मोदी सरकार ने किया भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार
मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं। मोदी सरकार ने पिछली यूपीए की सरकार की नीतियों में कई बदवाल किए हैं। जिसको लेकर मौजूदा सरकार को भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में कुछ हद तक सफलता भी मिली है।
राजकिशोर, नई दिल्ली। व्यक्तिगत से पहले संस्थागत भ्रष्टाचार की रीढ़ पर मोदी सरकार ने प्रहार करने की कोशिश की है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बेआबरू हुई पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के हश्र को देखकर सत्ता में आने के साथ ही नीतियों में विद्यमान भ्रष्टाचार के सुराखों को बंद करने में मोदी सरकार काफी हद तक सफल रही है।
खासतौर से प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन में होने वाले भ्रष्टाचार की तो जड़ पर ही सरकार ने सीधे प्रहार किया है। संप्रग सरकार के 2जी और कोयला घोटाले में जिस तरह के घोटाले हुए, उनके पीछे मोदी सरकार नीतियों में कमी ही देखती है। इसीलिए, केंद्र ने नीतियों को ही पूरी तरह पारदर्शी और जवाबदेह बनाया, जिसके नतीजे बेहद प्रभावी आए हैं।
नीतियों में बदलाव का ही नतीजा है कि मोदी सरकार अपने पिछले दो साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार न होने का खम ठोक रही है। साथ ही स्पेक्ट्रम या कोयला खदान नीलामी से जो धन की कमाई हुई, उससे केंद्र के साथ-साथ राज्यों को जबर्दस्त फायदा हुआ है। दरअसल, मोदी के प्रबंधकों ने आकलन किया तो पाया कि संप्रग के समय में नीतियां ही ऐसी थीं, जिनसे भ्रष्टाचार के पनपने और बंदरबांट को पूरा माहौल मिलता था। इसे देखते हुए सरकार सबसे ज्यादा संवेदनशील और सतर्क भ्रष्टाचार के मूल तक पहुंचने पर थी।
इसीलिए, 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लाक आवंटन की प्रक्रिया को मोदी सरकार ने पारदर्शी बनाते हुए नीलामी में तब्दील कर दिया। नतीजा यह हुआ कि कोयला ब्लॉकों की नीलामी में सरकारी खजाने में भारी भरकम दो लाख करोड़ रुपये आ चुके हैं। साथ ही बिजली उपभोक्ताओं को 97000 करोड़ रुपये का लाभ अलग से आने वाले समय में होगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा भी है कि 'यदि 33 कोल ब्लाक आवंटन से दो लाख करोड़ की राशि सरकारी खजाने में आ सकती है तो यह दर्शाता है कि यदि नीतियां सही हों और ईमानदारी से प्रयास किए जाएं तो व्यवस्था से भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाया जा सकता है। हमने यह जिम्मेदारी ली है और इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।' जाहिर है कि आने वाले दिनों में सरकार व्यवस्थागत भ्रष्टाचार को खत्म करने वाली नीतियों के बनाने और उनके अमल पर जोर देगी।
मोदी के इस आशावाद के पीछे तथ्य भी हैं। स्पेक्ट्रम की नीलामी से ही सरकार को एक लाख करोड़ रुपये से अधिक धनराशि आई है। वहीं दूसरी ओर संप्रग सरकार के कार्यकाल में स्पेक्ट्रम आवंटन में हुए घोटाले को सरकारी खजाने को 57,666 करोड़ रुपये से 1,76,645 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है।
संप्रग कार्यकाल में 1800 से 800 मेगाहर्ट के बीच स्पेक्ट्रम से 9013 करोड रुपये 2008 में सरकारी खजाने में आए थे। अगर इसकी नीलामी की गई होती तो इससे खजाने को कम से कम 57,671 करोड़ रुपये मिलते। वित्त वर्ष 2014-15 के बजट अनुमानों के आधार पर इस धनराशि को देखें तो यह इससे स्कूली शिक्षा का एक साल का बजट चल सकता था। इससे दो साल का स्वास्थ्य बजट दिया जा सकता था। अगर यह धनराशि 27 करोड़ गरीब परिवारों में बांटी जाती तो इससे हर परिवार को कम से कम 3717 रुपये मिलते।