दिल्ली में भाजपा की मनेगी दिवाली या राज्य की गद्दी रहेगी खाली
दिल्ली का सियासी गतिरोध अभी कायम रहने के आसार हैं। सुप्रीम कोर्ट में 10 अक्टूबर को केंद्र व सूबे की सरकार को दिल्ली विधानसभा के भविष्य को लकर जवाब देना है लेकिन मंगलवार तक सरकार के स्तर पर ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया गया जिससे सियासी हलचल के संकेत मिलते हों। केंद्र सरकार के लिए दिल्ली की अहि
नई दिल्ली [अजय पांडेय]। दिल्ली का सियासी गतिरोध अभी कायम रहने के आसार हैं। सुप्रीम कोर्ट में 10 अक्टूबर को केंद्र व सूबे की सरकार को दिल्ली विधानसभा के भविष्य को लकर जवाब देना है लेकिन मंगलवार तक सरकार के स्तर पर ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाया गया जिससे सियासी हलचल के संकेत मिलते हों।
केंद्र सरकार के लिए दिल्ली की अहमियत कितनी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजनिवास को आज तक अपनी उस सिफारिश का जवाब नहीं मिला जिसमें उपराज्यपाल नजीब जंग ने सबसे बड़ा दल होने के नाते भाजपा को दिल्ली में सरकार बनाने के लिए न्योता देने का प्रस्ताव किया था।
सूत्रों की मानें तो गृह मंत्रालय ने उपराज्यपाल की सिफारिश को सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार कर लिया लेकिन इस सिफारिश को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी दिलाने की औपचारिकता आज तक नहीं पूरी की गई। यही वजह है कि उपराज्यपाल अब केंद्र सरकार के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं। जब तक केंद्र की मंजूरी व राष्ट्रपति की सहमति का पत्र उनके पास नहीं आ जाता, तब तक राजनिवास के पास भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
सियासी पंडितों का अनुमान है कि जब इतने दिनों तक भाजपा ने कोई पहल नहीं की तो अब साफ है कि आगामी 15 अक्टूबर को हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा के लिए होने वाले मतदान से पहले वह दिल्ली में सरकार बनाने की दिशा में कोई भी कदम नहीं बढ़ाएगी। पार्टी विरोधियों को यह कहने का मौका नहीं देना चाहती कि उसने दिल्ली में अपनी सरकार बनाने के लिए दूसरे दलों में तोड़फोड़ की।
कहा यह भी जा रहा है कि पार्टी की नजर इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम पर भी है। यदि नतीजे उसके अनुकूल आए तो वह चाहेगी कि दिल्ली विधानसभा को भंग कर इसके चुनाव भी झारखंड और जम्मू-कश्मीर के साथ करा लिए जाएं। यदि नतीजे उसके विपरीत आए तो वह राजधानी में कुछ सहयोगियों के साथ सरकार बनाने की पहल कर सकती है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी हो रही है कि यदि महाराष्ट्र व हरियाणा के चुनाव भाजपा के पक्ष में रहे तो दिल्ली में भी उसे समर्थन देने वालों की संख्या बढ़ सकती है और उसके लिए सरकार बनाना आसान हो सकता है।
बहरहाल, अब देखना यह है कि भाजपा दीपों के त्योहार से पहले दिल्ली में सत्ता की दिवाली मनाती है अथवा सूबे की गद्दी अभी यूं ही खाली पड़ी रहती है।