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जिनके घर ये वस्तुएं होती उनके घर में धन और सुख की कमी नहीं होती है

जिस घर में शालिग्राम का पूजन होता है उस घर में लक्ष्मी का सदैव वास रहता है। शालिग्राम पूजन करने से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 13 Oct 2016 11:36 AM (IST)Updated: Sat, 15 Oct 2016 10:49 AM (IST)
जिनके घर ये वस्तुएं होती उनके घर में धन और सुख की कमी नहीं होती है

हिंदू धर्म में मंगल प्रतीकों का खासा महत्व है। इनके घर में होने से किसी भी कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं होती। सभी कार्य मंगलमय तरीके से संपन्न होते हैं। सर्वप्रथम तो आपका घर वास्तु अनुसार होना चाहिए यदि नहीं है तो उसमें कुछ सुधार कर लें। अब जहां तक मंगल प्रतीकों की बात है जो उसमें में से कुछ के बारे में तो आप जानते ही हैं, लेकिन कुछ के बारे में आप बिल्कुल नहीं जानते। घर में मंगल प्रतीकों या वस्तुओं के रहने से घर में हर कार्य में बरकत बनी रहती है साथ ही धन, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती हैं।

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ॐ है सर्वोपरि मंगल प्रतीक : यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएं इसी तरह फैली हुई है। ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है। वेब दुनियां के अनुुसार ओम का घर में होना जरूरी है। यह मंगलकर्ता ओम ब्रह्म और गणेश का साक्षात् प्रतीक माना गया है। बहुत से लोग पीतल, तांबे, अष्टधातु का ओम बनाकर घर के द्वार के उपर लगाते हैं। इसका इस्तेमाल स्वस्तिक के साथ किया जाता है।

दूसरा मांगल प्रतीक स्वस्तिक : स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है। हर मंगल कार्य में इसको बनाया जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीजमंत्र होता है। इसमें, जो चार बिन्दियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनन्त देवताओं का वास होता है।

इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ, बही खाते की पूजा की परम्परा आदि में विशेष स्थान है। इसकी चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं, अग्नि, इन्द्र, वरुण एवं सोम की पूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में प्रयोग किया जाता है। मंगल कलश : सुख और समृद्धि के प्रतीक कलश का शाब्दिक अर्थ है- घड़ा। यह मंगल-कलश समुद्र मंथन का भी प्रतीक है। ईशान भूमि पर रोली, कुंकुम से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर उस पर यह मंगल कलश रखा जाता है।

एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकल उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर, उसके गले पर मौली (नाड़ा) बांधी जाती है।

यह मांगलिक वस्तुएं रखें घर में, मिलेगा अपार धन-चमकेगी किस्मत

शंख : शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्री की संज्ञा दी गई है। शंख समुद्र मथंन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है।

शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है। शंख के कई उपयोग और महत्व है। शंख बजाने से जहां सेहत में लाभ मिलता है और घर का वातावरण शुद्ध होता है वहीं इसके घर में रखे रहने से आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह आदि की रुकावट भी दूर होती है। इसके अलावा शंख कई चमत्कारिक लाभ के लिए भी जाना जाता है। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं।

रंगोली : रंगोली या मांडना हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की समृद्धि के प्रतीक हैं, इसलिए 'चौंसठ कलाओं' में मांडना को भी स्थान प्राप्त है। इससे घर परिवार में मंगल रहता है। उत्सव-पर्व तथा अनेकानेक मांगलिक अवसरों पर रंगोली से घर-आंगन को खूबसूरती के साथ अलंकृत किया जाता है।

दीपक और धूपदान : सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले दीपक समृद्धि के साथ ही अग्नि और ज्योति का प्रतीक है। पारंपरिक दीपक मिट्टी का ही होता है। इसमें पांच तत्व हैं मिट्टी, आकाश, जल, अग्नि और वायु। हिंदू अनुष्ठान में पंचतत्वों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।

धूपदान या धूप देने का वह पात्र जिसमें गुग्गल की धूप दी जाती है। जिसमें कंडे रखकर गुढ़ और घी की धूप भी दी जाती है। इसका घर में होना जरूरी है। यह भी मिट्टी का होना चाहिए।

पंचसूलक: यह खुली हथेली की छाप होती है, जो पांच तत्वों की प्रतीक है। हमारे आस-पास जो कुछ है वह, और हमारे शरीर भी इन पांच तत्वों से बने हैं। इससे सौभाग्य के लिए इस प्रतीक के इस्तेमाल का महत्व स्पष्ट होता है।

