है।’ निम ने केदारनथ से लाखों टन मलबा हटाने, मंदाकिनी से मंदिर तक सड़क बनाने, हेलीपैड बनाने और श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर के निकट 25 कॉटेज बनाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। मंदिर तथा तीर्थ पुरोहितों के घरों के चारों तरफ एक त्रिस्तरीय सुरक्षा दीवार अभी बनानी है और उसके भी इस सीजन के अंत तक पूरा हो जाने की संभावना है। निम के करीब 700 प्रशिक्षित कर्मियों के साथ 11,755 फुट की उंचाई पर स्थित मंदिर क्षेत्र में दिन-रात काम करने के दौरान इनकी आने वाली चुनौतियों में इस दौरान सबसे बड़ी चुनौती बर्फ को साफ करना था जिसके नीचे लाखों टन मलबा दबा था।
दूसरी बड़ी चुनौती इनके प्रशिक्षित लोगों को उस जगह पर काम करने के लिए प्रेरित करना था जहां कुछ समय पहले इतनी बडी आपदा आई हो। कई लोग केवल एक दिन बाद ही अपने अस्थायी टैंटों में से भाग गए क्योंकि उन्हें उस जगह पर कुछ डरावना सा महसूस हो रहा था। शून्य से नीचे 18-19 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी यहां काम होता रहा ।
आज की हालात
16 जून 2013 को आई आपदा के जख्म तीन साल बाद भी नहीं भर पाए हैं। आज आपदा को तीन साल पूरे हो गए, लेकिन यहां के लोगों को आज भी उन सड़कों और पुलों का इंतजार है जो आपदा में बह गए थे । अभी हालत ये भी है कि मंदाकिनी और अलकनंदा पर तीन साल में सिर्फ दो ही पुल बन सके हैं । केदारघाटी के आपदा पीड़ित तीन साल बाद भी झूलापुल के लिए तरस रहे हैं विजयनगर से लेकर कालीमठ घाटी तक झूलापुलों का निर्माण नहीं हो पाया है । आपदा में बहे पुलों के निर्माण का कार्य आज तक पूरा नहीं हो पाया है । करोड़ों रूपये खर्च तो किये गये, मगर जनता को पूरी तरह राहत नहीं मिल पाई है।
आपदा का खौफ आज भी बना है। भूस्खलन और बाढ़ के खतरे के लिहाज से संवेदनशील 352 गांव आज भी पुनर्वास का इंतजार कर रहे हैं। कहीं आपदा में बहे पुल नहीं बनाए जा सके और कहीं अभी भी मलबा पड़ा है। आपदा में अपने लोगों को खो चुके अधिकतर परिवारों का जीवन पटरी पर नहीं आ सका।
केदारनाथ को छोड़ दिया जाए तो शेष आपदा पीडित जिलों में पुननिर्माण की गति बेहद धीमी है। सैंकड़ों स्कूल, अस्पताल और सरकारी योजनाओं का निर्माण अभी तक नहीं हुआ है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार केदारनाथ आपदा में कुल 5000 लोगों की मौत हुई या वे लापता हो गए। इसमें से 994 अकेले उत्तराखंड के हैं। इस भीषण त्रासदी से निपटने के लिए केंद्र ने सात हजार करोड़ रुपये का पैकेज मंजूर किया गया। इसमें तीन हजार करोड़ का प्रोजेक्ट पुनर्निर्माण कार्यों के लिए, 11 सौ करोड़ एसपीएआर और 18 सौ करोड़ सीएसएसआर के तहत खर्च किए जाने हैं। इस राशि में से राज्य सरकार अभी तक पुनर्निर्माण, मुआवजा और सभी प्रकार की राहत के कार्य में अभी तक 15 सौ करोड़ खर्च कर चुकी है। इस मद में अभी 55 सौ करोड़ के काम बाकी हैं।
आपदा की वजह से सर्वाधिक प्रभावित हुई केदारघाटी का जन जीवन आज भी पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौट पाया है। घर में रोजी रोटी की जुगाड करने वालेे की मौत के बाद सैकड़ों की संख्या में महिलाएं आज भी आजीविका के लिए जूझ रही है। साथ ही अनाथ हो गए बच्चों के लिए भी सरकार की ओर से कोई ठोस योजना नहीं आ पाई। घाटी में आज भी बड़ी संख्या में लोगों के सामने रोजगार और आजीविका का संकट बरकरार है। इस वजह से पिछले तीन सालों में पलायन बढ़ गया है। आज भी चारधाम यात्रा तो चालू हो गया है पर क्या इस यात्रा से जिन्होंने अपनों को खो दिया उनकी जीवन की यात्रा क्या सुखद चल रही है.... शायद हां..... शायद नहीं......
[ प्रीति झा ]