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    25 दुश्मनों को ढेर कर मुंह से निकला जय हिंद और शहीद हो गए अजायब

    By Kamlesh BhattEdited By:
    Updated: Tue, 26 Jul 2016 12:19 PM (IST)

    अजायब सिंह की राइफल से निकलीं गोलियों से 25 दुश्मन ढेर हो चुके थे, लेकिन जब वह इसकी खुशी मना रहा था तो पाकिस्तानियों ने उसे शहीद कर दिया।

    वतन की लाज जिसको थी अजीज अपनी जान से।
    वो नौजवान जा रहा है आज कितनी शान से।
    है कौन खुशनसीब मां कि जिसका ये चिराग है।
    वो खुशनसीब है कहां ये जिसके सिर के ताज है।
    अमर वो देश क्यों न हो कि तू जहां शहीद हो..

    ये पंक्तियां शहीदों को समर्पित हैं। वतन पर मिटने वाले इन शहीदों को नमन। कारगिल विजय दिवस पर एक ऐसे जांबाज की वीरगाथा का वर्णन कर रहे हैं, जिसकी शहादत के बाद कई युवाओं ने भारतीय सेना ज्वाइन की और देश की रक्षा के लिए मोर्चा संभाला।
    1999 में टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने से चंद मिनट पहले 8-सिख रेजिमेंट के नायक अजायब सिंह दुश्मनों से लोहा ले रहे थे। चारों तरफ आग बरस रही थी। अजायब सिंह की राइफल से निकलीं गोलियों से 25 दुश्मन ढेर हो चुके थे। भारतीय जवानों को जोश और जुनून से आगे बढ़ता देख दुश्मन उल्टे पांव भाग खड़ा हुआ। इसी बीच अजायब सिंह ने अपने पीछे खड़े भारतीय सैनिकों की तरफ मुंह करके दोनों हाथ उठाकर फतह बुलाई। अचानक सीमा के उस पार से पाकिस्तानी सैनिक ने उनकी पीठ पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं। दुश्मन की इस कायराना हरकत के बाद अजायब सिंह ने टाइगर हिल के नजदीक आखिरी सांस ली। आंखें बंद करने से पहले उनके मुंह से जय हिंद निकला। 7 जून 1999 को शहीद हुए गांव जहांगीर के इस सपूत का तिरंगे में लिपटा शव जब उनके पैतृक गांव जहांगीर पहुंचा तो सभी की आंखें नम हो गईं।

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    सेना के लिए हुए प्रेरित

    शहीद की शहादत की खुशबू से चमन में फूल खिल उठे। शहीद अजायब सिंह की वीरगाथा सुनकर बच्चे-बच्चे के दिल में सैनिक बनने की चाह पैदा हुई। गांव जहांगीर के गुरभेज सिंह, जसपाल सिंह, मलकीत सिंह, अजायब सिंह सहित दस युवा 8-सिख रेजिमेंट में तैनात हैं। शहीद अजायब सिंह के पैतृक घर में उनके बड़े भाई जोगिंदर सिंह बताते हैं कि अजायब सिंह 1984 में सेना में भर्ती हुए थे। अजायब सिंह की मौत के दो वर्ष बाद माता-पिता का भी देहांत हो गया। जोगिंदर सिंह के अनुसार अजायब सिंह के साथ ही मेरा बेटा जसपाल सिंह भी जंग-ए-मैदान में था। जसपाल सिंह को गोली लगी तो अजायब सिंह ने उसे अस्पताल पहुंचाया और पुन: देश धर्म निभाने के लिए युद्धस्थल पर लौट गया। यहां जसपाल सिंह की कमर में दुश्मन की गोली लगी। इलाज के बाद वह ठीक तो हुआ, लेकिन वर्ष 2002 में अचानक उसकी मौत हो गई।

    पति की शहादत पर फख्र है

    शहीद अजायब सिंह की पत्नी मनजीत कौर कहती हैं कि उनके पति सच्चे देशभक्त थे। उनकी कमी जरूर महसूस होती है, लेकिन शहादत पर फख्र है। उनके जाने के बाद मुझे डीसी कार्यालय में क्लर्क की नौकरी मिली, पर दो बच्चों राजविंदर सिंह व बेटी प्रभजोत कौर की परवरिश के कारण नौकरी छोड़ दी। फिर सरकार ने गैस एजेंसी अलॉट कर दी। इसी से परिवार की गुजर बसर चल रही है। पति ने वीरगति प्राप्त की, यह परिवार के लिए सम्मान की बात है, पर सरकार से रंज है कि पति के नाम पर गांव का यादगारी गेट नहीं बनाया गया।

    (इनपुट : अमृतसर से नितिन धीमान)

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