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    चंदन से शीतल आश्विन पूर्णिमा का चंदा

    By Edited By:
    Updated: Mon, 29 Oct 2012 11:27 AM (IST)

    शशिमुख पर घूंघट डाले, अंचल में दीप छिपाए, जीवन की गोधूलि में कौतूहल बन तुम आए- कवि की यह कल्पना और उसका प्रयोगधर्म जिस शशिमुख पर अवगुंठन के दर्शन करता है, वह शायद शरद पूर्णिमा का ही रहेगा।

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    बरेली। शशिमुख पर घूंघट डाले, अंचल में दीप छिपाए, जीवन की गोधूलि में कौतूहल बन तुम आए- कवि की यह कल्पना और उसका प्रयोगधर्म जिस शशिमुख पर अवगुंठन के दर्शन करता है, वह शायद शरद पूर्णिमा का ही रहेगा। जिस चंदा के गुणानुवाद में ग्रंथों की त्रिवेणी बह गईं, वह नि:संदेह रास पूर्णिमा का ही होगा। जिसके हुस्न की शुआओं (किरण) से नज्में अपना ईमान बदलती रहीं, वह तयशुदा रूप से शरदचंद्र ही होगा। हिंदू धर्मग्रंथ कहते हैं आश्विन यानि क्वार की पूर्णिमा में हलाहल को भी अमृत बना देने की कूबत है। शरदचंद्र की किरणें अपने अवर्चनीय सौंदर्य के लिए ही नहीं, अपितु धार्मिक तथा व्याधिरोधक गुण के लिए भी विख्यात हैं।

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    ज्योतिष की दृष्टि में शरदचंद्र-

    ज्योतिष शास्त्र तो कहता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल शरद पूर्णिमा का चंदा ही सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी ये सारी कलाएं जनहित में प्रवाहमान हैं। पूनम की इस रात में चंद्रमा से अमृत वर्षा का पौराणिक विधान बताया गया है। इसी रात सुई में धागा पिरोने से नेत्रों की ज्योति बढ़ने और खीर में अमृत तत्व घुलने की भी मान्यता है। कोजागर या कौमुदी व्रत की तिथि भी शरद पूर्णिमा ही है। धार्मिक विधान यह है कि शरद पूर्णिमा की प्रभात बेला में स्नान के बाद अपने आराध्य का सुंदर परिधान में सुशोभित कर आवाहन, आसन, आचमन, अक्षत, वस्त्र, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, पुंगी फल, दक्षिणा आदि के साथ उनका पूजन किया जाना चाहिए। रात्रिकाल गाय के दूध में खीर बनाकर उसे जाली से ढकते हुए रातभर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रसाद के रूप में उसका स्वयं सेवन व अन्य लोगों में वितरण भी करना चाहिए। इस खीर में चंद्रमा की किरणों से शरद पूर्णिमा की रात बरसने वाले अमृत का अंश समाहित बताया जाता है।

    आयुर्वेद के मुताबिक चमत्कारी-

    शरद पूर्णिमा का चंदा आयुर्वेद की दृष्टि में सकल व्याधिनाशक है। इस रात के चंद्रमा की रश्मियां संपूर्ण ब्रह्मंड का कोना-कोना छू आती हैं। समस्त जीव-जंतुओं पर इनका समान प्रभाव होता है। इसी प्रकार मानव देह पर भी इनका प्रभाव अत्यंत गुणकारी है। मसलन नेत्र रोग, मानसिक तनाव तथा चर्मरोग से मुक्ति के लिए ब्राह्मी, शंखपुष्पी, अश्वगंधा और बच की निर्दिष्ट मात्रा डेढ़ लीटर पानी में उबालते हुए आधा लीटर अवशेष को शरद पूर्णिमा की रात ही बनाई गई खीर में बारह-बारह घंटे दो बार यानी चौबीस घंटे तक रखकर उसका सेवन किया जाए।

    -हृदय रोग में लाभ के लिए अर्जुन की छाल का उपरोक्त विधि से ही सत्व बनाकर उसे खीर के साथ 48 घंटे तक शरद चंद्र की किरणों के सामने रखने के बाद सेवन किया जाए। यह औषधि शर्तिया गुणकारी है। डायबिटीज की स्थिति में चावल और चीनी की खीर की बजाय शर्करारहित रामदाने या साबूदाने की खीर हो।

    -शारीरिक शक्ति के लिए शिलाजीत, काली मूसली के चूर्ण तथा युक्ता कली का सत्व बनाकर खीर के साथ शरद पूर्णिमा से लेकर उसके बाद या उससे पहले तक की चांदनी में 72 घंटे रखने के बाद सेवन करना बेहद गुणकारी है।

    विज्ञान के दर्पण में शरद पूर्णिमा

    पीलीभीत के जिला विज्ञान क्लब समन्वयक लक्ष्मीकांत शर्मा का कहना है कि शरद पूर्णिमा पर पृथ्वी व चंद्रमा के बीच दूरी घट जाती है। इससे दोनों की आकर्षण शक्ति द्विगुणित हो जाती है। किरणें सीधे पृथ्वी पर पड़ने से ताप कम हो जाता है। मानव शरीर को ऊर्जा अधिक मिलती है। शरीर में कोई जख्म है तो वह जल्दी भरता है।

    दो घंटे निर्वस्त्र रहें तो अति उत्तम

    बरेली के प्रख्यात आयुर्वेद चिकित्सक डा. श्वेतकेतु शर्मा बताते हैं कि शरद पूर्णिमा के चंदा की किरणों में देह को पूर्णरूप से निर्वस्त्र करके अनेक असाध्य व्याधियों से मुक्ति पाने का विधान है। उनके मुताबिक जब शरदचंद्र अपनी पूर्ण तरुणाई पर हो, लोग 80 प्रतिशत अथवा संपूर्ण रूप से निर्वस्त्र होकर लगभग एक से दो घंटे तक चांदनी में बैठें। इससे किरणें सीधे शरीर में प्रवेश करती हैं और तन में अद्भुत तेजस्विता, स्फूर्ति तथा कांति उत्पन्न होती है, लेकिन बीमार अथवा उन लोगों को यह प्रयोग नहीं करना चाहिए जिनका शरीर ओस अथवा गुलाबी ठंड झेलने को तैयार न हो। इस प्रयोग से मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। उत्तेजना वृद्धि होती है तथा रक्तसंचार नियमित और संतुलित होता है।

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