बंदूक और पत्थर से किसी भी मसले का हल संभव नहीं : महबूबा
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि बंदूक और पत्थर से किसी मसले का हल नहीं हो सकता है, इसके लिए वार्ता जरुरी है।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राज्य के मौजूदा हालात के लिए केंद्र के राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि मसलों का हल बंदूक और पत्थर से नहीं बल्कि लोकतांत्रिक, राजनीतिक और वार्ता प्रक्रिया से ही होता है। उन्होंने हालात सामान्य बनाने में सभी पक्षों से सहयोग का आग्रह करते हुए कहा कि आज कश्मीर में लोग सुरक्षाबलों से नहीं पत्थरबाजों से डरते हैं।
उन्होंने गत सोमवार को बख्शी स्टेडियम में स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान राष्ट्रध्वज लहराने के बाद उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए यह बातें कहीं। लगभग एक घंटे के अपने संबोधन में वह कई बार भावुक हो उठीं और उनकी आंखें नम हो गईं। उन्होंने ङ्क्षहसा की निंदा करते कहा कि इससे कश्मीर में केवल मुसीबतें पैदा हुई हैं। किसी भी समस्या का समाधान केवल लोकतांत्रिक और राजनीतिक प्रक्रिया और बातचीत से निकाला जा सकता है। अब समय आ गया है कि राष्ट्रीय व राज्य नेतृत्व गत सात दशकों से राज्य में जारी राजनीतिक अस्थिरता के दौर को समाप्त करते हुए यहां सुरक्षा, विश्वास, शांति और तरक्की का माहौल कायम करे।
महबूबा ने कहा कि कश्मीर 1990 के शुरू से ही हिंसा के एक दर्दनाक दौर से गुजर रहा है। बंदूक से खून-खराबे और बर्बादी के अलावा यहां कुछ और हासिल नहीं हुआ। कश्मीर समस्या का समाधान न तो पत्थर उठाने से और न ही आतंकियों की बंदूक से होगा। इससे सिर्फ लोगों की मुसीबतों में बढ़ोतरी ही होगी। उन्होंने कहा सिर्फ बातचीत ही विवादों को हल करने का एकमात्र रास्ता है।
उन्होंने कहा कि अगर हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में समस्याओं को हल नहीं कर सकते तो हम उसका समाधान कहीं पर भी नहीं ढूंढ सकते। राज्य की समस्याओं को हल करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्तिऔर राष्ट्रीय आम सहमति पर जोर देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि जब तक कश्मीर की जमीनी हकीकतों को ध्यान में रखते लोकतंत्र व इंसानियत के सिद्घांतों के आधार पर प्रयास नहीं होंगे, कश्मीर में अमन नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि राजनीतिक, आर्थिक और विकास के मोर्चे पर निर्णायक प्रगति होगी। राज्य के लोगों के आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि रियासत में अमन बहाली के प्रयास वर्ष 2008 और 2010 की तरह नहीं होंगे कि हालात खराब होने पर वादे किए गए, लेकिन अमल नहीं हुआ। उन्होंने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मानवता, लोकतंत्र और कश्मीरियत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के एजेंडा को आगे ले जाने से राज्य में विश्वास बहाली के रखरखाव के कदम को नया आयाम मिलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में शुरू किए गए कार्यों को उनके तार्किक अंजाम तक पहुंचाया जाएगा ताकि राज्य और क्षेत्र में शांति व स्थिरता वास्तविकता बन सके।
महबूबा ने कहा कि कश्मीर समस्या के आंतरिक और बाहरी पहलुओं को हल करना होगा। बाहरी मोर्चे पर भारत-पाक के बीच अनुकूल वातावरण और आंतरिक मोर्चे पर स्थानीय समाज के सभी वर्गोंं को शामिल कर व्यापक राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करना होगा। जम्मू-कश्मीर की समस्याओं का कोई रेडीमेड फार्मूला नहीं है बल्कि यह एक विकासवादी प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि एक दिन भारत-पाक के नफरत की दीवारें गिरेंगी।
