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घायल पीड़ितों के बयान को सावधानी से परखें:सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि घायल पीड़ित का बयान विश्वसनीय माना जाता है इसलिए इसे सावधानी से परखनी चाहिए।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Sun, 05 Jun 2016 10:10 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jun 2016 11:13 PM (IST)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि कानून में घायल पीड़ित का बयान विश्वसनीय माना जाता है लेकिन अगर रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री और परिस्थितियां घायल द्वारा दुश्मनी या बदले की भावना के चलते किसी निर्दोष को फंसाने की ओर संकेत करती हों तो अदालत को उसके बयान की सावधानी से परख करनी चाहिये। कोर्ट ने यह कहते हुए हिमाचल प्रदेश की तीन महिलाओं को मारपीट और कातिलाना हमले के मामले में संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है।

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न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने गत शुक्रवार को तीनों महिलाओं की अपील स्वीकार करते हुए ये फैसला सुनाया। निचली अदालत व हाईकोर्ट ने तीनों को पांच साल के कारावास व जुर्माने की सजा सुनाई थी। हालांकि इस मामले में दो पुरुष भी अभियुक्त हैं लेकिन सुप्रीमकोर्ट में अपील सिर्फ तीनों महिलाओं की ही थी।

मामला हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का दिसंबर, 2011 का है। अभियोजन पक्ष के मुताबिक घायल पीडि़त श्रीराम का अपने भाइयों के साथ जमीन विवाद था। घटना के दिन श्रीराम खैर के दो गिरे हुए पेड़ों को टुकड़ों में काटना चाहता था लेकिन अभियुक्तों ने उसे ऐसा करने से रोका। जब श्रीराम नहीं माना तो अभियुक्त बृजलाल और देवराज ने उस पर हमला कर दिया। बृजलाल ने बंदूक से उसके जबड़े पर फायर किया जबकि देवराज ने कुल्हाड़ी से हमला किया। ये दोनों श्रीराम के भाई थे। श्रीराम ने एफआइआर में इन्हीं दोनों की भूमिका बताई थी लेकिन पुलिस को दिए बयान में दोनों भाइयों की पत्नी और एक और महिला पर भी मारपीट और हमले में शामिल होने के आरोप लगाए।

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तीनों महिलाओं की ओर से सजा को चुनौती देते हुए दलील दी गई थी कि उन्हें दुश्मनी के कारणर फंसाया गया है। वे मारपीट में शामिल नहीं थीं, बस घटना स्थल पर मौजूद थीं। इन दलीलों पर सुप्रीमकोर्ट ने श्रीराम के बयान की सावधानी से जांच परख करने के बाद कहा कि ट्रायल कोर्ट ने पीडि़त के बयान में अंतर पर ध्यान नहीं देकर गलती की है। ट्रायल कोर्ट सिर्फ इसमें फंस कर रह गया कि घायल के बयान पर विश्वास किया जाना चाहिए या नहीं।

पीठ ने कहा कि जहां परिस्थितियां और पेश सामग्री निर्दोष को फंसाने की ओर इशारा करती हों वहां कोर्ट को घायल का बयान सावधानी से जांचना चाहिए। इस मामले में मेडिकल साक्ष्य पीडि़त द्वारा महिलाओं पर लगाए गये आरोपों का समर्थन नहीं कर रहे। निचली अदालत और हाईकोर्ट को पीडि़त के बढ़ा-चढ़ा कर दिए गए बयान पर भरोसा नहीं करना चाहिए था जबकि दोनों पक्षों के बीच पहले से ही जमीन विवाद चल रहा था।

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