जलियांवाला बाग नरसंहार ने गांधीजी को बनाया था विद्रोही, फिर शुरू हुआ यह आंदोलन
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर जलियांवाला नरसंहार का काफी असर पड़ा था। इस जघन्य नरसंहार ने उनको विद्रोही बना दिया और फिर अमृतसर में ही असहयोग आंदोलन की नींव पडी।
अमृतसर, [नितिन धीमान]। गुरुनगरी अमृतसर की स्वतंत्रता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका और स्थान है। इसकी धरती पर अंग्रेजों के खिलाफ बड़े आंदोलन की नींव पड़ी। 1919 में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी काे भी विचलित कर दिया और इसने उनको विद्रोही बना दिया। फिर बापू ने यहां कांग्रेस के अधिवेशन में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की रणनीति तैयार की।
जलियांवाला बाग नरसंहार ने गांधी जी को बनाया अंग्र्रेजों का कट्टर विरोधी
सन् 1947 को स्वतंत्रता के साथ भारत माता का मस्तक गर्व से ऊंचा हुआ था। 200 साल से पराधीनता की बेडिय़ों में जकड़ी भारत मां मुक्त हुई, पर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए असंख्य देशभक्तों के सीने छलनी हुए। ब्रिटिश हुकूमत की बर्बरता की कहानी का एक काला अध्याय जलियांवाला बाग में आज भी है। 13 अप्रैल 1919 को यहां खून की दरिया बही और धरती मां रक्तरंजित हो गई। इस दर्दनाक घटना के बाद स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला और धधक उठी।
जलियांवाला बाग के नरसंहार के ठीक आठ माह बाद 27 दिसंबर 1919 को अमृतसर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। नरसंहार से आहत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस अधिवेशन में गुलामी की जंजीरों में जकड़े देश को अंग्रेजी हुकूमत के चंगुल से मुक्त करवाने के लिए जनमानस में अपने शब्दों के माध्यम से नए रक्त का संचार किया।
दिसंबर 1919 में अमृतसर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में पहुंचे थे बापू
अमृतसर में 26, 27 व 28 दिसंबर 1919 को कांग्रेस का अधिवेशन एचिसन पार्क (अब गोलबाग) में हुआ था। इसमें पंडित मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, सैफुद्दीन किचलू, डॉ. हाफिज मोहम्मद बशीर, डॉ. सत्यापाल, लाल गिरधारी लाल, सेठ राधाकृष्ण, माहशा रत्न चंद, डॉ. हाफिज मोहम्मद बशीर, चौधरी बुग्गा मल सरीखे राष्ट्रभक्त शामिल हुए। महात्मा गांधी व अन्य नेताओं ने लोगों से सत्याग्रह व खिलाफत आंदोलन में भाग लेने की अपील की थी।
देश के हर नागरिक ने सत्याग्रह व असहयोग आंदोलन में भाग लिया
उस समय जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद देश के बच्चे-बच्चे के दिल में बदले की आग सुलग रही थी। अंग्रेज सरकार रॉलेट एक्ट लागू कर भारतीयों से अपील, दलील और वकील का अधिकार छीन चुकी थी। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता भी इन दमनकारी नीतियों से आहत थे। महात्मा गांधी भी व्याकुल हो गए गए थे। महात्मा गांधी व पंडित मोतीलाल नेहरू ने अधिवेशन में अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन चलाने का निर्णय किया था।
इसके साथ ही असहयोग आंदोलन का अंकुर भी इसी अधिवेशन में फूटा। कांग्रेस नेताओं ने देश की जनता से आह्वान किया था कि वे पूरे देश में असहयोग आंदोलन चलाएं। राष्ट्रीय नेताओं के इस आदेश पर पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ चट्टान की तरह खड़ा हो गया। देश के हर नागरिक ने सत्याग्रह व असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
जब गांधी जी को की गईं मुल्तीनी मिट्टी की पट्टियां
इस अधिवेशन में महात्मा गांधी बीमार हुए थे। उनके उपचार के लिए मुल्तानी मिट्टी मंगवाई गई। उनकाे मिट्टी की पट्टियां की गईं। अधिवेशन में जलियांवाला बाग घटना व रॉलेट एक्ट का जबरदस्त विरोध किया गया था। वहीं, देशभक्तों को ट्रेनिंग देने के लिए स्वराज आश्रम स्थापित करने का प्रस्ताव पास किया गया। अमृतसर के चाटीविंड में स्वराज आश्रम की स्थापना की गई थी। यहां देशभक्तों को ट्रेनिंग दी जाती रही। सच यह भी है कि जलियांवाला बाग नरसंहार की घटना के बाद ही महात्मा गांधी ने विद्रोह का ध्वज उठाया था।
जलियांवाला नरसंहार के बाद अंग्रेजों के कट्टर विरोधी बने गांधी जी
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की पुस्तक में यह दावा किया गया है कि जलियांवाला बाग नरसंहार ने गांधी जी को झकझोर दिया। उनके कहने के बाद भी जब आरोपित अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो वे अंग्रेजों के कट्टर विरोधी बन गए। गुहा की किताब 'शहादत से स्वतंत्रता' में दावा किया गया है कि बापू ने 1919 से पहले कभी पंजाब का दौरा नहीं किया। 13 अप्रैल 1919 को डायर ने बैसाखी के मौके पर जलियांवाला बाग में आए निहत्थे लोगों पर गोली चलवा दी। नरसंहार से बापू बेहद आहत थे।
गुहा की किताब 'शहादत से स्वतंत्रता' में दावा किया गया है किउन्होंने ब्रिटिश वायसरॉय से कहा कि जनरल डायर और तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओड्वायर को नरसंहार के लिए दोषी मानकर तुरंत बर्खास्त किया जाए, लेकिन वायसरॉय ने जनरल डायर के एक्शन पर खेद जताया और ओड्वायर को सर्टिफिकेट ऑफ केरेक्टर दे दिया। इसमें उनकी मुक्तकंठ से सराहना की गई। तब गांधीजी ने आंदोलन चलाने का फैसला किया।
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मिट चुके स्वराज आश्रम के निशां
अमृतसर के चाटीविंड में स्वराज आश्रम की स्थापना की गई थी। यहां देशभक्तों को ट्रेनिंग दी जाती रही। आज इसका अस्तित्व भी शेष नहीं। अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी इस अमूल्य धरोहर को उजाड़ दिया था। इसके बाद शहरीकरण का क्रम शुरू हुआ तो स्वराज आश्रम कहीं खो गया। चाटीविंड में यह आश्रम किस जगह पर स्थित था, किसी को मालूम नहीं। यहां अब आवास और व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं, जहां के लोगों को भी इस आश्रम के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
कंपनी बाग में स्थापित है गांधीजी की प्रतिमा
यूं तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमाएं देश भर में सुशोभित हैं, लेकिन 1919 में वह अमृतसर आए थे और उन्होंने देशवासियों के मन में स्वतंत्रता प्राप्ति की अलख जगाई थी, इसलिए उनकी स्मृति में पंजाब सरकार ने ऐतिहासिक कंपनी बाग में उनकी प्रतिमा स्थापित की, ताकि इस महान व्यक्तित्व से आने वाली पीढ़ियां भी प्रेरणा लें। इस कंपनी बाग में महात्मा गांधी की जयंती एवं उनकी पुण्यतिथि पर मेला लगता है। शहर की कई स्वयंसेवी संस्थाएं, राजनीतिक दलों के नेता एवं गांधीवादी पहुंचकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
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