अच्छे वातावरण में ही टिकती हैं लक्ष्मी
कानपुर। पुराणों में लिखा है कि कार्तिक मास की अमावस्या की रात में भगवती लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। जिस घर में शांत वातावरण, स्वच्छता और पर्याप्त प्रकाश होता है तथा जहां उनके स्वागतार्थ भक्तजन भजन-कीर्तन, जप, हवन, स्तोत्र-पाठ करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, वहां धन-संपत्ति की अधिष्ठात्री विष्णप्रिया लक्ष्मी ठहरकर विश्राम करती हैं। स्थान और लोग पस
कानपुर। पुराणों में लिखा है कि कार्तिक मास की अमावस्या की रात में भगवती लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। जिस घर में शांत वातावरण, स्वच्छता और पर्याप्त प्रकाश होता है तथा जहां उनके स्वागतार्थ भक्तजन भजन-कीर्तन, जप, हवन, स्तोत्र-पाठ करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, वहां धन-संपत्ति की अधिष्ठात्री विष्णप्रिया लक्ष्मी ठहरकर विश्राम करती हैं। स्थान और लोग पसंद आ जाने पर जगदंबा वहीं पर वास करने लगती हैं। इसीलिए शास्त्रों में दीपावली की रात को सुखरात्रि कहा गया है। संसार के सभी सुख लक्ष्मी जी की अनुकंपा से ही प्राप्त होते हैं।
यह जानकारी देते हुए भारतीय ज्योतिष विद्यापीठ के अध्यक्ष डॉ. अतुल टंडन ने बताया कि ऐसी जनश्रुति है कि कार्तिकी अमावस्या के दिन समुद्र मंथन से जब भगवती लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, तब देवताओं ने उनके स्वागत में दीपोत्सव किया था। इस प्रकार दीपावली कमला जयंती होने से लक्ष्मी पूजा का महापर्व बन गई। चातुर्मास में भगवान विष्णु के योगनिद्रालीन होने के कारण कार्तिकी अमावस्या (दीपावली) में भगवती लक्ष्मी का पूजन श्री हरि के बिना होता है। देवगणों के अधिपति गणपति देव-समुदाय का प्रतिनिधित्व करने तथा प्रथम पूज्य होने के कारण दीपावली पूजा में सम्मिलित होते हैं।
प्रदोष काल में करें दीपदान :
डॉ. अतुल टंडन के मुताबिक, दीपावली का दीपोत्सव (दीपदान) सूर्यास्त से 2 घंटा 24 मिनट की अवधि तक व्याप्त प्रदोषकाल में करना शुभ फलदायक है।
शुभ मुहूर्त में पूजा :
डॉ. टंडन के अनुसार, दीपावली की पूजा का प्रथम शुभ मुहूर्त ज्योतिष के अनुसार, सूर्योदय से 7 घटी (2 घंटा 48 मिनट) के बाद प्रारंभ होकर ठीक इतनी ही अवधि अर्थात 2 घंटा 48 मिनट तक रहेगा। यह मुहूर्त दीपावली का रजतकाल होगा, जिसमें आवाहन करने पर भगवती लक्ष्मी चांदी की पालकी पर सवार होकर आएंगी। वहीं दूसरा शुभ मुहूर्त सूर्यास्त से 2 घटी (48 मिनट) पश्चात प्रारंभ होकर 10 घटी (4 घंटा) तक रहेगा। यह अवधि दीपावली का स्वर्णकाल होगी, जिसमें लक्ष्मी जी सोने की पालकी में बैठकर आएंगी। ये दोनों मुहूर्त अपने नाम के अनुरूप सभी को शुभ फलदायक रहेंगे। इनमें चंचला लक्ष्मी को स्थिरता प्रदान करने की क्षमता भी है।
शुभलक्षणा मूर्तियां चुनें :
डॉ. टंडन बताते हैं, दीपावली पूजा हेतु शुभ लक्षणों वाली मूर्तियों को चुनें। प्रतिमाओं के अंग प्रत्यंग स्पष्ट और सुंदर होने चाहिए। उनकी मुखमुद्रा और नेत्रों पर विशेष ध्यान दें। वे प्रसन्न और चैतन्य दिखनी चाहिए। खंडित एवं अंगहीन प्रतिमा पूजा में ग्रहण नहीं की जाती। गणेश जी की सूंडयदि उनकी दाहिनी ओर मुड़ी हो, तो वे अतिशीघ्र फल देते हैं। बाईं ओर मुड़ी सूंड़ वाले गणेश जी शांत और सौम्य माने गए हैं। गज (हाथी) अथवा कमल पर बैठी लक्ष्मी जी उलूकवाहना स्वरूप की अपेक्षा विशेष शुभ मानी गई हैं।
पूजा में कर्मकांड नहीं, हो भक्तिभाव :
डॉ. टंडन कहते हैं, दीपावली की पूजा में कर्मकांड के बजाय भक्ति भाव को प्रधानता दें। यदि कोई सुयोग्य आचार्य पूजा-कार्य का निर्देशन करने हेतु उपलब्ध हो जाए, तो ठीक है, अन्यथा श्रद्धापूर्वक भक्तिभाव से स्वयं ही पूजा करें। लक्ष्मी भक्तिभाव पर ही मुग्ध होती है, आडंबर पर नहीं। पूजा के समय लक्ष्मी जी की प्रतिमा गणेश जी की दाहिनी तरफ स्थापित करें। पूजन का शुभारंभ अखंड दीपक जला कर करें। तदोपरांत पंचोपचार-गंध (रोली), अक्षत (चावल), पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) अर्पित करें। गणेश जी को पीला तथा लक्ष्मी जी को लाल रंग का वस्त्र पहनाया जाता है। गणेश जी को पूजन सामग्री ऊं श्री गणेशाय नम: तथा लक्ष्मी जी को ऊं महालक्ष्म्यै नम: मंत्र पढ़कर चढ़ाएं। कलम में सरस्वती, स्याही की दवात में काली तथा कैशबॉक्सया तिजोरी में कुबेर की पूजा भी होती है। पूजा पूर्वाभिमुख होकर करना शुभ होता है।
अलक्ष्मी का निवारण :
डॉ. अतुल टंडन के अनुसार, नारदसंहिता में लिखा है कि कार्तिकी अमावस्या के दिन तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में गंगा जी का वास होता है, अत: इस दिन तेल की मालिश करके स्नान करने से अलक्ष्मी (दरिद्रता) धुल जाती है तथा साधक लक्ष्मी पूजा हेतु तैयार हो जाता है।
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