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गुलाम कश्मीर के रास्ते अरब सागर तक सुरंग बनाएगा चीन

भारत के रक्षा मंत्री एके एंटनी के चीन दौरे के बीच शुक्रवार को चीन और पाकिस्तान ने आठ समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इनमें विवादित गुलाम कश्मीर के रास्ते 200 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का 1

By Edited By: Published: Fri, 05 Jul 2013 09:47 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jul 2013 04:24 AM (IST)

बीजिंग। भारत के रक्षा मंत्री एके एंटनी के चीन दौरे के बीच शुक्रवार को चीन और पाकिस्तान ने आठ समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इनमें विवादित गुलाम कश्मीर के रास्ते 200 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का 18 अरब डॉलर का बड़ा करार भी है।

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पढ़ें: गुलाम कश्मीर पर कब्जा कर रहा है चीन

इस करार का मकसद कहने को तो दोनों मित्र देशों के आर्थिक रिश्ते मजबूत करना और चीन की ऊर्जा की जरूरतों के लिए उसे तेल आपूर्ति का रास्ता देना है लेकिन यह भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से खतरनाक है क्योंकि गुलाम कश्मीर भारत का हिस्सा है।

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चीन यात्रा पर पहुंचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अपने चीन के समकक्ष ली कछ्यांग से मुलाकात के बाद इन समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। ली ने पाकिस्तान के अरब सागर स्थित ग्वादर बंदरगाह को पश्चिमोत्तर चीन के शिनजियांग स्थित काशघर को जोड़ने वाली 200 किलोमीटर लंबी सुरंग के बारे में कहा कि इस पाक-चीन इकोनॉमिक कॉरिडोर में चीन का रणनीतिक हित है।

रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को इसी साल चीन ने अपने नियंत्रण में लिया है। इसके जरिये चीन को अरब सागर और होर्मूज जलडमरूमध्य तक पहुंच हो गई है। इसी रास्ते से दुनिया की एक तिहाई तेल की ढुलाई होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस कॉरिडोर से झिंजियांग के विकास को गति मिलेगी। इसके जरिये चीन को पश्चिम एशिया से ऊर्जा आयात का एक नया रास्ता मिल जाएगा।

यह कॉरिडोर गुलाम कश्मीर से होकर गुजरेगा जिसकी सीमा झिंजियांग से लगी है और पाकिस्तान और चीन के बीच केवल यही आसान रास्ता होगा। 18 अरब डॉलर के इस करार पर पाकिस्तान के योजना एवं विकास मंत्री अहसान इकबाल और चीन के राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग के अध्यक्ष शु शाओ शी के हस्ताक्षर हुए। इससे पहले तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार चीन पहुंचने पर नवाज शरीफ का ली ने गर्मजोशी से स्वागत किया।

दोस्ती की बातें और दुश्मनी के पैंतरे

नई दिल्ली। दोस्ती की मीठी बातों और सीमा पर आक्रामक चालों के साथ चीन के नए पैंतरे भारत की चिंता बढ़ा रहे हैं। मार्च में चीन में नेतृत्व परिवर्तन के बाद राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने आते ही भारत के साथ अच्छे रिश्तों की अहमियत जताई। कुछ ही हफ्तों बाद चीन की सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय हद में तंबू गाड़ दिए। सीमा पर तनाव घटाने के लिए सात साल बाद हो रहे भारतीय रक्षा मंत्री के दौरे से ठीक पहले चीन के सेना के एक जनरल के आग उगलते बयान ने चीन की नीयत पर सवालों को बढ़ाया ही है।

आधिकारिक तौर पर भारतीय खेमे ने इस बयान को जहां अधिक तूल देने से परहेज किया वहीं चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग भी इस बाबत हुए सवालों को टाल गई। उल्लेखनीय है कि चीन सेना के मेजर जनरल लुओ युआन ने भारत को सीमा पर सैन्य विकास न करने और उकसावे की किसी कार्रवाई कर नई समस्या पैदा करने को लेकर चेताया। साथ ही बड़बोले जनरल ने भारत पर चीन के 90 हजार वर्ग किमी क्षेत्र पर कब्जे की भी तोहमत जड़ी।

भारतीय सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस बयान को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। रक्षा जानकार कमोडोर उदय भास्कर कहते हैं कि चीनी जनरल के बयान को ध्यान में रखते हुए एंटनी की यात्रा के बाद संभावित संयुक्त वक्तव्य पर नजर रखने की जरूरत है।

महत्वपूर्ण है कि चीन की ओर से जम्मू-कश्मीर को विवादित इलाका बताने व वहां के नागरिकों को नत्थी वीजा देने से लेकर संबंध सुधार की यात्रा पर जाने वाले भारतीय सेना के एक जनरल को वीजा से इन्कार जैसी घटनाएं होती रही हैं।

चीन के ताजा बयान पर पूर्व विदेश मंत्री और भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने कहा कि इस संबंध में चीन से स्पष्टीकरण मांगा जाना चाहिए। यदि चीन इस बारे में संतोषजनक जवाब नहीं देता को रक्षा मंत्री एंटनी को अपनी यात्रा बीच में ही छोड़ लौटा आना चाहिए।

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