नये एमओपी का फाइनल होना जरुरी
न्यायाधीशों की नियुक्ति की धीमी रफ्तार पर सुप्रीमकोर्ट ने तो सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए नाराजगी जताई है लेकिन सरकार इसके पीछे मुख्य कारण न्यायाधीशों की नियुक्ति के नये मैमोरेंडम
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। न्यायाधीशों की नियुक्ति की धीमी रफ्तार पर सुप्रीमकोर्ट ने तो सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए नाराजगी जताई है लेकिन सरकार इसके पीछे मुख्य कारण न्यायाधीशों की नियुक्ति के नये मैमोरेंडम आफ प्रोसीजर (एमओपी) का जल्दी फाइनल न होना मानती है।
सरकार का कहना है कि एमओपी का फाइनल होना जरूरी है ताकि प्रक्रिया पारदर्शी हो जैसा कि कोलीजियम व्यवस्था में सुधार के बारे में सुप्रीमकोर्ट के दिसंबर में दिये गये फैसले में कहा गया है।
सूत्र बताते हैं कि सरकार की कोशिश है कि नया एमओपी जल्दी फाइनल हो क्योंकि मौजूदा एमओपी में कुछ खामियां हैं। लेकिन एमओपी का मसला सरकार और सुप्रीमकोर्ट कोलीजियम के बीच सहमति न बन पाने के कारण अटका है। नया एमओपी तभी फाइलन हो पाएगा जब सरकार और कोलीजियम के बीच सारे बिन्दुओं को लेकर सहमति बने।
नये एमओपी को फाइलन करने की प्रक्रिया करीब एक साल से चल रही है दो बार सरकार एमओपी ड्राफ्ट करके सुप्रीमकोर्ट कोलीजियम को मंजूरी के लिए भेज चुकी है लेकिन दो तीन मुद्दे ऐसे हैं जिस पर सहमति नहीं बन रही है।
सरकार ने जो एमओपी ड्राफ्ट किया है उसमें कोलीजियम अगर नियुक्ति के लिए किसी का नाम खारिज करती है तो उसे लिखित में उसका कारण दर्ज करना होगा। सरकार का कहना है कि इससे प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी होगी। इसके अलावा कोलीजियम को मदद करने के लिए एक कमेटी होगी।
वैसे भी न्यायाधीशों की कमी के लिए सरकार कहीं न कहीं सुप्रीमकोर्ट कोलीजियम को भी जिम्मेदार मानती है। सूत्र बताते हैं कि कई ऐसे उदाहरण हैं जिसमें हाईकोर्ट कोलीजियम ने नियुक्ति के लिए जितने नामों की सिफारिश की थी उसे सुप्रीमकोर्ट कोलीजियम ने काफी घटा दिया।
उदाहरण के तौर पर इलाहाबाद हाईकोर्ट कोलीजियम ने 19 नामों की सिफारिश की थी लेकिन सुप्रीमकोर्ट कोलीजियम ने उनमें से सिर्फ 8 की ही सिफारिश की। इसी तरह कर्नाटक हाईकोर्ट ने 10 नामों की सिफारिश की थी जबकि सुप्रीमकोर्ट ने वहां भी दो दिए। राजस्थान के मामले में भी हाईकोर्ट से 10 की सिफारिश हुई जिसमें से सुप्रीमकोर्ट कोलीजियम ने सिर्फ 4 नाम भेजे।
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