आसमान से होगी सूखे की निगरानी
एक भारतीय वैज्ञानिक समेत नासा के वैानिकों ने विश्व भर के किसानों को सूखे से निपटने में मदद करने की तैयारी कर ली है। उन्हें एक ऐसा उपग्रह (सैटेलाइट) बनाने में कामयाबी मिली है जो पूरी दुनिया में कहीं भी सूखे की भयावहता का पूर्व अनुमान लगा लेगी। इतना ही नहीं वह उपग्रह ये भी बता सकेगा कि उस इलाके कि मिट्टी को कैसे उपज
वाशिंगटन। एक भारतीय वैज्ञानिक समेत नासा के वैानिकों ने विश्व भर के किसानों को सूखे से निपटने में मदद करने की तैयारी कर ली है। उन्हें एक ऐसा उपग्रह (सैटेलाइट) बनाने में कामयाबी मिली है जो पूरी दुनिया में कहीं भी सूखे की भयावहता का पूर्व अनुमान लगा लेगी। इतना ही नहीं वह उपग्रह ये भी बता सकेगा कि उस इलाके कि मिट्टी को कैसे उपजाऊ बनाएं ताकि सूखे के बावजूद पर्याप्त फसल उपजाई जा सके।
जल और कार्बन की साइकिल पर काम कर चुके भारतीय वैज्ञानिक नरेंद्र दास ने बताया कि बारिश पर निर्भर किसानों को अगर मिट्टी में नमी का सही पता हो तो वह अधिकतम फसल उगाने के लिए एक निर्धारित समय में अपनी रणनीति बना सकते हैं। एसएमएपी उपग्रह उन्हें इसी दिशा में मदद करेगा। वह बताएगा कि सूखा कितना भीषण होगा और फिर उसके पूर्व आंकलन के आंकड़ों से किसान सूखे की मुश्किलों से उबर पाएंगे। मौजूदा समय में स्थानीय स्तर पर मिट्टी की हालत और गुणवत्ता को परखने का कोई वैश्विक निगरानी नेटवर्क नहीं है। ये सुविधा ना तो जमीनी तकनीक से उपलब्ध है और ना ही अब तक ऐसा कोई उपग्रह बनाया गया था। हालांकि किसान, वैज्ञानिक और संसाधन प्रबंधक जमीन पर संवेदी उपकरण लगाकर जमीन में नमी पर नजर रख सकते हैं। लेकिन इससे कुछ इलाकों का ही अध्ययन किया जा सकता है। साथ ही ये सुविधा कुछ अत्यधिक दुर्गम इलाकों जैसे अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में इस्तेमाल में लाना संभव नहीं है।
नासा के स्वायल म्वाइस्चर एक्टिव पैसिव (एसएमएपी) उपग्रह मिशन जल्द ही लांच किया जाएगा। इस उपग्रह से कृषि संबंधी हर प्रकार का स्थानीय आंकड़े तो मिलेंगे ही साथ ही विश्व की कृषि आवश्यकताओं और वैश्विक जल प्रबंधन की जरूरतों का भी पता चलेगा। एसएमएपी उपग्रह दो माइक्रोवेव उपकरणों के जरिए पृथ्वी की सतह की मिट्टी की ऊपर की 5 सेंटीमीटर की परत का पूरा मुआयना करेगा। विश्व के पूरे परिमाप में भी ये उपग्रह नम और उपजाऊ क्षेत्रों का पूरा खाका तैयार करेगा। दोनों उपकरण एक साथ काम करके हर नौ किलोमीटर के दायरे में मिट्टी का सूक्ष्म और गहन अध्ययन करेगा। पूरी दुनिया के एक पूर्ण चित्र को तैयार करने में वह दो या तीन दिन का समय लेगा।
कैलीफोर्निया के मोफेट फील्ड में स्थित नासा के एम्स रीसर्च सेंटर में वैज्ञानिक फोरेस्ट मेल्टन ने बताया कि इतने गहन रेजुलेशन के वैश्विक नक्शे के बावजूद प्रत्येक खेत के आकलन में मामूली हेर-फेर की गुंजाइश रह सकती है। उन्होंने कहा कि सूखे के हालात तब होते हैं जब मिट्टी कृषि के लिए उपयुक्त नहीं रहती। फसल के उत्पादन के लिए पर्याप्त पानी नहीं होता क्योंकि सतह पर पानी कम होने के साथ ही भूमिगत जल का स्तर और नीचे चला जाता है। उन्होंने बताया कि इसी साल मार्च महीने तक के आकलन से उन्हें पहले ही पता चल गया कि अमेरिका में इस साल गर्मियों में हालात बद से बदतर होंगे और खेती लायक हालात नहीं होंगे। इसलिए बहुत से इलाकों में सूखा पड़ेगा।
मेल्टन ने कहा, लेकिन भारत, मध्य-पूर्व और कई अन्य इलाकों में सिंचाई का काम बहुत हद तक साल भर ही भूमिगत जल को पंप से बाहर निकाल कर होता है। चूंकि भूमिगत जल की पैमाइश का अब तक कोई सटीक फॉर्मूला नहीं है इसलिए भारत में सिंचाई बहुत हद तक बारिश और ग्लेशियरों से नदियों में आने वाले पानी पर ही निर्भर रहती है। कुछ किसान इसलिए भी सूखे का सामना करते हैं क्योंकि उन्होंने खेती के लिए सिंचाई के तरीके बदल दिए हैं।