आज विवाह पंचमी, संसार के विवाह व श्रीराम के मंगलमय विवाह में क्या है अंतर
भारत में कई स्थानों पर विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (सीता) का विवाह हुआ था। तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है । इस वर्ष
भारत में कई स्थानों पर विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (सीता) का विवाह हुआ था। तभी से इस पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है । इस वर्ष विवाह पंचमी 16 दिसंबर यानी बुधवार के दिन मनाया जा रहा है। भगवान श्रीराम और सीता का विवाह पूरे रामायण की सबसे महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि प्रकृति के नियंता को ज्ञात था कि जीवन में चौदह वर्ष का वनवास और रावण जैसे असुर का वध धैर्य के वरण के बगैर संभव नहीं है। अत: श्रीराम जानकी का विवाह मुख्य रूप से यह एक बड़े संघर्ष से पूर्व धैर्य वरण की घटना है।
पुष्प वाटिका में भगवान श्री राम और सीता जी के मिलन के पश्चात प्रकृति ने दोनों के ही मिलन का मार्ग तय कर लिया था। तुलसी रामयण में भी सीता जी को विवाह के समय युवावस्था का बताया गया है भगवान श्रीराम और सीता जी का विवाह रामायण में रावण के अंत के लिये भगवान का बढ़ाया हुआ एक पग भी है, क्योंकि रावण के अंत का सृजन सीता जी के हरण की घटना से ही प्रारम्भ हो गया था। शास्त्रों के अनुसार यह वही दिन है, जिस दिन भगवान श्रीराम ने सीता जी का वरण किया था। श्रीरामचरितमानस में श्रीराम जी के द्वारा सीता जी के माथे में सिन्दूर भरने की घटना को इस तरह वर्णित किया गया है-
अरुन पराग जलजु भरि नीकें। ससिहि भूष अहि लोभ अमी कें।
भावार्थ यह है कि ऐसा प्रतीत होता है, मानो भगवान श्रीराम के बाहु, कमल स्वरूप हथेलियों में, पराग सदृश्य सिन्दूर लेकर अमृत की आस से सीता जी के चंद्र मुख को अलंकृत कर रहा है।
इस दिन भगवान श्रीराम का विधिवत पूजन और सांकेतिक रूप से या उत्सव के रूप में भगवान का विवाह सीता जी से कराया जाये तो जीवन में सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। क्यों कि इस दिन पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र है, जिसका स्वामी शुक्र है और शुक्र विवाह के कारक ग्रहों में से एक है। अत: वे युवक-युवतियां, जिनके विवाह में विलम्ब हो रहा है या वे विवाहित दम्पति, जिनके वैवाहिक जीवन में संतान या परिवार से सम्बंधित कोई भी समस्या है, वे इस दिन श्रीराम और सीता जी का पूजन करके श्रीराम रक्षा स्त्रोत्र का पाठ करें तो अवश्य लाभ होगा।
विवाह पंचमी पर भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था। विवाह केवल स्त्री और पुरुष के गृहस्थ जीवन में प्रवेश का ही प्रसंग नहीं है बल्कि यह जीवन को संपूर्णता देने का अवसर है। श्रीराम के विवाह के जरिए हम विवाह की महत्ता और उसके गहन अर्थों से रूबरू हो सकते हैं।
भारत में कई स्थानों पर विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मार्गशीर्ष (अगहन) मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को भगवान श्रीराम तथा जनकपुत्री जानकी (सीता) का विवाह हुआ था। तभी से पंचमी को 'विवाह पंचमी पर्व' के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस तिथि को भगवान राम ने जनक नंदिनी सीता से विवाह किया था। तुलसीदासजी कहते हैं कि 'श्रीराम ने विवाह द्वारा मन के तीनों विकारों काम, क्रोध और लोभ से उत्पन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया गया है।'
श्री रामकिंकर जी महाराज ने राम विवाह की बड़ी ही सुंदर व्याख्या करते हुए लिखा है, 'संसार के विवाह और श्रीराम के मंगलमय विवाह में अंतर क्या है? यह जो भगवद्-रस है, वह व्यक्ति को बाहर से भीतर की ओर ले जाता है। और बाहर से भीतर जाना जीवन में परम आवश्यक है। व्यवहार में भी आप देखते हैं, अनुभव करते हैं कि जब तीव्र गर्मी पड़ने लगे, धूप हो तो आप क्या करते हैं? बाहर से भीतर चले जाते हैं। वर्षा में भी आप बाहर से भीतर चले जाते हैं, अर्थात बाहर चाहे वर्षा या धूप हो, घर में तो आप सुरक्षित हैं।
