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इटली की मीडिया का दावा, भारत ने तीन गुना अधिक कीमत पर खरीदे गए थे हेलीकाप्टर!

अगस्तावेस्टलैंड के जिन हेलीकाप्टरों को खरीदा गया था, उनकी असली कीमत 100 करोड़ रुपये के करीब है। लेकिन भारत ने इसके लिए प्रति हेलीकाप्टर लगभग 300 करोड़ रुपये चुकाया था।

By Atul GuptaEdited By: Published: Wed, 04 May 2016 12:36 AM (IST)Updated: Wed, 04 May 2016 01:18 AM (IST)
इटली की मीडिया का दावा, भारत ने तीन गुना अधिक कीमत पर खरीदे गए थे हेलीकाप्टर!

नई दिल्ली, नीलू रंजन। अगस्तावेस्टलैंड से वीवीआइपी हेलीकाप्टर उसकी असली कीमत से तीन गुना अधिक दाम पर खरीदे गए थे। इटली के अखबारों में छपी खबरों के अनुसार अगस्तावेस्टलैंड के जिन हेलीकाप्टरों को खरीदा गया था, उनकी असली कीमत 100 करोड़ रुपये के करीब है। लेकिन भारत ने इसके लिए प्रति हेलीकाप्टर लगभग 300 करोड़ रुपये चुकाया था। यही नहीं, इटली में घोटाले के आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद भारत में सीबीआइ ने आनन-फानन में एफआइआर तो दर्ज कर लिया, लेकिन संप्रग सरकार के रहने के दौरान हाथ-पर-हाथ धर कर बैठ गई। यहां तक कि ईडी ने एनडीए सरकार बनने के बाद मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किया था।

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इटली में छपी खबरों को सही बताते हुए ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सीएजी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अगस्तावेस्टलैंड हेलीकाप्टर के बेस प्राइस को ही काफी ऊंचा रखा गया था। 12 वीवीआइपी हेलीकाप्टरों की खरीद की बेस प्राइस 4800 करोड़ रुपये तय कर दी गई थी। यही कारण है कि अगस्तावेस्टलैंड ने जब 3600 करोड़ रुपये में इसे देने का आफर किया, तो इसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया। लेकिन जहां इन हेलीकाप्टरों को बनाया जाता है कि उसी इटली से आ रही खबरों के अनुसार अगस्तावेस्टलैंड ने असली कीमत से तीन गुना का आफर दिया था। यही कारण है कि कंपनी ने खुलकर दलाली बांटी।

वहीं संप्रग सरकार के दौरान मजबूरी में इस मामले में एफआइआर तो दर्ज की गई, लेकिन उसके बाद सीबीआइ ने कुछ नहीं किया। यही नहीं, सीबीआइ ने ईडी को नौ महीने तक एफआइआर की प्रति भी नहीं दी ताकि आरोपियों के खिलाफ मनी लांड्रिंग का केस दर्ज किया जा सके। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इटली में दलाली के देने के आरोप में कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों व दलालों की गिरफ्तारी के बाद सीबीआइ ने भी तत्काल एफआइआर दर्ज कर लिया।

इसके बाद ईडी ने सीबीआइ से एफआइआर की प्रति मांगी ताकि वह मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर सके। लेकिन दो बार रिमाइंडर भेजने के बाद भी तत्कालीन सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा ने दिसंबर 2013 तक ईडी को एफआइआर की प्रति नहीं दी। दिसंबर के अंत में ईडी को एफआइआर की प्रति मिली भी, तो कोई कार्रवाई करने की जरूरत नहीं महसूस की गई। मोदी सरकार के बनने के बाद जुलाई 2014 में ईडी ने इस मामले में मनी लांड्रिंग का केस दर्ज कर जांच शुरू की। इसके बाद न सिर्फ आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, बल्कि उनकी संपत्ति भी जब्त की गई।

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