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गर्मी से राहत की खबरः अब मिलेगी मानसून की जल्द और सटीक जानकारी

हमारे देश के कई राज्य सूखे की चपेट में हैं और ऐसे में किसानों को मानसून का इंतजार है। मानसून को लेकर एक अच्छी खबर आई है।

By Abhishek Pratap SinghEdited By: Published: Thu, 21 Apr 2016 04:08 PM (IST)Updated: Thu, 21 Apr 2016 09:41 PM (IST)

बर्लिन, पीटीआइ : किसानों ही नहीं समूचे भारत देश के लिए यह एक अच्छी खबर है। अब देश को मानसून के बारे में जानकारी और जल्दी मिल सकेगी। जर्मनी के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित पूर्वानुमान प्रणाली से जल्दी और सटीक जानकारी हासिल हो सकेगी।

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यह विश्लेषण मौसम के आंकड़ों से संभव होगा। इससे उपमहाद्वीप में खाद्यान्न, पानी और जल विद्युत संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन में मदद मिलेगी।

गर्मी के मौसम के बाद होने वाली भारी बारिश का पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में बड़ा महत्व है। किसानों की निगाहें इस बारिश के लिए आसमान पर टिकी रहती हैं। मौसम परिवर्तन के चलते इस बारिश का समय और मात्रा भी बदली है। ऐसे में मौसम के सटीक पूर्वानुमान का महत्व बढ़ गया है।

ताजा शोध का नेतृत्व कर रहीं जर्मनी के पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआइके) की वेरोनिका स्टोलबोवा के अनुसार अब हम पहले की तुलना में भारत में मानसून आने की सूचना को दो हफ्ते पहले दे सकेंगे। इसके ठहरने की सूचना करीब छह हफ्ते पहले दे सकेंगे। साथ ही किसानों को प्रतिदिन होने वाली वर्षा के बारे में भी जानकारी दे सकेंगे।

शोध में पाया गया है कि उत्तरी पाकिस्तान, पूर्वी घाट का इलाका और पर्वतीय श्रृंखलाएं मानसून की मुश्किल स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं। अध्ययन के लिए दक्षिण में केरल को फोकस किया गया है। वर्षा का समय धान की खेती के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन इसका उतना ही महत्व पनबिजली के लिए भी है।

मानसून की सही सूचना फसल बुवाई कार्यक्रम बनाने के लिए किसानों के वास्ते लाभदायक साबित होती है। धान, सोयाबीन और कपास की खेती सामान्यत: जून से सितंबर के बीच के वर्षाकाल में होती है। यह वर्षा मानसून पर आधारित होती है। अधिक वर्षा से जनजीवन को नुकसान पहुंचता है तो पनबिजली परियोजनाओं, बांधों आदि को लाभ होता है।

ताजा अध्ययन से मानसून की पूर्वानुमान को 80 फीसद तक सही रूप में दिया जा सकेगा। यह अध्ययन जर्नल जियोफिजीकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

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