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स्लो गेम में अमृता की तेज रफ्तार

नोएडा के सेक्टर 39 में रहने वाली अमृता अब तक पचास से अधिक गोल्फ टूर्नामेंट में जीत हासिल कर चुकी हैं। इस वक्त वह पीजीटीआइ की रैंकिंग में महिला वर्ग में जूनियर व सीनियर कैटेगरी में पाचवें स्थान पर काबिज हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Sat, 19 Nov 2016 12:20 PM (IST)Updated: Sat, 19 Nov 2016 12:33 PM (IST)
स्लो गेम में अमृता की तेज रफ्तार

उस वक्त मैं करीब सात साल की थी। गर्मी की छुट्टियां हुई थी और मैं घर में बैठे-बैठे बोर हो रही थी। मेरे पास करने को कुछ था नहीं। एक दिन पापा के दोस्त घर आए। बातचीत के बाद उन्होंने कहा कि क्यों नहीं तुम हमारे साथ गोल्फ कोर्स आती हो। तुम्हारा समय भी कट जाएगा और कुछ नया सीखने को मिलेगा। मैं उनके साथ जाने लगी और गोल्फ स्टिक पर हाथ आजमाना शुरू किया। हालांकि शुरू में मुझे गोल्फ बहुत स्लो गेम लगा। पूरा-पूरा दिन लग जाता था। टर्निंग प्वाइंट तब आया जब मैनें अपना पहला ही टूर्नामेंट जीत लिया। बस यहीं

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से इस सफर की शुरुआत हुई। यह कहना है मशहूर गोल्फर अमृता आनंद का। नोएडा के सेक्टर 39 में रहने वाली अमृता अब तक पचास से अधिक गोल्फ टूर्नामेंट में जीत हासिल कर चुकी हैं। इस वक्त वह पीजीटीआइ की रैंकिंग में महिला वर्ग में जूनियर व सीनियर कैटेगरी में पाचवें स्थान पर काबिज हैं।

मिली साथ तो बनी बात

अमृता आनंद कहती हैं कि अगर मुझे अपने पैरेंट्स का सपोर्ट नहीं मिलता तो शायद कुछ भी नहीं कर पाती। दो बहनों में बड़ी अमृता कहती हैं कि मेरा पिता का अपना बिजनेस है। वह सुबह जल्दी घर से निकल जाते हैं और देर रात को लौटते हैं, लेकिन जब भी मेरा टूर्नामेंट होता है वह हफ्तों अपने दफ्तर से छुट्टी ले लेते हैं। बस इसी से मुझे आगे बढऩे का हौसला मिलता है। गोल्फ एक ऐसा खेल है जिसमें पुरुषों की संख्या अधिक है यानी मेल डोमिनेटेड है। पहले जहां एक टूर्नामेंट के लिए पुरुष खिलाड़ी को 25-30 लाख रुपये मिलते थे तो महिला खिलाड़ी 5-8 लाख रुपये ही मिलता था। अब यह स्थिति सुधर रही है।

इसकी वजह यह है कि गोल्फ में भी अच्छी महिला खिलाड़ी आ रही हैं और प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। बनना है आइएएस

अमृता आइएएस अधिकारी बनना चाहती हैं। शुरू से ही उनकी यही तमन्ना रही है, लेकिन माता-पिता चाहते हैं कि वह गोल्फर ही रहें। इसको लेकर कई बार कशमकश की स्थिति में रहती थी। लेकिन अब तय कर लिया है कि

गोल्फ नहीं छोडऩा है। दूसरी तरफ पढ़ाई पर भी पूरा फोकस है। दोनों के बीच बैलेंस बनाने का प्रयास है। देखते हैं आगे क्या होता है।

अमृता समरविले स्कूल में 12वीं कक्षा की छात्रा हैं और टाइगर वुड्स को अपना आदर्श मानती हैं। सिर्फ कहें नहीं सम्मान भी करें अमृता का मानना है कि भारत में महिलाओं के सम्मान के लिए हम बढ़चढ़ कर बातें तो करते

हैं, लेकिन स्थिति इससे काफी अलग है। हमें अपने आप को बदलना होगा। सिर्फ कहें नहीं, इसको अपने व्यवहार में भी उतारें। दूसरी तरफ महिलाओं को भी अपने अधिकार के लिए लडऩा होगा। उन्हें आगे आना होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि महिलाएं अपने उपर भरोसा रखें। वह किसी से कम नहीं हैं।

प्रस्तुति: प्रभात उपाध्याय, नोएडा READ: आओ नया ख्वाब बुनें

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