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लघुकथा: कद्दू की तीर्थयात्रा

मैं तुम्हें ये कद्दू देता हूँ तुम इस को साथ तीर्थ यात्रा पर ले जाओ और जिस जगह तुम स्नान करो वहां इसे स्नान करवा देना

By Babita KashyapEdited By: Published: Wed, 04 Jan 2017 04:41 PM (IST)Updated: Wed, 04 Jan 2017 04:46 PM (IST)
लघुकथा: कद्दू की तीर्थयात्रा
लघुकथा: कद्दू की तीर्थयात्रा

एक बार गाँव के कुछ लोग तीर्थ यात्रा पर जा रहे थे तो लोगों ने वहां के एक ज्ञानी संत के पास जाकर उनके साथ चलने की प्रार्थना की। संत ने खुद जाने में असमर्थता जताते हुए उनसे कहा कि चलो मैं तो कुछ व्यस्त होने की वजह से तुम लोगों के साथ तीर्थ यात्रा जाने में असमर्थ हूँ लेकिन अवश्य ही तुम लोगों का मन रखते हुए मैं तुम्हें ये कद्दू देता हूँ तुम इस को साथ तीर्थ यात्रा पर ले जाओ और जिस जगह तुम स्नान करो वहां इसे स्नान करवा देना और जहंा तुम पूजा करो वहंा पूजा में तुम इसे साथ रखना इस पर साधू ने उन्हें वो कड़वा कद्दू दे दिया ।

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वो लोग जहां भी गये साधू द्वारा कहे गये बातों का बिना गूढ़ अर्थ समझे अनुसरण किया और जब वो लोग दर्शन करने लगे तो भी वहां उन्होंने कद्दू को भी दर्शन करवा दिए। काफी दिन बाद जब वो लोग तीर्थ यात्रा से लौटे तो संत को वापिस कद्दू भेंट किया और कहा कि महाराज जैसा अपने कहा वैसा ही हमने किया। इस पर साधू ने उन लोगों के लिए एक छोटे से भोज का आयोजन किया और उन्हें उसी कद्दू की सब्जी परोसी गयी। इस पर लोगों ने कहा कि इस कडवे कद्दू की सब्जी तो बेहद कड़वी है और वो लोग साधू से बेहद नाराज हुए। लेकिन साधू ने सहज भाव से कहा जिस तरह कद्दू की तीर्थ यात्रा से उसके स्वाद में कोई बदलाव नहीं आया उसी तरह तुम लोग भी जब तक अपने स्वभाव में बदलाव नहीं करोगे जिन्दगी में कुछ भी बदलने वाला नहीं है। मन को बदलोगे तो हर जगह तीर्थ है। यात्रियों को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ने साधू से माफी मांगी और अपने स्वभाव को बदलने का वादा किया।

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साभार: Guide 2 India


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