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पराली से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने खोजी दो तकनीक, किसानों का होगा फायदा

मौजूदा समय में राजधानी दिल्ली सहित आसपास के शहरों के लिए पराली इसलिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है, क्योंकि किसान इसे अभी फसल की कटाई के बाद खेतों में ही जला देते है।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 20 Sep 2017 09:25 AM (IST)Updated: Wed, 20 Sep 2017 03:26 PM (IST)
पराली से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने खोजी दो तकनीक, किसानों का होगा फायदा

नई दिल्ली, अरविंद पांडेय। राजधानी दिल्ली सहित आस-पास के शहरों को जल्द ही पराली के जानलेवा धुएं से मुक्ति मिल सकती है। वैज्ञानिकों से लंबे शोध के बाद इससे निपटने का रास्ता खोज निकालने में सफलता मिलने लगी है। अब पराली को खेतों में नहीं जलाया जाएगा। इससे अब ईंट के भट्ठों या होटल के तंदूर के लिए धुएं से मुक्त ईंधन (ब्रिक्स) तैयार होगा। इससे किसानों की कमाई भी होगी। सस्ती होने के चलते किसान इसे आसानी से अपना भी सकेंगे। इसके साथ ही वैज्ञानिकों से जो दूसरा रास्ता खोजा है, उनमें किसानों का एक पैसा भी नहीं लगेगा, उल्टा उनका खेत आने वाले कुछ सालों में और ज्यादा उपजाऊ जरुर हो जाएगा। यानि तकनीक की मदद से जानलेवा पराली खेतों में ही कम्पोस्ट (खाद) में तब्दील होगी।

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वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अधीन काम करने वाली संस्था केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएमईआरआई) ने फिलहाल इन दोनों तकनीक को जल्द से जल्द पूरा करने में जुटी है। इसमें से पराली से जलाऊ ईंधन (ब्रिक्स) तैयार करने का प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो गया है। इसके लिए मशीन तैयार हो गई है। इन दिनों लुधियाना के सेंटर पर ट्रायल चल रहा है। इस मशीन के निर्माण पर करीब डेढ़ लाख रुपए की लागत आई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि मशीन के व्यावसायिक निर्माण शुरू होते ही इसकी लागत में कम हो जाएगी।

मौजूदा समय में ईंट के भट्ठों और होटलों के तंदूर में कोयला इस्तेमाल होता है, जो काफी मंहगा होने के साथ ही हानिकारक धुंआ भी छोड़ता है। अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अश्विनी कुमार के मुताबिक, इसके साथ ही हाल ही में हमने एक पराली को लेकर एक नए प्रोजेक्ट पर भी काम शुरू किया है, जिसमें फसल की कटाई के दौरान ही पराली को खेतों में ही छोटे-छोटे टुकड़ों में तब्दील करके जुताई कर दी जाएगी। यह सब हार्वेस्टिंग के दौरान ही हो जाएगा। इसके लिए मौजूदा हार्वेस्टिंग मशीन के लिए अलग से एक नई मशीन तैयार की जा रही है, जो एक समय पर एक साथ काम करेगी। यानि खेतों की पराली हार्वेसटिंग के दौरान ही खेतों में नष्ट हो जाएगी, जो खेतों में पानी के पड़ते ही तुरंत सड़कर मिट्टी में मिल जाएगी। इस मशीन को तैयार करने को लेकर अभी काम चल रहा है। माना जा रहा है कि अभी इसको तैयार में थोड़ा समय लग सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि ऐसी तकनीक है, जिसमें किसानों का अलग से एक भी पैसा नहीं लगेगा, जिसमें हार्वेस्टिंग के खर्च में पराली भी खत्म हो जाएगी।

मौजूदा समय में राजधानी दिल्ली सहित आसपास के शहरों के लिए पराली इसलिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है, क्योंकि किसान इसे अभी फसल की कटाई के बाद खेतों में ही जला देते है। इसकी मुख्य वजह किसानों की दूसरी फसल के बुआई की जल्दबाजी रहती है। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि किसानों के ऐसा करने से खेतों की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है।

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