डोकलाम से लंबा चल सकता है मौजूदा विवाद, भारत बना रहा ऐसी पॉलिसी जिसको तोड़ न सके ड्रैगन
चीन की सीमा पर हालात काफी तनावपूर्ण हैं। ऐसे में चीन को सबक सिखाने के लिए जरूरी है कि एक ऐसी रणनीति बनाई जाए जिसका तोड़ उसके पास न हो। ऐसे में चीन से मोलभाव करना भी आसान होगा।
नई दिल्ली। चीन के साथ गलवन घाटी को लेकर शुरू हुए विवाद के बीच भारत सरकार ने सीमा पर मौजूद सैनिकों को हालात से निपटने के लिए खुली छूट दे दी है। इसके अलावा विवाद बढ़ता देख 500 करोड़ के हथियार सौदे को भी मंजूरी दे दी गई है। गलवन की घटना ने चीन की धोखेबाजी को एक बार फिर पूरी दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया है। चीन को समझने वाले लोग विशेषज्ञ मानते हैं कि उसको पटखनी देना आसान भले ही न हो लेकिन ये नामुमकिन भी नहीं है। जवाहरलाल यूनिवर्सिटी स्थित सेंटर फॉर चाइनीज एंड साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज के प्रोफेसर बीआर दीपक मानते हैं कि इसके लिए भारत को एक ठोस रणनीति बनाने की जरूरत है। वहीं दूसरी तरफ सरकार की तरफ से भी इस तरह की पॉलिसी बनाने के संकेत दिए जा चुके हैं। उनके मुताबिक दोनों देशों के बीच चलने वाली ये लड़ाई लंबी है, जिसका हल खोजने के लिए चीन से जुड़े विशेषज्ञों की भी मदद लेनी होगी। उनका ये भी मानना है कि ये विवाद और तल्खी डोकलाम विवाद से भी लंबी जा सकती है।
चीन की बौखलाहट
प्रोफेसर दीपक का कहना है कि चीन ने गलवन को पहली बार निशाना बनाया है। ये तब है जब 60 के दशक में ही वो इस बात को मान गया था कि गलवन घाटी पूरी तरह से भारत का क्षेत्र है। वो गलवन में हुई घटना को न सिर्फ एक बड़ी घटना मानते हैं बल्कि उनके मुताबिक इस बौखलाहट के पीछे उसका डर छिपा है। उनके मुताबिक जिस सड़क का निर्माण भारत ने गलवन नदी के समानांतर किया है वो रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। चीन का डर है कि इस सड़क के पीछे का असल मकसद अक्साई चिन है। वहीं अक्साई चीन का सीधा मतलब पाकिस्तान में बन रहा वो आर्थिक गलियारा है जिस पर वो 60 बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है। यही वजह है कि वो नहीं चाहता है कि भारत इस क्षेत्र में किसी भी सूरत से ऐसा दबदबा बनाने में सफल हो जाए जिससे उसको परेशानी का सामना करना पड़े।
चीन के खिलाफ ठोस नीति
चीन के खिलाफ लिए जाने वाले ठोस फैसलों के बाबत उनका कहना था कि आर्थिक मोर्चे पर चीन को पछाड़ना आसान हो सकता है। लेकिन इसके लिए एक रणनीति के साथ आगे बढ़ने की जरूरत होगी। इसकी वजह ये भी है कि वर्तमान में चीन पर हमारा उद्योग काफी हद तक निर्भर करता है। हमारी सुरक्षा से जुड़ी कुछ चीजें भी चीन से ही आती हैं। इसलिए सरकार को चीन से जुड़े सभी क्षेत्र के विशेषज्ञों की एक टीम बनानी चाहिए, जो सरकार को इससे निपटने के उपाय सुझा सके। इस टीम में आर्थिक, राजनीतिक, सामरिक और कल्चरल क्षेत्र से जुड़े लोग भी शामिल होने चाहिए। उनके मुताबिक आर्थिक मोर्चे पर भी भारत हर जगह चीन का बहिष्कार नहीं कर सकता है, लेकिन ये जरूर तय कर सकता है कि कहां पर उसकी भागीदारी हो और कहां नहीं। इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि भारत के घरेलू उद्योग में चीन की बड़ी भागीदारी है।
निकट भविष्य में सुलझना मुश्किल
प्रोफेसर दीपक का ये भी मानना है कि चीन से इस वक्त तलखी इस कदर बढ़ी हुई है कि इस समस्या का समाधान निकट भविष्य में होना मुश्किल है। उनके मुताबिक ये मुद्दा डोकलाम विवाद से भी लंबा जाने की आशंका है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से लगातार गलवन को अपना क्षेत्र बताया जा रहा है और 15-16 जून की रात को जो कुछ हुआ उसके लिए भारत को ही दोषी ठहराया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ घटना के बाद सैन्य अधिकारी स्तर की वार्ता भी बेनतीजा रही है। ऐसे में कूटनीतिक वार्ता का शुरू होना और विदेश मंत्री स्तर की बातचीत होना फिलहाल मुमकिन नहीं लगता है। इसके बावजूद वार्ता के प्रयास जारी रहने चाहिए। साथ ही सीमा पर अधिक चौकस रहने की जरूरत है।
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...तो इस तरह से ड्रेगन को घुटनों पर लाना होगा आसान, निकल जाएगी चीन की सारी हेकड़ी