जैन धर्म में इसे बेहद अहमियत दी गई है। हिंदू लोग गृह प्रवेश जन्म संस्कार और विवाह आदि के अवसरों पर हल्दी-सनी हथेली छापते हैं। मुख्य प्रवेश द्वार पर लगी पंचसूलक की छाप समृद्धि, सख, और शुभता लाती है।

गरुढ़ घंटी : जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती है। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वारा खुलते हैं।

बांसुरी : बांस निर्मित बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। जिस घर में बांसुरी रखी होती है, वहां के लोगों में परस्पर प्रेम तो बना रहता है और साथ ही सुख-समृद्धि भी बनी रहती है। बांसुरी को आपकी उन्नति और प्रगति का सूचक बताया गया है।

बांसुरी घर में मौजूद वास्तु दोष को भी दूर करता है। बांस से बनी बांसुरी की अहमियत काफी ज्यादा है। घर में प्रवेश करने वाले दरवाजे पर दो बांसुरी को क्रॉस करके लगाने से मुसीबतों से काफी हद तक पीछा छूट जाता है।

वंदनवार:- इसे बंदनद्वार भी कहते हैं। आम या पीपल के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे अक्सर दीपावली के दिन द्वार पर बांधा जाता है। हालांकि इसे हमेशा बांधकर रखना शुभफलदायी है।

वंदनवार इस बात का प्रतीक है कि देवगण इन पत्तों की भीनी भीनी सुगंध से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं। वंदनवार बंधी रखने से घर परिवार में एकता व शांती बनी रहती है।

लक्ष्मी का प्रतीक कौड़ियां : पीली कौड़ी को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कुछ सफेद कौड़ियों को केसर या हल्दी के घोल में भिगोकर उसे लाल कपड़े में बांधकर घर में स्थित तिजोरी में रखें। दो कौड़ियों को खुद की जेब में भी हमेशा रखें इससे धन लाभ होगा।

मंगल सूत्र : हिंदू विवाहित नारी गले में मंगल सूत्र पहनती है। इसकी तुलना किसी अन्य आभूषण से नहीं की जाती। यह पति द्वारा पत्नी को विवाह के समय पहनाता है। यह मंगल सूत्र पति की कुशलता से जुड़ी मंगल कामना का प्रतीक है। इसका खोना या टूटना अपशकुन माना गया है।

जहां मंगल सूत्र का काला धागा और काला मोती स्त्री को बुरी नजर से बचाता है वहीं उसमें लगे सोने के पेंडिल से स्त्री में तेज और ऊर्जा का संचार बना रहता है

चमत्कारिक शालिग्राम : बहुत से लोग घर में छोटी-सी शिवलिंग जलाधारी रखते हैं। शिवलिंग की तरह शालिग्राम के भी कई चमत्कारिक लाभ हैं। शालिग्राम को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है।

अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गंडकी नदी के तट पर पाया जाता है। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम का पाया जाना तो और भी दुर्लभ है। पूर्ण शालिग्राम में भगवान विष्णु के चक्र की आकृति अंकित होती है। 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं जिनमें से 24 प्रकार को विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना गया है। माना जाता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं।

जिस घर में शालिग्राम का पूजन होता है उस घर में लक्ष्मी का सदैव वास रहता है। शालिग्राम पूजन करने से अगले-पिछले सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

मोर पंख : मोर पंख को अत्यंत ही शुभ और चमत्कारिक माना जाता है। यह जिसके भी घर में रखा होता है उसके घर में कभी भूत-प्रेत की बाधा तो नहीं रहेगी ही, साथ ही किसी भी प्रकार के कीड़े-मकोड़े और छिपकली के आने का रास्ता भी बंद हो जाता है।

मोर पंख को भाग्यवर्धक माना जाता है। यह भाग्य के मार्ग की सारी रुकावटें भी दूर कर देता है। लेकिन ध्यान रखें घर में मोरपंख का गुच्छा नहीं, मात्र 1 से 3 ही मोर पंख रखना चाहिए।

मीन : प्राचीन काल से ही मीन (मछली) का संबंध खुशहाली से जोड़ा जाता रहा है। मछली के जोड़े का प्रतीक प्रेम को बढ़ाता है। उत्तर दिशा में मछली का प्रतीक या प्रतिमा रखने से धन बढ़ता है। आजकल लोग इसकी जगह मछलीघर (फिश एक्वेरियम) रखते हैं।

माला : रुद्राक्ष, चंदन, तुलसी और कमलगट्टे तीनों में कमलगट्टे की माला घर में अवश्य रखना चाहिए। अर्थ बिना सब व्यर्थ है। माना जाता है कि कमलगट्टे की माला से धन प्राप्ति के मार्ग भी खुल जाते हैं। दरअसल, कमलगट्टे लक्ष्मीजी को प्रिय हैं।

