सावन में इस तरह की गई शनिदेव की पूजा कई ग्रह- बाधा नाशक होती है
सावन मास में की गई शिव उपासना से शनि दोष का शमन होता है इसलिए पीड़ादायक शनि दशा, साढ़े साती या शनि दोष शांति निम्न महामृत्युंजय शिव उपासना बहुत प्रभावशाली है।
माना जाता है कि सावन में शनिदेव की पूजा करने से शनि के कोप का भाजन बनने से बचा जा सकता है यदि पहले से ही कोई शनि के प्रकोप का झेल रहा है तो उसके लिये भी यह दिन बहुत ही कल्याणकारी हो सकता है। आइये जानते हैं कैसे करें शनिदेव की पूजा और क्या है उसका महत्व? सावन मास में की गई शिव उपासना से शनि दोष का शमन होता है इसलिए पीड़ादायक शनि दशा, साढ़े साती या शनि दोष शांति निम्न महामृत्युंजय शिव उपासना बहुत प्रभावशाली है।
महामृत्युंजय मंत्र काल, रोग, दु:ख के नाश के लिए अचूक है। इस महामृत्युंजय मंत्र को रुद्राक्ष माला और कुशा-आसान पर बैठकर शिव-शनि की निम्न लिखित शास्त्रोक्त विधि से पूजन करें:
कैसे करें शनिदेव की पूजा :
सूर्यादय पूर्व नित्यकर्म से निवृत हो जाएं। किसी भी शिवालय में शिवलिंग पर शुद्ध जल में काले तिल डालकर अर्पित करें। चंदन, अक्षत, सफेद फूल, बिल्वपत्र चढाएं। तदुपरांत शनिदेव यंत्र स्थापित कर तेल अर्पित कर गंध, फूल, काले तिल, काला वस्त्र चढ़ाकर पूजा यंत्र की पूजा करें। शिवलिंग पर दूध से बने मिष्ठान और शनि यंत्र पर तेल में तले व्यंजनों का भोग लगाएं। शिव-शनि पूजा उपरांत महामृत्युंजय मंत्र का एक माला (108) जाप करें:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
मंत्र जाप पश्चात शिव-शनि की आरती करें। शिव आरती में शुद्ध घी व कर्पूर का प्रयोग करें और शनि आरती तेल के दीप से करें। पूजा-आरती के पश्चात शिव-शनि से निरोगी, निर्भय व सुखी जीवन की कामना हेतु आग्रह करें।
जो व्यक्ति मंत्र उच्चारण नहीं कर सकते है, वे मात्र पंचाक्षरी मन्त्र "नमः शिवाय" से सामग्री ईश्वर पर अर्पित कर सकते हैं।
शनिदेव की पूजा भी बाकि देवी-देवताओं की पूजा की तरह सामान्य ही होती है। प्रात:काल उठकर स्नानादि से शुद्ध हों। फिर लकड़ी के एक पाट पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर रखकर उसके दोनों और शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएं। शनिदेवता के इस प्रतीक स्वरूप को पंचगव्य, पंचामृत, इत्र आदि से स्नान करवायें। इसके बाद अबीर, गुलाल, सिंदूर, कुमकुम व काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। तत्पश्चात इमरती व तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य अपर्ण करें। पूजन के बाद शनि मंत्र का कम से कम एक माला जप भी करना चाहिये। माला जपने के पश्चात शनि चालीसा का पाठ करें व तत्पश्चात शनि महाराज की आरती करें।
मात्र श्रद्धा और अनन्य भक्ति की आवश्यकता है। इस प्रकार के विशेष पूजन से जन्म-जन्मांतर के पापों का सर्वनाश हो जाता है। श्रावण मास में भोलेनाथ की पूजा का फल प्राप्त किया जा सकता है। विशेष शनिकृत पीड़ा चाहे वह साढ़ेसाती हो या शनि की दशान्तर्दशा हो, शनिजन्य चाहे कोई भी पीड़ा क्यों न हो। हर तरह के कष्टों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है ।
कौन हैं शनिदेव
शनिदेव भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं। इन्हें क्रूर ग्रह माना जाता है जो कि इन्हें पत्नी के शाप के कारण मिली है। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण है व ये गिद्ध की सवारी करते हैं। फलित ज्योतिष के अनुसार शनि को अशुभ माना जाता है व 9 ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। ये एक राशि में तीस महीने तक रहते हैं तथा मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं। शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है। शनि की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से 95वें गुणा ज्यादा मानी जाती है। माना जाता है इसी गुरुत्व बल के कारण हमारे अच्छे और बूरे विचार चुंबकीय शक्ति से शनि के पास पंहुचते हैं जिनका कृत्य अनुसार परिणाम भी जल्द मिलता है। असल में शनिदेव बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं। यदि आप किसी से धोखा-धड़ी नहीं करते, किसी के साथ अन्याय नहीं करते, किसी पर कोई जुल्म अत्याचार नहीं करते कहने तात्पर्य यदि आप बूरे कामों में संलिप्त नहीं हैं तब आपको शनि से घबराने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि शनिदेव भले जातकों को कोई कष्ट नहीं देते।
इन बातों का रखें ध्यान
शनि देव की पूजा करने के दिन सूर्योदय से पहले शरीर पर तेल मालिश कर स्नान करना चाहिये।
शनिमंदिर के साथ-साथ हनुमान जी के दर्शन भी जरूर करने चाहिये।
शनि जयंती या शनि पूजा के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।
इस दिन यात्रा को भी स्थगित कर देना चाहिये।
किसी जरूरतमंद गरीब व्यक्ति को तेल में बने खाद्य पदार्थों का सेवन करवाना चाहिये।
गाय और कुत्तों को भी तेल में बने पदार्थ खिलाने चाहिये।
बुजूर्गों व जरुरतमंद की सेवा और सहायता भी करनी चाहिये।
शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर को देखते समय उनकी आंखो में नहीं देखना चाहिये।
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