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3 तलाक की तरह गैरकानूनी घोषित हो नाबालिग बीवी से शारीरिक संबंध बनाना

सुप्रीम कोर्ट में शारीरिक संबंध बनाने में शादीशुदा और गैर शादीशुदा नाबालिग लड़कियों के साथ भेदभाव करने वाली धारा को निरस्त करने की मांग की गई है।

By Kishor JoshiEdited By: Published: Fri, 01 Sep 2017 09:11 AM (IST)Updated: Fri, 01 Sep 2017 09:51 AM (IST)
3 तलाक की तरह गैरकानूनी घोषित हो नाबालिग बीवी से शारीरिक संबंध बनाना

माला दीक्षित, नई दिल्ली। नाबालिग बीवी से शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत देने वाला कानून एक बार में तीन तलाक की तरह मनमाना और पक्षपाती करार दे गैरकानूनी घोषित किया जाए। गुरुवार को आइपीसी की धारा 375 के अपवाद (2) को निरस्त करने की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के हाल में दिये गये एक बार में तीन तलाक के फैसले का हवाला दिया।

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सुप्रीम कोर्ट आजकल नाबालिग बीवी से शारीरिक संबंध बनाने को दुष्कर्म की श्रेणी से बाहर करने वाले कानून आइपीसी की धारा 375 के अपवाद (2) को गैर कानूनी घोषित करने की मांग पर सुनवाई कर रहा है। यह धारा कहती है कि अगर कोई व्यक्ति अपनी बीवी जिसकी उम्र पन्द्रह साल से कम न हो, शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे दुष्कर्म नहीं माना जाएगा। गैर सरकारी संगठन इनडिपन्डेंट थाट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस कानून को निरस्त करने की मांग की है। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में 2013 से लंबित है।

गुरुवार को गैर सरकारी संगठन की ओर से बहस करते हुए वकील गौरव अग्रवाल ने कहा कि यह शादीशुदा और गैर शादीशुदा नाबालिग लड़कियों के बीच भेद करता है। इसमें 18 साल से कम उम्र की लड़कियों को दो श्रेणी में बांटा गया है। इस कानून के मुताबिक कोई भी पति अपनी बीवी से जो कि पंद्रह साल से कम नहीं है, शारीरिक संबंध बना सकता है उसमें पत्नी की सहमति और असहमति का कोई मतलब नहीं है। जबकि और दूसरे सभी मामलों में शारीरिक संबंध बनाने की सहमति देने के लिए लड़की की उम्र 18 वर्ष होनी चाहिए। 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से उसकी सहमति से बनाए गए संबंध भी दुष्कर्म की श्रेणी में आते हैं।

उन्होंने कहा कि 2013 में कानून में संशोधन करके शारीरिक संबंध बनाने की सहमति देने की लड़की की आयु 16 साल से बढ़ा कर 18 साल की गई थी। (कानून में 1940 से लेकर 2013 तक सहमति की उम्र 16 वर्ष थी)। कानून में संशोधन इस सोच के साथ किया गया था कि उस उम्र में लड़की सहमति देने के परिणामों को समझने में असमर्थ है। इस तरह कानून की निगाह में 18 वर्ष से कम आयु की लड़की की सहमति का कोई मतलब नहीं है। अग्रवाल ने कहा कि अगर कानून में सहमति की उम्र 16 से 18 साल किये जाने के पीछे यह उद्देश्य था तो 15,16 और 17 साल की लड़की की शादी को मानसिक और शारीरिक रूप से सहमति देने के लिए पूर्ण परिपक्व कैसे माना जा सकता। यह अपवाद कानून के मुख्य उद्देश्य से मेल नहीं खाता और भेदभाव करने वाला मनमाना है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बार मे तीन तलाक की प्रथा को मनमानी और गलत मानते हुए निरस्त किया है वैसे ही इस धारा को भी निरस्त किया जाए।

इन दलीलों के बीच सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि बाल विवाह पर रोक का कानून होने के बावजूद कटु सच्चाई है कि अभी भी लड़की के माता पिता के द्वारा नाबालिग की शादियां होती हैं। कोर्ट ने मुसलमानों और ईसाइयों में प्रचलित नाबालिगों की शादी को मान्यता पर चर्चा करते हुए कहा कि इसके कई पहलू हैं। अगर 15 से 18 वर्ष के बीच की आयु की पत्नी से कोई संबंध बनाता है और उसे दुष्कर्म घोषित किया जाएगा तो बच्चों का क्या भविष्य होगा। सभी पहलुओं पर विचार करना होगा। मामले पर मंगलवार को भी सुनवाई होगी।

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