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सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कुम्हार को एससी में शामिल करने का मुद्दा

उत्तर प्रदेश में कुम्हार जाति को अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेशिया प्रजापति महासभा की याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया है। इसमें कुम्हार सहित 26 जातियों को शिल्पकार की उपजाति बताया गया है। शिल्पकार उत्त

By Edited By: Published: Mon, 22 Sep 2014 09:44 AM (IST)Updated: Mon, 22 Sep 2014 09:44 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कुम्हार को एससी में शामिल करने का मुद्दा

नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। उत्तर प्रदेश में कुम्हार जाति को अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेशिया प्रजापति महासभा की याचिका पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी किया है। इसमें कुम्हार सहित 26 जातियों को शिल्पकार की उपजाति बताया गया है। शिल्पकार उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गत 29 मई को दिए गए फैसले में कसेरा व कुम्हार आदि जातियों को उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति मानने से इन्कार कर दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

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जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई व जस्टिस एनवी रमना की पीठ ने याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एसआर सिंह की दलीलें सुनने के बाद प्रदेश सरकार व अन्य से जवाब मांगा है। इससे पहले एसआर सिंह ने हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि कुम्हार सहित 26 जातियां शिल्पकार की उपजातियां हैं। 1950 के भारत सरकार के आदेश में भी इसका जिक्र भी है। इनकी सूची 1950 के आदेश के साथ लगी थी। 1956 में जब अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कानून में संशोधन हुआ था तो उसमें भी शिल्पकार जाति शामिल की गई थी। शिल्पकार की इन 26 उपजातियों को विशेष तौर पर बाहर करने की घोषणा नहीं है। इसलिए इन्हें नये कानून का भी हिस्सा माना जाएगा।

पुराना है विवाद

कुम्हार को अनुसूचित जाति में शामिल करने का विवाद पुराना है। 1950 के प्रेसिडेन्शियल आदेश में यह शिल्पकार की उपजातियों में शामिल थी और आदेश के साथ जारी टिप्पणियों में इन्हें शिल्पकार की उपजातियां कहा गया था। 1956 में संशोधन के बाद शिल्पकार को तो अनुसूचित जाति में शामिल किया गया, लेकिन 26 उपजातियों को उसका हिस्सा नहीं बनाया गया। वर्ष 1957 में उत्तर प्रदेश सरकार ने संशोधित कानून के मुताबिक आदेश जारी कर दिया।

वर्ष 2004 में विवाद इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा। घनश्याम दास मामले में हाई कोर्ट ने कहा कि कसेरा जाति अनुसूचित जाति का हिस्सा नहीं है। इसके बाद ट्रिब्युनल का एक आदेश कुछ अलग आया और 2011 में प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया। इस फैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि शिल्पकार की 26 उपजातियां हैं और कसेरा उनमें से एक है।

हाई कोर्ट के 2011 के फैसले को आधार बनाते हुए पिछले साल स्वरूप चंद सिंह ने हाईकोर्ट में नई रिट याचिका दायर की जिसमें स्वयं को कसेरा जाति का बताते हुए मिर्जापुर के जिलाधिकारी को उसके बेटे तरंग सिंह के लिए अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र जारी जारी करने का निर्देश देने की मांग की। इसपर हाई कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने गत मई में 2011 का आदेश रद कर 2004 के फैसले पर मुहर लगा दी।

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