अकेले सरकार नहीं ला सकती बदलाव, चाहिए सबका साथ : वेंकैया नायडू
उपराष्ट्रपति ने पत्रकारिता के आदर्शो का जिक्र करते हुए नरेंद्र मोहन की भूमिका को याद किया।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। नए भारत की अपेक्षा है तो जनभागीदारी की जिम्मेदारी भी निभानी होगी। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का स्पष्ट मानना है कि अकेले सरकार बदलाव नहीं ला सकती है। मानसिकता से लेकर कर्तव्य के स्तर पर हर किसी को एकजुट होना पड़ेगा।
मंगलवार को उपराष्ट्रपति ने दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक नरेंद्र मोहन की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में 'बदलते सामाजिक परिवेश में नए भारत की चुनौतियां' विषय पर बोल रहे थे। खरी खरी बात करने के लिए जाने जाने वाले नायडू ने एक ऐसे समाज के निर्माण में हर किसी से मदद मांगी जो सहिष्णु हो, जो एक दूसरे की जरूरत को समझे और सकारात्मक मुद्दों के प्रचार प्रसार में मदद करे। अपने चुटीले अंदाज में उन्होंने कहा -'सब काम सरकार करेगा, हम बेकार बैठे तो चलेगा' जैसी बाते नहीं चलेंगी। इस क्रम में उन्होंने जनप्रतिनिधियों को भी सीख दी कि वह किसी एक समुदाय के प्रतिनिधि नहीं हो सकते हैं।
आज मुझे बडी खुशी हो रही है कि दैनिक जागरण के पूर्व प्रधान संपादक स्वर्गीय नरेंद्र मोहन की स्मृति व्याख्यान माला में मुझे आपने आमंत्रित किया। pic.twitter.com/Tsu8clXVfI— VicePresidentOfIndia (@VPSecretariat) October 10, 2017
नरेंद्र मोहन जैसे महान व्यक्तियों के बारे में जब हम सोचते हैं तो बहुत प्रेरणा मिलती है। pic.twitter.com/LVYDOu72XJ— VicePresidentOfIndia (@VPSecretariat) October 10, 2017
केंद्र में मंत्रीकाल के अपने संस्मरण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि स्वच्छता अभियान की शुरूआत के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इसे सरकारी या राजनीतिक कार्यक्रम न बनने दीजिए। नायडू ने कहा कि सच्चाई यही है कि कोई भी बदलाव सरकार की भूमिका में नहीं हो सकता है। नायडू ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम का भी हवाला दिया और अपील की कि देश के सामने गरीबी, अशिक्षा जैसी जितनी चुनौतियां है उनसे निपटने के लिए भी जन भागीदारी चाहिए। इसका यह मतलब नहीं कि सरकार की भूमिका नहीं है। राजनीतिक तत्परता और इच्छाशक्ति जरूरी है। सबका साथ मिलने के बाद इसकी मजबूती बढ़ जाती है।
उपराष्ट्रपति ने पत्रकारिता के आदर्शो का जिक्र करते हुए नरेंद्र मोहन की भूमिका को याद किया। कुछ संस्मरणों का वर्णन करते हुए कहा कि नरेंद्र मोहन जी ने देश और समाज की जरूरतों को ध्यान रखते हुए संपादक की भूमिका निभाई। वह एक प्रखर वक्ता और गंभीर चिंतक थे। उन्होंने उनके दिखाए राह पर ही पत्रकारिता को आगे बढ़ाने की अपील की। उन्होने कहा कि नया भारत ऐसा होना चाहिए, जहां भूख, भय, भ्रष्टाचार, सामाजिक विसमता और आंतक नहीं होना चाहिए। पूरे समाज के साथ साथ मीडिया को भी इस जिम्मेदारी में भूमिका निभानी चाहिए।
इससे पहले उपराष्ट्रपति का स्वागत करते हुए दैनिक जागरण के प्रधान संपादक संजय गुप्त ने कहा कि विश्व में सबसे बड़ी युवाओं की फौज देश के लिए बड़ी पूंजी तो है लेकिन शिक्षा बड़ी चुनौती है। इतने वर्षो के बाद भी शिक्षा पीछे रह गई। जबकि उपराष्ट्रपति को धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रबंध संपादक तरुण गुप्त ने भरोसा दिलाया कि व्यक्तिगत रूप से भी और मीडिया के माध्यम से भी वह नए भारत के निर्माण में भागीदार बनेंगे और देश को विकासशील से विकसित बनाएंगे।
हिन्दी के बगैर हिन्दुस्तान में बढ़ पाना संभव नहीं
उपराष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू को धाराप्रवाह हिंदी बोलते सुनना आश्चर्य नहीं है। लेकिन यह कम लोग जानते होंगे कि अपने शुरूआती छात्र जीवन में उन्होंने इसका विरोध किया था और बाद में गलती का अहसास हुआ। उन्होंने कहा कि हिंदी के बिना विकास संभव नहीं है। मातृभाषा को प्राथमिकता देते हुए उन्होंने कहा कि देश के हरेक व्यक्ति को अपनी संस्कृति, परंपरा और वेशभूषा पर गर्व होना चाहिए। इसमें किसी को संकोच करने की जरुरत नहीं है। हरेक व्यक्ति को मां, जन्मभूमि, मातृभाषा और मातृदेश से प्रेम होना चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं है कि अंग्रेजी या किसी भी दूसरी भाषा का विरोध हो।