उन्होंने जम्मू-कश्मीर को सार्क देशों में आपसी सहयोग का एक पुल बनाने पर जोर देते हुए कहा कि यदि आप जम्मू-कश्मीर से प्यार करते हैं तो सीमाओं को खोल दीजिए। जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को आपस में मिलाएं। सार्क देशों का एजेंडा तभी पूरा होगा जब भारत-पाक में आपसी विश्वास व सहयोग का माहौल होगा।
महबूबा ने भारत-पाक से अपील की कि वह नियंत्रण रेखा (एलओसी) दोनों तरफ के कश्मीर की सीमाओं को समाप्त कर उसे शांति और विकास का नमूना बनाएं। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के पास वार्ता के बिना कोई दूसरा विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा, मैं आज के दिन अपने देश और पाकिस्तान के नेतृत्व से अपील करती हूं कि यहां बहुत खून बह चुका है। झेलम अब और ज्यादा खून बर्दाश्त नहीं कर सकता, वह इतना खून नहीं धो सकता। अगर आप वाकई जम्मू-कश्मीर से प्यार करते हो तो फिर यह कश्मीर और वह कश्मीर, जिसका जिक्र करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी कहते थे कि हम दोस्त बदल सकते हैं पड़ोसी नहीं, जैसे मनमोहन सिंह ने कहा था कि हम सीमाएं परिवर्तित नहीं कर सकते मगर सीमाओं को समाप्त कर सकते हैं, मिलकर इन दोनों कश्मीरों की सीमाओं को समाप्त कर किसी भी देश की अखंडता को भंग किए बिना राज्य को शांति व विकास का नमूना बनाना होगा।
मुख्यमंत्री ने जम्मू-कश्मीर (आर-पार कश्मीर) को सार्क का गढ़ बनाने पर जोर देते हुए कहा कि 'सार्क विश्वविद्यालय बनाना है तो जम्मू कश्मीर में बनाओ, सार्क हैंडीक्राफ्ट सेंटर बनाना है तो यहां बनाओ। नेपाल या श्रीलंका को कुछ करना है तो वह यहां करें। आपके सार्क देशों की मुद्रा कैसी हो, उसकी शुरुआत यहां से हो। कश्मीर घाटी व पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मी को आपस में जोडऩे वाले सभी पुराने व्यापारिक मार्ग खोले जाएं।
जम्मू-कश्मीर में हालात में बदलाव लाने की कोशिश को बहुत बड़ी चुनौती करार देते हुए महबूबा ने कहा कि हिंसा का कोई औचित्य नहीं है। हम सभी संबंधित पक्षों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। एक अरब से अधिक आबादी वाले देश के लिए राजनीतिक और मानवीय चुनौती को अब गतिरोध में डालने का कोई औचित्य नहीं है। कश्मीर समस्या का आर्थिक या भौगोलिक नहीं है, इसे लोगों के सम्मान और गरिमा के साथ हल किया जाना चाहिए।
उन्होंने सवालिया अंदाज में कहा राजनीतिक विकास के साथ हालात ठीक होंगे, लेकिन क्या हमें वह सब कुछ वापस मिलेगा जो हमने खोया है। कीमती जानें नष्ट हुई हैं, कई लोग घायल हो गए हैं और उस पर आर्थिक नुकसान और हमारे बच्चों की शिक्षा। उन्हें भविष्य में कौन जवाब देगा।
उन्होंने कहा कि जहां हमारे आसपास के समाज शिक्षा के माध्यम से सशक्त बन रहे हैं, विडंबना है कि हमारे बच्चों को शिक्षा से वंचित रखा जा रहा है। कुछ लोग सोचते हैं कि शिक्षा इंतजार कर सकती है लेकिन विरोध को रोका नहीं जा सकता और सड़कों पर तनाव बच्चों को स्कूल भेजने से ज्यादा जरूरी है। समस्याओं का समाधान वयस्कों के माध्यम से किया जाना चाहिए न कि बच्चों के जरिए।
