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बगावत थामने को खुले कांग्रेस के बंद दरवाजे

लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक हार के बाद हताश कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व को लेकर उठ रही बगावत शांत करने के लिए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नाराज नेताओं से मुलाकात का सिलसिला शुरू कर दिया है। पार्टी के भीतर असंतोष के गुबार को देखते हुए नरम पड़ते आलाकमान ने संकेत दिए हैं कि नाराज न

By Edited By: Published: Sun, 03 Aug 2014 05:20 AM (IST)Updated: Sun, 03 Aug 2014 09:27 AM (IST)

नई दिल्ली [सीतेश द्विवेदी]। लोकसभा चुनावों में ऐतिहासिक हार के बाद हताश कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व को लेकर उठ रही बगावत शांत करने के लिए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नाराज नेताओं से मुलाकात का सिलसिला शुरू कर दिया है। पार्टी के भीतर असंतोष के गुबार को देखते हुए नरम पड़ते आलाकमान ने संकेत दिए हैं कि नाराज नेता कभी भी पार्टी नेतृत्व से मिलकर अपनी बात रख सकते हैं। कांग्रेस ने नाराज नेताओं को सार्वजनिक बयानबाजी से रोकने और पार्टी आलाकमान के सामने अपनी बात कहने के लिए मनाने की जिम्मेदारी राज्य में प्रभारी महासचिवों को सौंपी है।

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शीर्ष नेतृत्व पर हुए किताबी हमलों और राज्यों में पार्टी इकाइयों में गांधी परिवार को लेकर मुखर होते सवालों के बीच कांग्रेस ने बागियों को मनाने का काम शुरू कर दिया है। नाराज नेताओं की बात सुनने के लिए दस जनपथ के बंद दरवाजे खुल गए हैं। सोनिया खुद नाराज नेताओं से कांग्रेस के हित में संयम रखने और विधानसभा चुनावों तक पार्टी के साथ खड़े रहने की अपील करेंगी। संकेत यह भी हैं कि बगावत को देखते हुए संगठन में होने वाले फेरबदल को विधानसभा चुनाव तक टाला जा सकता है। कांग्रेस को लगता है कि इसे टालने से न सिर्फ विधानसभा चुनावों में पार्टी नेता अधिक जिम्मेदारी से अपनी भूमिका निभाएंगे, बल्कि नाराज नेता भी इंतजार के लिए मजबूर हो जाएंगे। इससे पहले भी कांग्रेस 1967 और 1977 में हार के बाद टूट चुकी है।

कांग्रेस नेताओं द्वारा पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाने का सिलसिला जारी है। शुक्रवार को कांग्रेस कार्यसमिति के पूर्व सदस्य जगमीत सिंह बरार ने सोनिया और राहुल को दो साल के अवकाश पर जाने की सलाह दे डाली। इससे पहले राजस्थान से कांग्रेस नेता भंवरलाल शर्मा व केरल से पार्टी नेता टीएच मुस्तफा ने राहुल को जोकर कह दिया था। राहुल के राजनीतिक गुरु दिग्विजय सिंह को भी कांग्रेस उपाध्यक्ष में शासक के गुण नहीं दिखे थे। बाद में सफाई देते हुए उन्होंने राहुल को जनता का सेवक बनने का इच्छुक बताया था। राहुल के करीबी मिलिंद देवड़ा और प्रिया दत्त भी उनकी कार्यशैली की आलोचना कर चुके हैं।

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