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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में खनन से रोक हटाई

हाईकोर्ट ने एक प्रकार से आदेश के जरिये कानून बनाने की कोशिश की है जो कि क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण है।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Mon, 10 Apr 2017 11:52 PM (IST)Updated: Tue, 11 Apr 2017 02:27 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में खनन से रोक हटाई

माला दीक्षित, नई दिल्ली। उत्तराखंड में खनन कारोबार से जुड़े लोगों के लिए बड़ी राहत की खबर है। राज्य में खनन पर लगा प्रतिबंध हट गया है। सुप्रीमकोर्ट ने सोमवार को राज्य में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाले हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है। इसके साथ ही सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उत्तराखंड सरकार की याचिका पर नवीन चंद्र पंत और मनोज चंद्र पंत को नोटिस जारी किया है।

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नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बागेश्वर जिले के रहने वाले नवीन चंद्र पंत और मनोज चंद्र पंत की जनहित याचिका पर गत 28 मार्च को पूरे उत्तराखंड में चार महीने के लिए खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। हाईकोर्ट ने खनन से पर्यावरण और पारिस्थितिक संतुलन के खतरे को देखते हुए खनन के प्रभाव का आंकलन के लिए एक उच्च स्तरीय समिति भी गठित की थी। हाईकोर्ट ने समिति से खनन जारी रखने या रोकने पर चार सप्ताह में अंतरिम रिपोर्ट मांगी थी और तब तक के लिए राज्य में खनन रोक लगा दी थी। राज्य सरकार ने आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है।

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सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम व राज्य के वकील फारुख रशीद ने हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि हाईकोर्ट ने बगैर किसी पर्याप्त सामग्री के खनन पर रोक लगा दी है। खनन पर रोक से विकासशील राज्य उत्तराखंड का विकास रुक जाएगा। राज्य ने वैसे भी 2013 में आपदा झेली है। उनका कहना था कि नदी से रेत आदि हटाना जरूरी है ताकि नदी में प्राकृतिक प्रवाह कायम रहे। इसके अलावा खनन से विकास कार्य के लिए जरूरी कच्चा माल मिलता है जो कि ढांचागत विकास के लिए जरूरी है। पीठ ने राज्य सरकार की याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी।

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सरकार ने याचिका में कहा है कि जनहित याचिका पर ऐसा आदेश पारित कर हाईकोर्ट ने संविधान में दिये गये शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत का उल्लंघन किया है। हाईकोर्ट ने एक प्रकार से आदेश के जरिये कानून बनाने की कोशिश की है जो कि क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण है। जब हाईकोर्ट ने खुद हाई पावर कमेटी से अभी रिपोर्ट मंगाई है तो फिर वो कैसे राज्य में खनन पर पूरी तरह रोक लगा सकता है।

हाईकोर्ट ने आदेश देते समय इस पर ध्यान नहीं दिया कि खनन गतिविधियों की अनुमति पारिस्थितिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए दी गईं थीं। हाईकोर्ट ने परिस्थितियों और सामग्री को देखे बगैर रोक लगा दी है। इससे बड़ी संख्या में खनन रोजगार से जुड़े लोगों की रोजी रोटी प्रभावित हो रही है। हाईकोर्ट ने खनन के आंकलन के लिए हाईपावर कमेटी गठित कर उसे खनन के प्रभाव का आंकलन करने और 50 साल का ब्लूप्रिंट तैयार करने का भी आदेश दिया था।


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