तुलसी के बीज से या कमल के बीज से बनी माला से जप किया जाता है। इसे पूजाघर में रखना चाहिए और जब भी आप इस माला को फेरते हुए अपने इष्टदेव का 108 बार नाम लेंगे तो इससे घर और मन में सकारात्मक वातावरण और भावों का संचार होगा।

गोमती चक्र : यह एक पत्थर होता है, जो दिखने में साधारण लगता है लेकिन होता चमत्कारिक है। इस पत्थर का नाम है गोमती चक्र। गोमती नदी में मिलने के कारण इसे गोमती चक्र कहते हैं। गोमती चक्र के घर में होने से व्यक्ति के ऊपर किसी भी प्रकार की शत्रु बाधा नहीं रहती।

इस चक्र के कई प्रयोग बताए गए हैं। इसको लाल सिंदूर की डिब्बी में रखना चाहिए। 11 गोमती चक्र लेकर उसे पीले वस्त्रों में लपेटकर तिजोरी में रखने से बरकत बनी रहती है।

लाल कपड़े में लघु नारियलों को लपेटकर तिजोरी में रख दें व दीपावली के दूसरे दिन किसी नदी या तालाब में विसर्जित करने से लक्ष्मी लंबे समय तक आपके घर में निवास करती है।

विसर्जित करने के बाद दूसरा लघु नारियल तिजोरी में रख सकते हैं। हालांकि लघु नारियल के और भी कई प्रयोग हैं। इसके घर में रखे होने से धन और समृद्धि बरकरार रहती है।

इसके अलावा एकाक्षी नारियल को भी साक्षात लक्ष्मी का रूप माना जाता है इसीलिए सर्वप्रथम इसे घर में रखने से धनलाभ होता है, साथ ही कई प्रकार की समस्याएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं।

चांदी की गढ़वी : चांदी का एक इतना छोटा गढ़ा होता है कि उसमें 10-12 तांबे के सिक्के रख सकते हैं उसे गढ़वी कहते हैं। पुराने समय में यह लोगों के घरों में होती है। इसकी जगह कुछ लोग चांदी की पेटी रखते थे और उसमें सिक्के रखते थे। इससे घर में धन और समृद्धि बनी रहती है।

सिक्कों से भरा चांदी का घड़ा : एक छोटा सा चांदी का घड़ा तांबे, चांदी, पीतल या कांसे के नए या पुराने सिक्कों से भरा हो। इसे घर की तिजोरी या किसी सुरक्षित स्थान पर रखने से धन और समृद्धि बढ़ती है। कई लोगों के घरों में यह होता है। यदि आपके घर में नहीं है तो आप भी बनवा लें।

चरणामृत या पंचामृत का पात्र : तांबे का एक छोटा-सा पात्र जिसमें पानी भरा होता है और जो पूजाघर में रखा होता है। इसमें एक तांबे की ही चम्मच होती है। यह इसलिए पानी से भरा होता है ताकि व्यक्ति इस पानी को प्रतिदिन पीएं। इसके जल के कई प्रकार के लाभ हैं। सबसे बड़ा लाभ यह कि आप यह जल पीते रहेंगे तो जीवन में कभी भी सफेद दाग की बीमारी नहीं होगी।

चरणामृत और पंचामृत पीने से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। तांबे के बर्तन में चरणामृतरूपी जल रखने से उसमें तांबे के औषधीय गुण आ जाते हैं। चरणामृत में तुलसी पत्ता, तिल और दूसरे औषधीय तत्व मिले होते हैं। मंदिर या घर में हमेशा तांबे के लोटे में तुलसी मिला जल रखा ही रहता है। पंचामृत का अर्थ है 'पांच अमृत'। दूध, दही, घी, शहद, शकर को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है।

चरणामृत लेने के नियम : चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए और श्रद्घाभक्तिपूर्वक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए। इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है।

चरणामृत का लाभ : आयुर्वेद की दृष्टि से चरणामृत स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है। तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं और इसका जल मस्तिष्क को शांति और निश्चिंतता प्रदान करता हैं। स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्घि, स्मरण शक्ति को बढ़ाने भी कारगर होता है।

पंचामृत के लाभ : पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट और रोगमुक्त रहता है। पंचामृत से जिस तरह हम भगवान को स्नान कराते हैं ऐसा ही खुद स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है। पंचामृत उसी मात्रा में सेवन करना चाहिए जिस मात्रा में किया जाता है। उससे ज्यादा नहीं।

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