इसी प्रकार जीवन में भी कभी वासना के बादल बरसने लगते हैं, क्रोध की धूप व्यक्ति को संतप्त करने लगती है, मनोनुकूल घटनाएं नहीं घटती हैं, ऐसे समय में अगर हम अंतर्जगत में, भाव राज्य में प्रविष्ठ हो सकें तो एक दिव्य शीतलता, प्रेम और आनंद की अनुभूति होगी। भगवान श्री सीताराम के विवाह को हम अन्तर्हृदय में देखें, ध्यान करें, लीला में स्वयं सम्मिलित हों, इस विवाह का उद्देश्य है।' इस तरह से देखा जाए तो श्रीराम विवाह के गंभीर अर्थ की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। वे हमें जीवन के इस महत्वपूर्ण प्रसंग के वास्तविक अर्थ से रूबरू करवाते हैं।
श्री रामकिंकर जी महाराज आगे लिखते हैं, 'श्रीराम के विवाह में घटनाएं केवल मनोरंजन प्रधान नहीं, सांसारिक व्यवहार की अपेक्षा मनस्तत्त्व की प्रधानता है पर यहां मन, बुद्धि, चित्त के द्वारा हम परमात्मा का साक्षात्कार कर सकते हैं।'
इस विवाह के संदर्भ में गोस्वामीजी ने वर्णन किया है कि विवाह को ज्ञानियों ने किस दृष्टि से देखा, योगियों ने क्या अर्थ लिया? भक्तों ने इसमें कैसा परमानंद पाया? और उन्होंने दो कथित विरोधी काम और राम में विलक्षण समन्वय तब बैठाया, जब विवाह मंडप में दोनों को एक साथ प्रस्तुत किया। विवाह का प्रमुख देवता 'काम' है। पर इस प्रसंग में 'काम' राम का विरोधी न रहकर सहयोगी बन गया।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम-सीता के शुभ विवाह के कारण ही विवाह पंचमी का दिन अत्यंत पवित्र माना जाता है। भारतीय संस्कृति में श्रीराम-सीता आदर्श दंपति हैं। श्रीराम ने जहां मर्यादा का पालन करके आदर्श पति और पुरुषोत्तम पद प्राप्त किया वहीं माता सीता ने सारे संसार के समक्ष अपने पतिव्रता धर्म के पालन का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। इस पावन दिन सभी दंपतियों को श्रीराम-सीता से प्रेरणा लेकर अपने दांपत्य को मधुरतम बनाने का संकल्प करना चाहिए।
विवाह पंचमी के दिन विधि-विधान के साथ जनकपुरी से 14 किलोमीटर दूर 'उत्तर धनुषा' नाम स्थान है। जनकपुर वर्तमान में नेपाल में स्थित है। यहां कुछ दूर उत्तर धनुषा में बताया जाता है कि रामचंद्रजी ने इसी जगह पर धनुष तोड़ा था। पत्थर के टुकड़े को इस प्रसंग का अवशेष बताया जाता है। पूरे वर्षभर और खासकर 'विवाह-पंचमी' पर यहां दर्शनार्थियों की भीड़ रहती है।
विवाह ऐसा संस्कार है जिसे प्रभु श्रीराम और कृष्ण ने भी अपनाया। भगवान राम ने अहंकार के प्रतीक धनुष को तोड़ा। यह इस बात का प्रतीक है कि जब दो लोग एक बंधन में बंधते हैं तो सबसे पहले उन्हें अहंकार को तोड़ना चाहिए और फिर प्रेम रूपी बंधन में बंधना चाहिए। यह प्रसंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों परिवारों और पति-पत्नी के बीच कभी अहंकार नहीं टकराना चाहिए क्योंकि अहंकार ही आपसी मनमुटाव का कारण बनता है।
त्रेता युग में मिथिला नरेश जनक के राज्य में जब अकाल पड़ा तो उसके निवारण के लिए जनक ऋषि-मुनियों के पास गए। उनके सुझाव पर जनक ने भूमि को जोतना शुरू किया। हल जोतते हुए हल का अग्र भाग किसी वस्तु से टकराया और वहीं रुक गया। जब जनक ने मिट्टी हटाकर देखा तो उन्हें एक कन्या मिली। राजा ने उसे अपनी पुत्री स्वीकार किया। नाम रखा सीता, जिन्हें वैदेही और जानकी भी कहा गया।
राजा जनक शिवधनुष की पूजा करते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि जानकी ने शिव के धनुष को हाथ में उठा लिया है। राजा जनक ने प्रतिज्ञा की कि जो शिवधनुष तोड़ेगा जानकी का विवाह उसी के साथ होगा। सीता के स्वयंवर में जब कोई धनुष को उठा भी नहीं पाया तब श्रीराम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास किया और वह टूट गया। इस तरह राम और सीता का विवाह हुआ।