उन्होंने कहा कि मैं बच्चों को आइआइटी और आइआइएम में देखना चाहती हूं न कि सड़कों पर संगबाजी करते हुए। उन्हें केंद्रीय विश्वविद्यालय में देखना चाहती हूं न कि सेंट्रल जेल में। उन्होंने कहा कि दुनिया में कोई भी सरकार ऐसी नहीं होगी जो अपने नागरिकों पर गोलियां या पैलेट बरसाए। लेकिन जो लोग घरों में बैठे हैं, जो ङ्क्षहसा में शामिल नहीं हैं,उनके सुरक्षा भी हमारी ही जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि हमने वर्ष 2008 व 2010 के दौरान पकड़े गए युवकों की रिहाई की है,उनके खिलाफ मामले वापस लेने का फैसला किया है।
महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हमें जरूर सोचना चाहिए कि क्या हम अपने युवाओं की पांचवीं पीढ़ी को अराजकता के माहौल में धकेल दें। राज्य के लोग बुरे नहीं हैं और न देश के लोग बुरे हैं। राज्य के संबंध में नई दिल्ली के नेताओं और राज्य की राजनीतिक दलों ने कहीं न कहीं गलतियां की हैं, जिससे यहां के लोग अलग-थलग पड़ गए। जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति के साथ छेड़छाड़ की कोशिश को गलत बताते हुए महबूबा ने लोगों से आग्रह किया कि वह उनकी सरकार को कुछ समय दें ताकि राज्य में शांति और विकास योजनाओं को लागू किया जा सके।
मुख्यमंत्री ने कश्मीर समस्या के लिए कश्मीर और भारतीय नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा बंदूक किसी समस्या का समाधान नहीं है। बंदूक चाहिए सुरक्षाबलों की हो या आतंकियों की, यह किसी समस्या का समाधान नहीं है। मुफ्ती साहब बार-बार कहते थे कि जम्मू-कश्मीर के लोग बुरे नहीं हैं और न हमारा देश भारत बुरा है। कहीं न कहीं त्रुटि जम्मू-कश्मीर के नेतृत्व जिसमें वह खुद भी गिनते थे, और हमारे देश का नेतृत्व जवाहर लाल नेहरू से लेकर आज तक जो नेता रहे हैं, यह गलती उनकी है। कुछ लोग कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर और भारत के लोगों के बीच विश्वास का अभाव है। मैं इस बात को नहीं मानती हूं। लोगों और नेतृत्व के बीच विश्वास का अभाव है। अगर कश्मीर और भारत के नागरिकों के बीच कोई झगड़ा होता तो आज या पहले जब हमारी धरती हमारे लिए तंग हो गई तो घाटी के लोग अपने जिगर यहां से भारत के कोने-कोने में पढ़ाने के लिए नहीं भेजते। अगर हमें विश्वास नहीं होता तो हम उन्हें अपने घरों में कैद करते और वहां नहीं भेजते।
इससे पता चलता है कि जो समस्या है वह यहां के लोगों और भारत के लोगों के बीच में नहीं है, वह कश्मीर और भारत के बीच नहीं है, वह यहां नेतृत्व और भारत के नेतृत्व के साथ हो सकता है। विरोध प्रदर्शनों में छोटे बच्चों की भागीदारी पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, लोकतंत्र में लोगों के विरोध करने की स्वतंत्रता प्राप्त है, लेकिन वह विरोध शांतिपूर्ण होना चाहिए। अगर आप इसमें हिंसा, पेट्रोल बम और ग्रेनेड चलाएंगे तो लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। ये कौन-सी लड़ाई है, जिसमें बच्चों को शामिल किया जाता है। समस्या हल करवाना तो बड़ों का काम है।
उन्होंने कहा कि जो लोग जम्मू-कश्मीर की शांति बिगाडऩा चाहते हैं उनका एकमात्र उद्देश्य है कि कश्मीर आग की भट्ठी में जलता रहे। वह अपने मासूम बच्चों को अपने स्वार्थ के लिए बलि का बकरा बनाते हैं। स्थिति खराब होना समस्या का समाधान नहीं है। 1990 में तो यहां के हालात बेहद खराब थे, तब समस्या हल क्यों नहीं हुआ।
मुख्यमंत्री ने हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की झड़प में मारे जाने के बाद भड़की ङ्क्षहसा पर कहा कि झड़पें पहली भी हुई हैं, आज और कल भी होंगे, यह तो मजबूरी है। मुझे तो समझ नहीं आ रहा है कि कसूर क्या है हमारा। क्या यह पहली बार झड़प हुई है। उन्होंने कहा कि यदि वर्ष 2008 और 2010 के विरोध लहरों के बाद कोई ठोस कदम उठाए गए होते तो आज कश्मीर की स्थिति तनावपूर्ण नहीं होती।