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Ganga Saptami 2024: गंगा जी में गलती से भी न डालें ये चीजें, वरना जीवन भर रहेंगे परेशान

हिंदू धर्म में गंगा सप्तमी (Ganga Saptami 2024) का दिन बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन लोग देवी गंगा की पूजा करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार यह त्योहार हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां गंगा की पूजा करने से पापों का नाश होता है।

By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Published: Thu, 09 May 2024 11:41 AM (IST)Updated: Thu, 09 May 2024 11:41 AM (IST)
Ganga Saptami 2024: गंगा सप्तमी पर गंगा जी में न डालें ये चीजें

 धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Ganga Saptami 2024: गंगा सप्तमी सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। जैसा कि नाम से पता चलता है, यह देवी गंगा की पूजा के लिए समर्पित है। यह पर्व वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 14 मई, 2024 को मनाया जाएगा, तो आइए इस दिन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं -

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गंगा सप्तमी पर गंगा जी में न डालें ये चीजें

  • गंगा सप्तमी के दिन गंगी जी में अस्थियां डालने से बचना चाहिए।
  • इस दिन इसमें भूलकर भी पुराने वस्त्र नहीं डालने चाहिए।
  • शैम्पू, साबुन स्नान आदि की चीजें गंगा जी में डालने से बचना चाहिए।
  • इस दिन हवन व पूजन सामग्री जो पहले की हो उन्हें डालने से बचना चाहिए।
  • गंगा स्नान के समय पवित्रता का खास ख्याल रखना चाहिए।
  • इस तिथि पर देवी गंगा का ध्यान करते हुए स्नान करना चाहिए।
  • गंगा सप्तमी के दिन अशुद्ध चीजों को गंगा नदी में डालने से बचना चाहिए।

गंगा सप्तमी तिथि और समय

हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली सप्तमी तिथि की शुरुआत 13 मई, 2024 शाम 5 बजकर 20 मिनट पर होगी। वहीं, अगले दिन यानी 14 मई, 2024 शाम 6 बजकर 49 मिनट पर इस तिथि का समापन होगा। पंचांग को देखते हुए गंगा सप्तमी का पर्व 14 मई, 2024 को मनाया जाएगा।

गंगा सप्तमी के दिन करें मां गंगा की इस स्तुति का पाठ

गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् । त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥

देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे । शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥

भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम्

हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम्

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् । मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥

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डिसक्लेमर- 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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