सपने से भी ऊंची उड़ान भरी कचरा उठाने वाली सुमन ने
पुणे की सड़कों पर 37 वर्षों से कूड़ा बीनने वाली सुमन मोरे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह विमान में सवार होकर बादलों के पार उड़ सकेगी। विदेश यात्रा पर जाना, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों और सभ्रांत लोगों को संबोधित करने की उसने कभी
मुंबई, मिड डे। पुणे की सड़कों पर 37 वर्षों से कूड़ा बीनने वाली सुमन मोरे ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह विमान में सवार होकर बादलों के पार उड़ सकेगी। विदेश यात्रा पर जाना, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञों और सभ्रांत लोगों को संबोधित करने की उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
उस्मानाबाद जिले के कलांब गांव से अशिक्षित 50 वर्षीय महिला सुमन की जिंदगी का सफर शुरू होता है। सुमन जब 13 वर्ष की थी, तभी उसकी शादी मारिबा से हुई थी। सुमन का पति खेत मजदूर के रूप में काम करता था और उसके माता-पिता दैनिक मजदूरी करते थे। भयंकर सूखे की चपेट में आने के बाद अपने पति के साथ काम की तलाश में वह पुणे आई।
मराठवाड़ा की होने के कारण घरेलू नौकरानी से लेकर औद्योगिक क्षेत्र में उसे काम नहीं मिला। पति भी माल ढुलाई का काम करता था, इसलिए उसे भी कभी-कभार ही काम मिलता था। मजदूरी से दोनों को एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो पा रहा था। इस बीच, सुमन ने कचरा बीनना शुरू किया। नौ घंटे तक श्रम कर वह 30 से 50 रुपये रोजाना कमाने लगी।
अब उन्होंने सॉलिड वेस्ट कलेक्शन एंड हैंडलिंग संगठन के लिए काम शुरू कर दिया है और प्रति माह 5000 रुपये आय होने लगी है। इस काम में भी दुश्वारियां पेश आती रही, अकारण पुलिस की ज्यादती भी होती रही, लेकिन जिंदगी का कारवां बढ़ता रहा।
सुमन की जिंदगी में 1993 में उस समय से बदलाव आना शुरू हुआ, जब वह बाबा आधव के संगठन कागद, काच, पत्र काश्तकारी पंचायत (केकेपीकेपी) से जुड़ीं। बाद में इसी संगठन के जरिये उन्हें 2011 में पहली बार विदेश जाने का मौका मिला। वह हरित क्रांति पर नेपाल में आयोजित सम्मेलन में भाग लेने के लिए गईं।
इसके बाद 2012 में उन्हें जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में भाग लेने के लिए डरबन दक्षिण अफ्रीका जाने का मौका मिला। फिर वह अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के कार्यक्रम में भाग लेने के लिए जेनेवा गईं। चार बच्चों की मां सुमन के बड़े बेटा लक्ष्मण पत्रकार हैं।
राम स्नातक की पढ़ाई के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है। इस बारे में सुमन का कहना है कि गरीबी से संघर्ष करते हुए मैंने अपने बच्चों को अच्छी तरह पढ़ाने का प्रण लिया था। सुमन की एक बहू श्वेता सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और पुणे के एमसीए कॉलेज में प्रोफेसर हैं। वर्तमान में सुमन अपने पोते-पोतियों के साथ अंग्रेजी सीख रही हैं।