संज्ञेय मामलों में एफआइआर अनिवार्य
संज्ञेय अपराध के मामलों में अब पुलिस एफआइआर दर्ज करने में आनाकानी नहीं कर पाएगी। इसकी सूचना पर उसे तत्काल मामला दर्ज करना पड़ेगा। ऐसा न करने पर पुलिसकर्मी दंडित होंगे। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक अहम फैसले में यह व्यवस्था देते हुए कहा है कि ऐसे मामले में ंपुलिस को प्रारंभिक जांच करने की अनुमति नहीं है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सीआरपीसी की धारा 154 का मंतव्य स्पष्ट करते हुए यह फैसला सुनाया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संज्ञेय अपराध के मामलों में अब पुलिस एफआइआर दर्ज करने में आनाकानी नहीं कर पाएगी। इसकी सूचना पर उसे तत्काल मामला दर्ज करना पड़ेगा। ऐसा न करने पर पुलिसकर्मी दंडित होंगे। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक अहम फैसले में यह व्यवस्था देते हुए कहा है कि ऐसे मामले में ंपुलिस को प्रारंभिक जांच करने की अनुमति नहीं है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सीआरपीसी की धारा 154 का मंतव्य स्पष्ट करते हुए यह फैसला सुनाया।
फैसला सुनाने वाली पीठ के अन्य न्यायाधीश बीएस चौहान, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई व न्यायमूर्ति एसए बोबडे थे। कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस को मिली सूचना में संज्ञेय अपराध के होने का पता चलता है तो उसके लिए एफआइआर दर्ज करना अनिवार्य है। उसे प्रारंभिक जांच की अनुमति नहीं है। हालांकि जिन शिकायतों में संज्ञेय अपराध होने का पता नहीं चलता उन मामलों में पुलिस यह पता लगाने के लिए सीमित जांच कर सकती है कि संज्ञेय अपराध घटित हुआ है कि नहीं? कोर्ट ने साफ किया है कि मामला दर्ज करते समय यह देखना महत्वपूर्ण नहीं है कि सूचना सही है कि गलत या भरोसे लायक है कि नहीं? इन सारी बातों की जांच मामला दर्ज करने के बाद की जाएगी। कोर्ट ने कहा है कि अगर जांच के बाद पता चलता है कि शिकायत झूठी है तो शिकायतकर्ता के खिलाफ झूठी एफआइआर दर्ज करने पर मुकदमा चलाया जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि ऐसा समझा जाना कि मामला दर्ज होते ही गिरफ्तारी हो जाएगी और इसलिए पहले शिकायत की जांच-परख होनी चाहिए, ठीक नहीं है। कानून में मनमानी गिरफ्तारी से बचने के उपाय दिए गए हैं।
कोर्ट ने फैसले में आठ दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनमें यह भी बताया गया है कि परिवार विवाद, वैवाहिक झगड़े, इलाज में लापरवाही, व्यापारिक विवाद, भ्रष्टाचार जैसे मामलों में शिकायत मिलने पर पुलिस एक सप्ताह में प्रारंभिक जांच कर सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि हर शिकायत की इंट्री डेली डायरी में की जाएगी। यह फैसला गाजियाबाद लोनी में रहने वाली छह वर्षीय बच्ची के गायब होने की रिपोर्ट लिखने में देरी करने और बाद में कार्रवाई के लिए पुलिस द्वारा रिश्वत मांगे जाने की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।
1-संज्ञेय अपराध वे अपराध हैं जिनमें तीन वर्ष या इससे अधिक की सजा हो सकती है।
2-हालांकि अपराध प्रक्रिया संहिता के तहत पुलिस के लिए शिकायत को एफआइआर रूप में दर्ज करना चाहिए, लेकिन आम तौर पर अभी पुलिस ही तय करती है कि शिकायत एफआइआर में तब्दील की जाए या नहीं?
3-सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञेय अपराधों में प्रारंभिक जांच के बगैर ही एफआइआर अनिवार्य तौर पर दर्ज करने के साथ यह भी कहा है कि गिरफ्तारी तभी की जाए जब कुछ सुबूत हासिल हो जाएं।
4-वैवाहिक, संपत्ति संबंधी विवादों, भ्रष्टाचार की शिकायत आदि पर एफआइआर के पहले पुलिस प्रारंभिक जांच करे और इसे सात दिन में पूरा कर मामला बंद करने या फिर उसे एफआइआर में तब्दील करने का फैसला करे।
5-अगर संज्ञेय अपराध का पता नहीं चलता और मामले को बंद करना है तो इसकी सूचना की एक प्रति शिकायतकर्ता को दी जाए और उसमें मामला बंद करने का कारण भी बताया जाए।
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