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सीरिया के इन शरणार्थियों के लिए रियो पहुंचना ही है 'गोल्‍ड मैडल'

सीरिया में छिड़े गृहयुद्ध से बचकर दूसरे देशों में शरणार्थी जीवन जीने को मजबूर इन खिलाडि़यों केे लिए रियो ओलंपिक में भाग लेना ही पदक जीतने से कम नहीं है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 31 Jul 2016 09:05 PM (IST)Updated: Sun, 31 Jul 2016 09:24 PM (IST)
सीरिया के इन शरणार्थियों के लिए रियो पहुंचना ही है 'गोल्‍ड मैडल'

रियो डी जेनेरियो, (एएफपी)। अगर ओलंपिक में बहादुरी भी खेल के रूप में दर्ज होती तो रियो पहुंचे दस शरणार्थी खिलाडि़यों की टीम निश्चित तौर पर स्वर्ण पदक की दावेदार होती। टीम में शामिल हर शरणार्थी खिलाड़ी ने ओलंपिक में खेलने का सपना पूरा करने के लिए चुनौतीपूर्ण बाधाओं को पार किया है। इनमें सीरिया की 18 वर्षीय तैराक युसरा मर्दिनी हैं, जिन्होंने कश्ती में बैठकर भूमध्य सागर को पार किया।

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लगभग एक साल पहले खतरनाक यात्रा के दौरान वह जिस जहाजनुमा नाव में सवार थीं, उसका इंजन फेल हो गया था। उसमें पानी भरने लगा था तो जान बचाने को वह और उनकी बहन पानी में कूद गई थीं। अगले तीन से साढ़े तीन घंटे तक वे दोनों एक रस्सी पकड़कर पानी से नाव को बचाने में लगी रहीं। अब वह शरणार्थी के तौर पर परिवार के साथ जर्मनी में रह रही हैं।

सौ मीटर बटरफ्लाई और सौ मीटर फ्रीस्टाइल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली मर्दिनी ने कहा, 'यहां पहुंचना निश्चित तौर पर मेरे लिए सम्मान की बात है। मुझे गर्व है कि मैं यहां सीरिया का प्रतिनिधित्व करूंगी। यह सम्मान मेरे देश, जर्मनी और ओलंपिक समिति के लिए भी है, जिसने मुझे यहां तक आने में मुझे पूरा समर्थन दिया।'

उनके साथ सीरियाई तैराक रामी एनिस भी हैं, जो 2011 में सेना में शामिल होने से बचने के लिए सीरिया छोड़ने को मजूबर हुई थीं। उन्हें इसका दुख है कि वह एक सीरियाई खिलाड़ी के बजाय शरणार्थी के रूप में यहां खेलने जा रही हैं। उन्होंने कहा, 'हम उन लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिनसे उनके मानवाधिकार छीन लिए गए हैं और जो अन्याय का सामना कर रहे हैं।'

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पोपोल मिसेंगा ने खूनी लड़ाई से बचने के लिए एक डरे हुए बच्चे की तरह आठ दिन जंगल में छिपकर बिताए। बाकी खिलाडि़यों की कहानियां भी इसी तरह की हैं। टीम के कोच गेराल्डो बर्नाडिस से जब इस टीम के पदक जीतने की संभावना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस सवाल को महत्वहीन बताया। उनका कहना था, 'रियो ओलंपिक में हिस्सा ले पाना ही टीम के खिलाडि़यों के लिए पदक जीतने जैसा है।

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पहली बार किसी ओलंपिक खेल में कोई शरणार्थी टीम शामिल हो रही है। इस टीम में चार देशों के दस खिलाड़ी शामिल हैं, जिनमें छह पुरुष और चार महिलाएं शामिल हैं। टीम में दक्षिण सूडान से पांच एथलीट, सीरिया से दो, कांगो से दो और एक इथियोपिया से है। ये सभी ओलंपिक ध्वज के तहत भाग लेंगे। ये खिलाड़ी तैराकी, जूडो और एथलेटिक्स में भाग लेंगे। शनिवार को इन खिलाडि़यों ने रियो डी जेनेरियो की पहचान बन चुके क्राइस्ट स्टैचू के सामने फोटोशूट कराया। इस दौरान कई खिलाड़ी भावुक हो गए और उनकी आंखों में आंसू आ गए।

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