देश की रक्षा के लिए किसानों ने दे दी जमीन, 46 साल से खा रहे हैं धक्के
फाजिल्का के 12 गांवों के किसानो ने देश की रक्षा के लिए सेना को सीमा पर सुरक्षा बांध बनाने के लिए अपनी जमीन दे दी। लेकिन, 46 साल बाद भी उन्हें मुआवजे ...और पढ़ें

फाजिल्का, [अमृत सचदेवा]। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, पाकिस्तानी सैनिक अंदर तक घुस आए। दुश्मनों को भारतीय रणबाकुरों ने खदेड़ दिया, लेकिन इसके साथ ही ऐसी स्थिति फिर अभी न आए और दुश्मन देश की सीमा में न घुस पाएं इसके लिए रणनीति बनाई गई। इस युद्ध में जीत के तत्काल बाद भारतीय सेना ने भविष्य में दुश्मन को पीछे ही रोकने की रणनीति बनाई। इसके तहत फाजिल्का के सीमावर्ती 12 गांवों में डिफेंस बांध का निर्माण किया गया। इसके लिए जिले के किसानों के 67 एकड़ जमीन ली गई, लेकिन आज तक वे मुआवजे के लिए इंतजार कर रहे हैं। इन किसानों में से छह इसके इंतजार में चल बसे।
अपनी जमीन का मुआवजा मांगते कई हुए दुनिया से रुखसत
यह बांध बनाते वक्त अपने खेतों से जगह देने वाले किसानों ने देश की रक्षा के लिए बनाए जा रहे बांध का सिर्फ इसलिए विरोध नहीं किया, क्योंकि सैन्य अधिकारियों से जमीन का मुआवजा दिलाने का वादा किया था। लेकिन, यह वादा 46 साल बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। बांध के लिए 67 एकड़ भूमि देने वाले किसान आज भी मुआवजे के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह जमीन 12 गांवों के किसानों की ली गई।
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मुआवजे के लिए 27 साल पहले किसानों ने पंजाब एवं हरियाणा हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आलम यह है कि हाइकोर्ट द्वारा मुआवजे को जायज बताए जाने के बावजूद रक्षा मंत्रालय ने किसानों की कोई सुनवाई नहीं की। इसके बाद हाइकोर्ट ने इसी साल मई एक सत्र न्यायाधीश के नेतृत्व में ट्रिब्यूनल का गठन किया। कानूनी लड़ाई लड़ने वाले 32 में से छह किसान इस दौरान दुनिया से विदा हो गए। मुआवजे के हकदार एक से दो मरले से लेकर अधिकतम डेढ़ एकड़ मलिकी वाले 150 किसान हैं।
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मुआवजे का इंतजार करते दुनिया छोड़ चुके लोग सतपाल कटारिया, हुकम सिंह, पूर्ण देवी और कर्मो देवी।
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संघर्ष करते करते बदल गईं दो पीढियां
1990 से सेना द्वारा मौजम फारवर्ड बांध के लिए दी गई जमीन की अपील दायर करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एंव पूर्व नगर सुधार ट्रस्ट चेयरमैन महेंद्र प्रताप धींगड़ा ने बताया कि 46 साल पहले ली गई जमीन के मुआवजे की राह देखते देखते दो पीढियां पूरी हो गई हैं।
धींगड़ा के अनुसार, उनकी माता पूर्ण देवी के नाम वाली जमीन में से अधिग्रहीत की गई डेढ़ एकड़ जमीन के मुआवजे के लिए अन्य किसानों के साथ मिलकर केंद्रीय रक्षा सचिव को कई बार पत्र लिखे। इसके साथ-साथ स्टेट डिफेंस ऑफिसर से मामला केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के ध्यान में लाने के लिए लाने का अनुराेध किया जाता रहा। वह पिछले 27 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि बात सिर्फ पीढियां बीतने की नहीं बल्कि हक न मिलने के कारण जिंदगी हार जाने की है। धींगड़ा ने बताया कि नई आबादी निवासी सतपाल कटारिया को अपनी डेढ़ एकड़ जमीन का मुआवजा मिला होता तो कैंसर से इलाज के अभाव में शायद उनकी मौत न होती। इसी तरह कुल 67 एकड़ जमीन के करीब सौ करोड़ रुपये मुआवजे का छोटे से छोटा हिस्सा भी पांच-छह लाख बनता है। इसकी राह देखते देखते छह लोग इस दुनिया को छोड़ गए।

अब डीसी की सकारात्मक भूमिका जरूरी
एडवोकेट धींगड़ा ने बताया कि अब ट्रिब्यूनल ने स्टेट डिफेंस ऑफिसर और इलाके के डीसी से पहली दिसंबर को मुआवजे संबंधी केस की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। केस करने वाले किसान भी जिला उपायुक्त (डीसी) ईशा कालिया से मिलकर चार दशक से लटकते आ रहा मुआवजा दिलाने में सहयोग की अपील कर चुके हैं। अब उन से सकारात्मक भूमिका की उम्मीद सब किसानों को है।
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दिलवाएंगे किसानों का हक: डीसी
इस बारे में डीसी ईशा कालिया से बात की गई तो उन्होंने कहा कि स्टेट डिफेंस ऑफिसर के साथ मिलकर इस मामले में गठित ट्रिब्यूनल तक केस की सही स्थिति पेश कर किसानों को उन का बनता हक दिलाएंगे।

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