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पुरुषों के बराबर वेतन के लिए महिलाओं को अभी लगेंगे 71 वर्ष

दुनिया भर में महिला अधिकारों को लेकर लंबे-चौड़े दावों के बीच अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) ने आधी आबादी के दशा-दिशा को लेकर एक कड़वी सच्चाई उजागर की है। आइएलओ का कहना है कि तमाम उपायों के बाद भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर तनख्वाह नहीं मिलती है। दोनों की पगार

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 08 Mar 2015 06:01 PM (IST)Updated: Sun, 08 Mar 2015 06:49 PM (IST)

संयुक्त राष्ट्र। दुनिया भर में महिला अधिकारों को लेकर लंबे-चौड़े दावों के बीच अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) ने आधी आबादी के दशा-दिशा को लेकर एक कड़वी सच्चाई उजागर की है। आइएलओ का कहना है कि तमाम उपायों के बाद भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर तनख्वाह नहीं मिलती है। दोनों की पगार में भारी अंतर है। श्रम संगठन के अनुसार, 'महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन पाने में अभी और 71 वर्षो का इंतजार करना होगा। दोनों के बीच वेतन के अंतर की यह खाई 2086 तक ही पट सकती है।

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आइएलओ की ओर से कहा गया है कि तमाम दावों के बावजूद पुरुष जितना कमाते हैं, उसका 77 फीसद ही महिलाएं अर्जित कर पाती हैं। उच्च आय वर्ग में लैंगिक असमानता की यह खाई और चौड़ी है। श्रम संगठन के महानिदेशक गाई राइडर ने एक बयान जारी कर कहा है कि कामकाजी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए अभी बहुत कुछ और करने की जरूरत है।

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दुनिया भर के मजदूरों के हितों का ख्याल रखने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ की इस संस्था ने कहा है कि अगर वांछित लक्ष्य निर्धारित नहीं किया गया तो पुरुष-महिला वेतन के बीच की गैरबराबरी 2086 के पहले खत्म नहीं हो सकती है। यानी पुरुषों के बराबर वेतन के लिए महिलाओं को अभी 71 वर्ष और इंतजार करना होगा।

पढ़ें: आधी आबादी की पूरी कहानी

हर कदम निर्बलीकरण की बाधा

श्रम बाजार में भागीदारी की चर्चा करते हुए बयान में कहा गया है कि महिलाओं की जहां लगभग आबादी कामकाजी है, वहीं पुरुषों में यह प्रतिशत 77 है। राइडर के अनुसार इस भागीदारी के इस अंतर को पाटना बेहद जरूरी है। उन्होंने बताया कि समस्त व्यापारिक गतिविधियों के तीस फीसद हिस्से पर वैसे तो महिलाओं का नियंत्रण है, लेकिन वे अपने आपको लघु उद्योग तक ही सीमित रखती हैं।

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बड़ी कंपनियों में सीईओ के पद पर केवल पांच प्रतिशत महिलाएं ही काबिज हैं। आइएलओ ने माना है कि अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों और नीतियों के लागू होने के बावजूद कार्यस्थल पर अभी भी महिलाओं से भेदभाव जारी है।

पढ़ें: महिला शश्ि क्तकरण में भारत सबसे पीछे


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