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रिहाई को सुब्रत राय 10,000 करोड़ रुपये देने में असमर्थ

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सहारा प्रमुख सुब्रत राय व कंपनी के दो अन्य निदेशक फिलहाल जेल में ही रहेंगे, क्योंकि समूह ने उनकी रिहाई के लिए 10,000 करोड़ रुपये देने में असमर्थता जताई है। सहारा समूह ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से रिहाई के लिए रखी गई शर्तो में बदलाव कर रियायत देने की गुहार लगाई।

By Edited By: Published: Thu, 03 Apr 2014 01:53 PM (IST)Updated: Thu, 03 Apr 2014 05:35 PM (IST)
रिहाई को सुब्रत राय 10,000 करोड़ रुपये देने में असमर्थ

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सहारा प्रमुख सुब्रत राय व कंपनी के दो अन्य निदेशक फिलहाल जेल में ही रहेंगे, क्योंकि समूह ने उनकी रिहाई के लिए 10,000 करोड़ रुपये देने में असमर्थता जताई है। सहारा समूह ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से रिहाई के लिए रखी गई शर्तो में बदलाव कर रियायत देने की गुहार लगाई। कोर्ट ने इस बारे में न तो कोई आदेश पारित किया और न ही रिहाई की शर्तो में बदलाव की अर्जी पर जल्दी सुनवाई की कोई तारीख ही तय की। मामले में अब शीर्ष अदालत नौ अप्रैल को सुनवाई करेगी।

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सुबह जैसे ही सुनवाई शुरू हुई सहारा की ओर से पेश वकील ए सुंदरम ने कहा कि रिहाई की शर्त के तौर पर रखी गई 5,000 करोड़ की नकद रकम एक साथ देना मुमकिन नहीं है। इसे दो किस्तों में बांट दिया जाए। पहली किस्त तीन दिन के भीतर 2,500 करोड़ की और बाकी की राशि 21 दिन के भीतर दे दिए जाएंगे। इसके अलावा 5,000 करोड़ की बैंक गारंटी देने के लिए 60 से 90 दिन का समय दे दिया जाए। जस्टिस केएस राधा कृष्णन व जेएस खेहर की पीठ ने मौखिक दलीलें ठुकराते हुए कहा कि वह जो कहना चाहते हैं, अर्जी दाखिल कर कहें।

इसके बाद दिन भर हिरासत को गैरकानूनी बताने वाली सुब्रत राय की याचिका पर बहस चलती रही। इसी बीच सहारा ने शर्तो में बदलाव की अर्जी भी दाखिल कर दी। जब सुनवाई खत्म होने लगी तो वकील ने पीठ से अर्जी पर जल्द सुनवाई का आग्रह किया। मगर कोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया और सुनवाई नौ अप्रैल तक टाल दी। तब सहारा की ओर से सुब्रत राय को तिहाड़ में रखने के बजाय कहीं और नजर बंद रखने का अनुरोध किया गया। अदालत ने इसे भी अनसुना कर दिया।

सहारा की ओर से एक साथ इतनी बड़ी रकम नगद देने में असमर्थता जताए जाने पर पीठ की टिप्पणी थी कि कंपनी के पास तो हजारों करोड़ की नकदी है, तो वह उससे 10,000 करोड़ दे दे। कोर्ट ने ये टिप्पणी सहारा की ओर से कुछ देर पहले ही दी गई उस दलील के मद्देनजर की थी, जिसमें कंपनी ने निवेशकों का हजारों करोड़ रुपया नकद वापस करने का दावा किया था।

दिन भर सुब्रत और दो अन्य निदेशकों के वकील तीनों को जेल भेजे जाने के गत 4 मार्च के आदेश को गैरकानूनी ठहराते रहे और सेबी दलीलें काटता रहा। जब बहस जोरों पर थी तो पीठ ने कहा कि उन्होंने चार मार्च को जेल किसी सजा में नहीं भेजा है और न ही अदालत की अवमानना में। उन्होंने ये कदम अपने 31 अगस्त, 2012 और दिसंबर, 2012 के आदेश को लागू कराने के लिए उठाया है। उन्होंने अभी कोई सजा नहीं दी है। सजा के पहलू पर तो वे अवमानना याचिका पर सुनवाई पूरी होने के बाद विचार करेंगे।

पीठ ने यह भी कहा कि रिहाई के लिए रखी गई 10,000 करोड़ देने की शर्त जमानत के तौर पर नहीं है, बल्कि यह तो निवेशकों को लौटाई जाने वाली कुल रकम का एक हिस्सा भर है।

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